विश्व में अपनी जयजयकार कराने के लिए आपको युद्ध जीतना ही आवश्यक नहीं, कभी कभी स्पष्ट विचार और निर्भीक दृष्टिकोण पर्याप्त है। आप कहोगे कि ऐसे लोग आदर्शवादी होते हैं, ये केवल कागज़ के सिंह होते हैं परंतु यदि इन्हें सही दिशा मिले तो इनकी गर्जन संसार के समस्त दिशाओं में गूंजती है और अंतर नेतृत्व का होता है। नेतृत्व ही संसार के सबसे प्रभावशाली राष्ट्रों में से एक को हंसी का पात्र भी बना सकता है और नेतृत्व ही एक राष्ट्र को उसकी सुप्त पड़ चुकी विरासत से पुनः परिचित कराकर, उसके गौरव का आभास कराकर, उसे विश्वगुरु बनने के मार्ग पर अग्रसर करा सकता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में अपने वक्तव्य से स्पष्ट कर दिया कि आने वाला युग भारत का है, जिसे अब कोई नहीं रोक सकता।
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अमेरिका को दिन में तारे दिखा दिए
हाल ही में UN की आम सभा में विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने मानो अमेरिका के खोखले दावों के परखच्चे उड़ा दिए। उन्होंने अमेरिका और उसके चमचों की धज्जियां उड़ाने में कोई प्रयास अधूरे नहीं छोड़े। उन्होंने सर्वप्रथम भारत के बढ़ते कद का अभिवादन किया और फिर उन्होंने सर्वप्रथम चीन की कर्ज नीति पर आक्रमण करते हुए कहा, “भले भारत दुनिया की बेहतरी के लिए योगदान करने में लगा हुआ है लेकिन अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जो गिरावट आ रही है, हम उसे भी पहचानते हैं। दुनिया पहले ही कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही है। विकासशील देशों में कर्ज की जो स्थिति है वह काफी अनिश्चित है।” इसके बाद उन्होंने आगे कहा कि कुछ देशों में हालात कोविड महामारी और आपसी संघर्ष की वजह से काफी बिगड़ गए हैं।
तत्पश्चात एस जयशंकर ने आगे कहा, “कई दशकों तक सीमा पार से पनपे आतंकवाद की आग में जलने वाले भारत ने अब इसके लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का पालन करता है। हमारी नजर में किसी भी तरह के आतंकवाद का कोई औचित्य नहीं है चाहे उसकी प्रेरणा कुछ भी हो। और चाहे कोई कुछ भी कह ले खून के धब्बों को कभी ढंका नहीं जा सकता है।” विदेश मंत्री जयशंकर ने इस दौरान यूएनएससी 1267 में चीन के रुख पर उसे जमकर फटकारा।
An intense week of diplomacy at the #UNGA High level week. India stands tall. #Diplomacydelivers. pic.twitter.com/9fDlljXvTa
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) September 26, 2022
यही नहीं, एस जयशंकर ने चीन के दोहरे मापदंडों पर आक्रामक होते हुए कहा, “संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद का जवाब इसके आकाओं को प्रतिबंधित करके देता है। जो भी यूएनएससी 1267 का राजनीतिकरण करते हैं, वो कभी-कभी आतंकियों का बचाव करने तक काफी हद तक चल जाते हैं। मेरा यकीन मानिए इससे न तो उनके हितों को कोई फायदा पहुंचता है और न ही उनकी प्रतिष्ठा को।” जयशंकर ने जब यह कहा तो उनका सीधा इशारा चीन की ओर था। चीन ने हाल के कुछ महीनों में पाकिस्तान स्थित आतंकियों को ब्लॉक करने वाले प्रस्ताव में बार-बार अड़ंगा डाला है।
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अब एफ 16 पर अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ क्या समझौता किया है, ये किसी से भी नहीं छिपा है। ये जानते हुए भी कि पाकिस्तान का अर्थ क्या है, उसकी मंशा क्या है, अमेरिका का वर्तमान प्रशासन उसे सैन्य सहायता देने को आतुर है और इसी बात पर संयुक्त राष्ट्र के मंच से जयशंकर ने अमेरिका को पटक पटक कर धोया है। जयशंकर के अनुसार, “इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच संबंधों से न तो पाकिस्तानियों का भला है और न ही अमेरिकियों का। अमेरिका को पाकिस्तान से अपने संबंधों पर सोचना चाहिए कि उसे इससे क्या हासिल हुआ। मैं ये बात इसीलिए कह रहा हूं क्योंकि ये आतंकवाद विरोधी समान है। जब आप एफ-16 की क्षमता जैसे विमान की बात कर रहे हैं, हर कोई जानता है, ये आप भी जानते हैं कि विमानों को कहां तैनात किया गया है और उनका क्या उपयोग किया जा रहा है। आप ये बातें कहकर किसी को बेवकूफ नहीं बना सकते।”
वाशिंगटन पोस्ट की धुलाई
बता दें कि अमेरिका की जो बाइडन सरकार ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के उच्चीकरण के लिए 45 करोड़ डॉलर की राशि मंजूर की है। भारत की ओर से सवाल उठाए जाने पर अमेरिका ने इस पर सफाई दी थी। अमेरिका ने अपनी सफाई में कहा था कि पाकिस्तान को ये सहायता भारत को संदेश देने के लिए नहीं दी गई। पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अभियान में सहयोग के इरादे से यह मदद दी गई है। अमेरिका ने कहा था कि इससे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की भी सुरक्षा होगी। यह तो वही बात हो गई कि बंदर के हाथ में उस्तरा थमा दिया और यहां तो उस्तरा नहीं, एफ 16 ही थमा रहे हैं।
यह तो कुछ भी नहीं है बंधु। जयशंकर ने भारतीय-अमेरिकियों के साथ एक संवाद में रविवार को कहा, ‘‘मैं मीडिया में आने वाली खबरों को देखता हूं। कुछ समचार पत्र हैं, जिनके बार में आपको अच्छी तरह पता होता है कि वे क्या लिखने वाले हैं और ऐसा ही एक समाचार पत्र यहां भी है।’’ जयशंकर ने इशारे-इशारे में वाशिंगटन पोस्ट की जमकर क्लास लगा दी। उन्होंने भारत विरोधी ताकतों के मजबूत होने से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘मेरा यह कहना है कि कुछ लोग पूर्वाग्रही हैं। वे फैसले तय करने की कोशिश करते हैं और जैसे-जैसे भारत अपने फैसले खुद करना शुरू करेगा, इस तरह के लोग जो अपने को संरक्षक की भूमिका में देखते हैं उनके विचार बाहर आएंगे।’’ ऐसे समूहों कि ‘‘भारत में जीत नहीं हो रही है।’’
India's Statement at the General Debate of the 77th session of #UNGA. https://t.co/WuNNyRth4y
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) September 24, 2022
एस जयशंकर वही पर नहीं रुके। उन्होंने कहा कि ऐसे समूह देश के बाहर जीतने की कोशिश करते हैं और बाहर से भारत की राय व धारणाएं बनाने की कोशिश करते हैं। वे कहते हैं कि ‘‘हमें इसे लेकर सतर्क रहने की जरूरत है। चुनौती देना जरूरी है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि अधिकांश अमेरिकियों को यह नहीं पता होगा कि घर में किस तरह की बारीकियां और जटिलताएं हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि बैठे न रहें, दूसरों को मुझे परिषाभित करने का मौका न दें। यह एक ऐसी चीज है जो मुझे लगता है कि एक समुदाय के रूप में हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।’’
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कश्मीर मुद्दे को अमेरिकी राजधानी में गलत तरीके से पेश किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर कोई आतंकवादी घटना होती है तो यह मायने नहीं रखता कि किस धर्म के व्यक्ति की जान गई। उन्होंने कहा, ‘‘चाहे भारतीय सैनिक या भारतीय पुलिस कर्मियों का अपहरण किया जाए, चाहे सरकारी कर्मचारियों या अपने काम पर जा रहे आम नागरिकों की जान जाए? आपने कब लोगों को इस बारे में बात करते, निंदा करते सुना है बल्कि मीडिया की खबरों को देखिए। मीडिया में क्या दिखाया जाता है और क्या नहीं दिखाया जाता? ’’ विदेश मंत्री ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कहा कि इस तरह वास्तव में राय व धारणाएं आकार लेती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इंटरनेट बंद किये जाने को लेकर बड़ा शोर मचाया जा रहा है। अब यदि आप उस स्तर पर पहुंच गए हैं जहां आप कहते हैं कि इंटरनेट बंद कर देना मानव जीवन के नुकसान से अधिक खतरनाक है, तो मैं क्या कह सकता हूं?’’
जयशंकर ने यूरोप को लगाई थी फटकार
यदि आपको लगता है कि जयशंकर इतने वीर बलवान कब से बन गए, तो शायद आप कुछ भूल रहे हैं। स्मरण कीजिए वो समय, जब रूस और यूक्रेन में तनातनी अपने चरमोत्कर्ष पर थी और पाश्चात्य जगत भारत को झुकाने का पूरा प्रयास कर रहा था, यहां तक कि रूस से तेल खरीद को लेकर भी पश्चिमी देश भारत पर टूट पड़े थे। तब इस मामले पर पश्चिम को बेनकाब करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उनका धागा खोल दिया था। भारत-ब्रिटेन सामरिक फ्यूचर्स फोरम में बोलते हुए एस जयशंकर ने कहा था कि यूरोपीय देश रूसी गैस और तेल के सबसे बड़े आयातक थे।
रूसी कच्चे तेल को रियायती कीमतों पर खरीदने के निर्णय का बचाव करते हुए, विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के लिए ऊर्जा आपूर्ति पर अच्छे सौदे प्राप्त करना महत्वपूर्ण था, वो भी ऐसे समय में जब वैश्विक बाजार अस्थिर थे। उन्होंने आगे कहा, “यह दिलचस्प है क्योंकि हमने कुछ समय के लिए देखा है कि इस मुद्दे पर लगभग हमारे खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है। जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो मुझे लगता है कि देशों के लिए सस्ते बाजार में जाना स्वाभाविक है और एक देश के रूप में यह देखना कि उनके लोगों के लिए क्या अच्छे सौदे हैं।” उन्होंने कहा कि रूसी तेल और गैस के सबसे बड़े खरीदार यूरोप से थे। जयशंकर ने कहा, “मुझे पूरा यकीन है कि अगर हम दो या तीन महीने प्रतीक्षा करें और वास्तव में देखें कि रूसी तेल और गैस के बड़े खरीदार कौन हैं, तो मुझे संदेह है कि सूची पहले की तुलना में बहुत अलग नहीं होगी और मुझे संदेह है कि हम उस सूची में शीर्ष 10 में भी नहीं होंगे।”
यानी बात-बात पर ज्ञान देने वाले और अपना धौंस जमाने वाले पश्चिमी देशों को लेकर एस जयशंकर का रुख स्पष्ट था। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि पाश्चात्य जगत तो आशा छोड़ ही दे, भारत उनके झांसे में नहीं आने वाला और न ही उनका गुलाम है, जो बार बार उनकी सेवा सुश्रुषा करेगा। ऐसे में अब जयशंकर ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि यह नया भारत है, इसे किसी गोरे लंगूर की मान्यता नहीं चाहिए और कोई यदि दादागिरी करता है तो भारत बिना अधिक उग्र हुए उसे उसका वास्तविक स्थान भी दिखा सकता है।
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