यह बात जीवों के लिए कही जाती है कि पृथ्वी पर सबका एक तय समय लिखा हुआ है, कोई अमर होने का वरदान लेकर नहीं आया है, यह सत्य भी है ! लेकिन जब बात ऐसी जगहों की आती है, जो वास्तव में अपनी शुरुआती दिनों में ऐसा प्रतीत कराते थे कि कुछ भी हो जाए उनका अस्तित्व और उनकी महत्ता वही रहेगी और कोई उन्हें टक्कर नहीं दे पाएगा लेकिन जब ऐसी चीजे ही खत्म होने की ओर बढ़ने लगती है तो सवाल उठना लाजमी है। कुछ ऐसा ही मिथक नोएडा के द ग्रेट इंडिया प्लेस, जिसे जीआईपी मॉल के नाम से भी जाना जाता है, उसके बारे में भी था पर आज वो मिथक टूट रहा है और जीआईपी मॉल की बिक्री के साथ ही सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या भारत में शॉपिंग संस्कृति के अंतिम खेल की शुरुआत हो गई है।
दरअसल, कभी भारत के सबसे बड़े मॉल के रूप में जाना जाने वाला नोएडा का द ग्रेट इंडिया प्लेस, जिसे वर्ष 2007 में बनाया गया था आज बिकने की कगार पर है। रिपोर्ट के अनुसार, एंटरटेनमेंट सिटी लिमिटेड के प्रमोटर, जो जीआईपी मॉल का संचालन करते थे इसे बेचने को इच्छुक हैं और इस सौदे का पूरा मूल्य 2000 करोड़ रुपये आंका गया है। इस बिक्री से जीआईपी मॉल पर जो पंजाब नेशनल बैंक का करीब 800 करोड़ रुपये का कर्ज है उसको चुक्ता किया जाएगा और इस बिक्री के साथ ही कभी देश का सबसे बड़ा मॉल कहा जाने वाला जीआईपी स्मृति में रह जाएगा।
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कम होती चली गई जीआईपी मॉल की लोकप्रियता
147 एकड़ का पूरा विकसित क्षेत्र जिसमें द ग्रेट इंडिया प्लेस, गार्डन्स गैलेरिया मॉल, वंडर्स ऑफ वंडर, एम्यूजमेंट पार्क और किडजानिया शामिल हैं, यह पूरा क्षेत्र बेच दिया जाएगा। नया खरीदार बाद में खाली भूमि को विकसित करने के लिए स्वतंत्र होगा, जो वर्तमान में 1.7 मिलियन वर्ग फुट है। खाली भूमि का उपयोग वाणिज्यिक या आवासीय भवनों के निर्माण के लिए किया जा सकता है, जो अतिरिक्त लाभ में गिना जा सकता है। वर्ष 2007 में बना यह मॉल अपनी शुरुआत से ही ख्याति पा चुका था। देशभर में इसकी अलग ही आभा डोल रही थी और दिल्ली एनसीआर आने वाला हर ग्राहक यहां आकर शॉपिंग अवश्य करता था। पर यह प्रवृत्ति वर्ष 2016 में बदलनी शुरू हुई जब जीआईपी के ठीक सामने डीएलएफ मॉल ऑफ इंडिया आ गया।
इसके बाद से जीआईपी मॉल की लोकप्रियता कम होती चली गई। यहां से एक-एक कर कई कंपनियों के शोरूम भी चले गए। वर्ष 2019 में, DLF ने GIC के साथ अपने संयुक्त उद्यम फॉर्म के बकाया के निपटान के प्रयासों के तहत, शॉपिंग मॉल को अपनी सहायक फर्म को 2,950 करोड़ रुपये में स्थानांतरित कर दिया। डीएलएफ को डीएलएफ साइबर सिटी डेवलपर्स लिमिटेड (डीसीसीडीएल) को 8,700 करोड़ रुपये का भुगतान करना है, जो डीएलएफ और सिंगापुर के सॉवरेन वेल्थ फंड जीआईसी की संयुक्त उद्यम फर्म है। असर यह हुआ कि जीआईपी मॉल भी खाली होता चला गया और फिर कोरोना काल ने कंगाली में आटा घीला वाला काम किया और उस समय में भी यहां से कई बड़ी कंपनियों के शोरूम चले गए।
ज्ञात हो कि भारत हमेशा से ही मॉल्स को पसंद करने वाला देश नहीं रहा है। आधुनिकीकरण ने नवीनीकरण पर ज़ोर दिया और शॉपिंग मॉल संस्कृति ने 1990 के दशक के दौरान भारत में प्रवेश किया। भारत का पहला मॉल ‘अंसल प्लाजा’ था, जिसे 1 नवंबर 1999 में खोला गया था। वर्ष 2002 के अंत तक, भारत में केवल दिल्ली का अंसल प्लाजा, चेन्नई का स्पेंसर प्लाजा, मुंबई का चौराहा केवल तीन मॉल थे। वर्ष 2008 में मंदी के दौरान मॉल संस्कृति धीमी हो गई और जैसे ही उस स्थिति से व्यवसाय ने पार पाया, उम्मीद की किरण फिर से वापस लौट आई और मॉल संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ। वर्ष 2011 तक, हर शहर में एक मॉल था और इसी के परिणामस्वरूप मॉल हर वर्ग और क्षेत्र के तालमेल का गंतव्य बन गए।
ई-कॉमर्स ने किया खेल
मॉल संस्कृति पर एक और नया आक्रमण वर्ष 2014-15 से शुरू हुआ जब ऑनलाइन खरीद की उपयोगिता बढ़ी। वर्ष 2014-15 के दौरान ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म आने शुरू हुए और उन्होंने कहीं न कहीं मॉल्स को कड़ी टक्कर दी। लोगों का मन परिवर्तित होना शुरू हुआ और दुकान-दुकान चक्कर लगाने से बचने के सरल उपाय के रूप में लोगों ने ऑनलाइन को प्राथमिकता दी और उसका चयन किया। डिजिटलाइजेशन ने मॉल संस्कृति को ख़त्म करने में एक बड़ी भूमिका निभाई है। हर शख्स के हाथ में मोबाइल फ़ोन है। डेटा सस्ता है। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स ने ग्राहकों के लिए शॉपिंग आसान बना दी है। ऐसे में लोग मॉल जाने की बजाय घर से ही ई-कॉमर्स वेबसाइट्स के जरिए शॉपिंग कर रहे हैं।
एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए आपको अपने लिए एडिडास का जूता लेना है। आप दो तरह से जूता खरीद सकते हैं। एक तरीका है कि आप बेड पर लेटे-लेटे या फिर कुर्सी पर बैठे हुए, ई-कॉमर्स वेबसाइट पर जाएं, अच्छा डिस्काउंट देखें- चयन के लिए उपलब्ध अनगिनत विकल्प देखें, दूसरी कंपनी के जूतों से तुलना करें, जो बेहतर लगे उसे ऑर्डर करें और शाम तक जूता आपके घर आ जाएगा।
दूसरा उदाहरण है कि आप बेड से उठें, गाड़ी निकालकर मॉल जाएं। मॉल में जाकर शॉपिंग करें और कम डिस्काउंट पर कम विकल्पों से बिना तुलना के एक जूता लेकर घर वापस आएं। आपका आधा दिन इसी में निकल जाएगा। अब आप बताइए, आप कौन-सा विकल्प चुनेंगे? ई-कॉमर्स वेबसाइट का या फिर मॉल से शॉपिंग का। निश्चित तौर पर ई-कॉमर्स वेबसाइट का। मॉल संस्कृति को ख़त्म करने में मॉल्स को ख़त्म करने की कगार पर लाने में ई-कॉमर्स वेबसाइट की बहुत बड़ी भूमिका है।
कोरोना का घातक असर
वहीं, रही बची कसर कोरोना काल ने पूरी कर दी। महामारी ने सबसे बड़ी मार उन व्यापारियों को दी, जो रोज़ दुकान खोलकर व्यवसाय करते थे। महामारी ने महीनों तक दुकानों के शटर बंद करा दिए। मार्च 2019 से अप्रैल 2020 के दौरान, मॉल्स का भयंकर नुकसान हुआ, जिससे 1 लाख से अधिक लोग बेरोजगार हो गए। जिन मॉल्स में भारी मात्रा में धन का निवेश किया गया था, वे धीरे-धीरे क़र्ज़ के तले में दबते चले गए क्योंकि उनका प्रदर्शन खराब हो गया। यह अनुमान लगाया गया था कि निकट भविष्य में अधिकांश मॉल बंद हो जाएंगे और जो अनुमान लगाया गया था वह समय से पूर्व ही शुरू हो चुका है। मॉल बंद होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि व्यापारी अब स्टोर किराया और महंगा रखरखाव करने में सक्षम नहीं हैं।
इस तरह से कोरोना ने मॉल की अर्थव्यवस्था को तोड़कर रख दिया। कोरोना जब कम हुआ, पाबंदियां हटने लगी तो दूसरी व्यवस्थाएं तो धीरे-धीरे संचालित होने लगी लेकिन मॉल में लोग आना शुरु नहीं हुए। आए भी तो बहुत कम। दरअसल, लॉकडाउन के दिनों में लोगों ने ऑनलाइन शॉपिंग को ठीक से समझा और उसकी आदत उन्हें पड़ गई। ऐसे में मॉल खुलने के बाद भी वो मॉल में आने की बजाय ई-कॉमर्स वेबसाइट्स से व्यापार करने पर ज़ोर देने लगे।
इन सभी वज़हों से आज भारत में मॉल के प्रति लोगों का आकर्षण कम हो रहा है। आज लोग ई-कॉमर्स वेबसाइट से शॉपिंग को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। ऐसे में अगर मॉल्स को स्वयं को बचाना है तो उन्हें बदलाव करना होगा वरना स्थिति तो वैसे भी डांवाडोल ही चल रही है। मॉल्स अगर अब भी स्वयं को बचाने पर ध्यान नहीं देंगे तो आने वाले समय में उनकी हालत भी जीआईपी मॉल समान ही हो सकती है।
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