Boycott Brahmastra: परंतु क्यों? क्या हम इतने मूर्ख हो गए हैं कि हम किसी भी वस्तु का निराधार बहिष्कार करेंगे? क्या हम बॉलीवुड के प्रति अपने विरोध में इतने अंधे हो चुके हैं कि हम ब्रह्मास्त्र जैसी फिल्म को बहिष्कृत करने का ‘दुस्साहस’ करेंगे, जो हमारे प्राचीन संस्कृति की महिमा का गुणगान करता है? अब बहिष्कार करना न करना एक व्यक्तिगत निर्णय है परंतु हमें इस तथ्य पर भी प्रकाश डालना होगा, जो इस परियोजना का मूल आधार है- अर्थात् अस्त्रों के सिद्धांत, ताकि Boycott Brahmastra का निर्णय परिपक्व हो, अतार्किक और यथार्थ से कोसों दूर नहीं। टीएफआई प्रीमियम में आपका स्वागत है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे ब्रह्मास्त्र नामक फिल्म का मूल आधार ही निराधार है और कैसे इसके Astraverse का सिद्धांत न केवल हास्यास्पद है अपितु अपमानजनक भी है, जो भारत के सनातन शास्त्र विज्ञान का उपहास उड़ाता है।
खड्गं चक्र-गदेषु-चाप-परिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिर: शंखं
ये ब्रह्मदेव द्वारा गाए गए देवी स्तुति का एक अभिन्न अंग है जिसका अर्थ है, “अपने 10 हस्तों में देवी के पास खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुंडी, शंख एवं कटा हुआ मस्तक है।” आइए, इन अस्त्रों और शस्त्रों का महत्व समझते हैं –
- खड्ग अर्थात् तलवार, यह बाहुयुद्ध में उपयोगी युद्धक शस्त्र है।
- चक्र अर्थात् धारदार चक्का, यह एक दूरवर्ती अस्त्र है जो अनेक लक्ष्य भेदने में सक्षम है।
- गदा, यह भी बाहुयुद्ध/मल्लयुद्ध में उपयोगी युद्धक अस्त्र है।
- बाण अर्थात् तीर, यह एक दूरवर्ती अस्त्र है जो अनेक लक्ष्य भेदने में सक्षम है।
- धनुष, वह अस्त्र जिसका उपयोग तीर चलाने हेतु किया जाता है।
- परिघ अर्थात् एक विशेष प्रकार की गदा, यह बाहु युद्ध में उपयोगी शस्त्र है।
- शूल माने भाला, यह निकटवर्ती एवं प्रक्षेपण के परिप्रेक्ष्य से बहुपयोगी हैं, जैसे त्रिशूल। ये अस्त्र भी है और शस्त्र भी
- भुशुंडी अर्थात् गुलेल, यह भी दूरवर्ती अस्त्र है।
- कटा हुआ मस्तक कोई शस्त्र नहीं परंतु इसका मनोवैज्ञानिक उपयोग लोगों में भय का संचार करने के लिए होता है।
- शंख भी कोई अस्त्र नहीं परंतु इसका उपयोग युद्ध के दिन का आरंभ एवं अंत की घोषणा करने हेतु होता है। इसका उपयोग तब भी होता है, जब कोई रथी अथवा महारथी एवं अतिरथी युद्ध में लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त होता है।
ऐसे में देवी स्तुति का यह पद्य प्राचीन भारत के आयुध विज्ञान को समझने का सबसे सरल उपाय है। इन 10 में से, 1, 3 एवं 6 पूर्ण शस्त्र हैं। 2, 4, 5 एवं 8 अस्त्र हैं, जबकि 9 एवं 10 तो न अस्त्र हैं और न शस्त्र, परंतु 7 अस्त्र भी है और शस्त्र भी। सरल शब्दों में युद्ध के समय शस्त्रों को हाथ में लेकर लड़ना अति आवश्यक है (अब ऐसे तो मुक्त, मुक्तामुक्त की एक अतिरिक्त श्रेणी है, परंतु उस पर बाद में) और अस्त्रों का भी या तो प्रत्यक्ष प्रक्षेपण होना चाहिए अथवा सही स्थान से ही प्रक्षेपित किया जाना चाहिए।
अब आपकी सरलता हेतु केवल बाणों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं। सबसे सामान्य बाण हैं नाराच (वह बाण जो पूरा लोहे का हो )। किसी युद्ध में चलाए जाने वाले बाण अधिकतम नाराच श्रेणी के ही होते हैं और किसी योग्य धनुर्धारी के लिए नाराच शत्रु खेमे में त्राहिमाम मचा सकते थे। क्या आप जानते हैं कि केवल नाराच बाणों की सहायता से प्रभु श्रीराम ने अपने से कई गुना शक्तिशाली खर, दूषण, त्रिशिरा एवं 14,000 अन्य राक्षसों की सेना का विध्वंस करने में सफलता पायी, वो भी मात्र 72 मिनटों में? अद्भुत, अविश्वसनीय उपलब्धि थी ये, जय श्री राम!
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अब आते हैं दिव्य बाण एवं दिव्यास्त्र पर, जिन्हें मंत्रोच्चार के माध्यम से प्रक्षेपित किया जाता था। आज जैसे आधुनिक शस्त्रों को लॉन्च कोड के माध्यम से प्रक्षेपित किया जाता है, ठीक वैसे ही दिव्यास्त्रों के लिए विशेष मंत्र होते थे, जिनमें सबसे उच्चतम दिव्यास्त्र कुछ इस प्रकार हुआ करते थे।
- आग्नेयास्त्र- यह अस्त्र शत्रु पर अग्निवर्षा कराता था
- पार्जनयास्त्र- यह अस्त्र शत्रु पर वर्षा करता था
- वायव्यास्त्र- यह अस्त्र शत्रु को वायु के भीषण ज्वार से ध्वस्त करने में सक्षम था
- पन्नागस्त्र- यह अस्त्र शत्रु पर नाग वर्षा कराता था
- गरुड़ अस्त्र- यह अस्त्र पन्नागस्त्र को निरुत्तर करने में सक्षम था क्योंकि पक्षीराज गरुड़ के उल्लेख से ही नाग लोक में त्राहिमाम मच जाता था
- ब्रह्मास्त्र- ब्रह्मा का अस्त्र। यह अस्त्र अचूक था परंतु अकाट्य नहीं। इसे कोई अन्य ब्रह्मास्त्र निरुत्तर भी कर सकता था, जिसके प्रलयंकारी परिणाम होते थे।
- नारायणास्त्र- नारायण का अस्त्र। यह अचूक भी था और अकाट्य भी। यह जब प्रक्षेपित हो जाता था तब इसमें समस्त ग्रह के हर प्राणी को हरने की शक्ति थी।
- पाशुपतास्त्र- महादेव का अस्त्र। यह भी अचूक एवं अकाट्य था। इसके प्रक्षेपित होने पर इसमें समस्त ग्रह का नाश करने की शक्ति होती थी
भारत में ऐसे विरले ही धनुर्धारी हुए हैं, जिन्होंने अंतिम तीनों अस्त्र यानी ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र और पाशुपतास्त्र को एक साथ धारण किया हो। अब ये दिव्यास्त्र किसी विशेष पदार्थ के नहीं बने थे, ये इसलिए भव्य एवं विशेष थे क्योंकि इनके उच्चारण और इनके विध्वंस की शक्ति में एक विशेषता थी और इसलिए इन्हें कोई साधारण प्राणी भूल से भी चुरा नहीं सकता था।
अब आते हैं Astraverse के हास्यास्पद सिद्धांत पर, जो निस्संदेह हॉलीवुड के मार्वलवर्स एवं डीसीवर्स से उठाया गया है। Astraverse अर्थात् अस्त्रों का लोक है। अरे बंधु, इनका अस्तित्व रामायण और महाभारत के कालखंड में भी नहीं हुआ करता था, बाण तो धनुर्धर के तरकश एवं दिव्यास्त्र उनके मस्तिष्क में विराजते थे।
तो ब्रह्मास्त्र का मूल स्त्रोत क्या है? फिल्म के अनुसार ये बुद्धिजीवियों का एक गुप्त समाज है जो इन अस्त्रों को कुटिल लोगों के हाथों में पहुंचने से बचाता है। ब्रह्मास्त्र इन ‘अस्त्रों का सिकंदर’ है और रणबीर कपूर (जो पहले रूमी थे और अब शिवा बन गए) स्वयं एक अस्त्र हैं। ब्रह्मास्त्र की कथा में वानारास्त्र जैसे ‘अस्त्रों’ की बात कही गई है, जिसमें पवनपुत्र हनुमान की शक्तियां है एवं नंदीअस्त्र के पास भगवान शंकर के वाहन नंदी जी की शक्तियां समाहित हैं।
यहां क्या कोई नौटंकी चल रही है? किस सिद्धांत में इनका उल्लेख हुआ, कोई हमें भी बताए। ऐसा सोचना भी अतार्किक और विचित्र होगा। हनुमान जी को शत्रुओं पर वैसे भी फेंका नहीं जाता और यदि ऐसा है तो यह प्रभु श्रीराम के परमभक्त हनुमान जी के पराक्रम का अपमान करने के समान है। अब नंदीअस्त्र पर भी इस फिल्म के निर्माता और लेखक तनिक ज्ञान चक्षु खोल लेते तो समाज के साथ इनका भी कल्याण हो जाता। सर्वप्रथम, ये व्याकरण में ही पराजित हो गए। नंदी के अंत में ‘ई’ आता है एवं अस्त्र का प्रारंभ अ से होता है। तो ई/इ + अ से ‘अ’ नहीं ‘य्’ होगा, जैसे यदि + अपि = यद्यपि होता है। यह यण संधि स्वर संधि पद्धति का हिस्सा है। तो नंदी+अस्त्र = नन्द्यासत्र होना चाहिए न कि नंदीअस्त्र।
इसके अतिरिक्त ब्रह्मास्त्र को अस्त्रों का सिकंदर माना गया है और मैं नहीं जानता कि अलेक्जेंडर का संबंध दिवयास्त्रों से कैसे था, परंतु यहां तो ऐसा प्रतीत होता है कि उनका संबंध इनसे भी बताया गया है। वैसे भी, अस्त्रों का कोई राज्य नहीं होता और यदि है भी तो उसमें ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र से कम शक्तिशाली है और यहां अलेक्जेंडर से तुलना, सच में? अगर रणबीर कपूर किसी फिदायीन (सुसाइड बॉम्बर) की भूमिका निभा रहे हैं तो निस्संदेह उन्हें एक ‘अस्त्र’ कहा जा सकता है (एक सेल्फ गाइडेड अस्त्र), अन्यथा किसी भी अन्य स्थिति में यह प्रथम श्रेणी की अज्ञानता है।
सत्य कहें तो करण जौहर की आगामी फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ का प्राचीन भारत के आयुधकला से कोई वास्ता नहीं है। इसमें हमारे दिवयास्त्रों को केवल भौतिक वस्तुओं की भांति दिखाया गया है और कभी-कभी तो मानव संसाधनों की भांति, जो हास्यास्पद भी है और अपमानजनक भी। यह फिल्म हनुमान जी और नंदीश्वर का घोर अपमान करने को उद्यत है और अन्य देवताओं पर तो अभी हमने चर्चा भी नहीं की है। इस चलचित्र का आम कारणों से बहिष्कार नहीं करना है, इस फिल्म का यदि बहिष्कार करें तो व्यावहारिकता के घोर अभाव के लिए, अनुसंधान एवं शोध के घोर अभाव के लिए एवं भारतीय आयुध विज्ञान की मूल बोध के अभाव के लिए। जो भी थियेटर इस चलचित्र का प्रदर्शन करेगा, उससे मैं तो दस कोस दूर रहने का प्रयास करुंगा।
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