भारत और भारतीयों के लिए बहुत आसान है प्रेम और स्नेह जताना। भारतीय शब्द जुड़ते ही भावनाएं प्रागाढ़ होना भारतीयों के मन में एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसको दूर करना असंभव ही है। कोई भी, कहीं भी शिखर पर पहुंच रहा हो, उपलब्धि हासिल कर रहा हो, बुलंदी पर पहुंच रहा हो, यदि वो मूल रूप से भारतीय है तो भारत का प्रत्येक नागरिक उसके समर्थन में खड़ा हो जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ ऋषि सुनक मामले में, पर यह किस हद तक सही है इसका विचार करने का समय आ गया है। आज ऋषि सुनक ब्रिटेन के पीएम नहीं बन पायें हैं और उन्हें बनना चाहिए था ऐसी मांग भारत के लोगों की थी पर क्यों? जब हमने पीएम के तौर पर सोनिया गांधी का विरोध किया तो हम ऋषि सुनक के यूके के पीएम नहीं बनने से परेशान क्यों हैं?
केवल भारतीय मूल का होने मात्र से समर्थन देना सही नहीं
ज़रूरी नहीं के भारतीय मूल का होने मात्र से किसी का समर्थन कर देना चाहिए। अगर भारतीय होना इतना ही काम आता तो आज कमला हैरिस वो न होतीं जो वो हैं। हैरिस के मामले में यह काफी स्पष्ट था और जैसे ऋषि सुनक की उम्मीदवारी का समर्थन किया जा रहा था ठीक उसी तरह भारतीय जड़ों के कारण कमला हैरिस के चुनाव का स्वागत किया गया था। हालांकि, परिणाम क्या रहा वो सबके सामने है। उसी हैरिस-बाइडेन प्रशासन ने कश्मीर पर पाकिस्तान समर्थक प्रस्ताव पारित किया। हैरिस के अतिरिक्त एक ऐसे भारतीय भी रहे हैं जिन्होंने अमेरिकी बनने के बाद स्वयं को भारतीय होने से ही अलग कर लिया था। अमेरिका के लुसियाना के पूर्व गवर्नर भारतीय मूल के बॉबी जिंदल ने अमेरिका में रह रहे भारतीयों को पाठ पढ़ाते हुए कहा था कि, “खुद को भारतीय अमेरिकी कहना बंद करें।” उन्होंने स्वयं को भी भारतीय-अमेरिकी कहे जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि “उनके माता-पिता भारत से अमेरिका, अमेरिकी बनने आए थे, न कि भारतीय अमेरिकी।”
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ऐसे में यह नहीं भूलना चाहिए कि जैसे भारत के सर्वोच्च पदों पर किसी गैर भारतीयों को नहीं बैठने दिया गया, बैठाने की बात आयी तो सोनिया गांधी तक का विरोध किया गया जबकि वो राजीव गांधी की विवाहिता थी और उन्होंने भारतीय नागरिकता भी हासिल कर ली थी, पर चूंकि वो मूल रूप से इटली की थीं, उनके प्रधानमंत्री बनने की चर्चा पर ही बवाल खड़ा हो गया और सुषमा स्वराज के धमकाने के बाद तो माहौल ही परिवर्तित हो गया, परिणामस्वरूप सोनिया गांधी 2004 में प्रधानमंत्री नहीं बनीं।
कुछ ऐसा ही इस बार ब्रिटेन में हुआ। ऋषि सुनक यूनाइटेड किंगडम के पीएम बनने की दौड़ से बाहर हो गए हैं, क्योंकि उन्हें राज्य की पूर्व सचिव लिज़ ट्रस से 21,000 कम वोट मिले थे। ऋषि सुनक केवल 42.6 प्रतिशत सदस्यों का विश्वास जीत सके जबकि ट्रस 57.4 प्रतिशत सदस्यों के भारी समर्थन से जीती हैं। नेताओं के साथ-साथ देश की नीतियां भी बदलती हैं लेकिन ब्रिटेन के मामले में ऐसा नहीं है। भारत के साथ बहुत कुछ बदलने वाला नहीं है क्योंकि ट्रस का भारतीय कैबिनेट मंत्रियों के साथ एक उत्कृष्ट कामकाजी संबंध है और हम उम्मीद कर सकते हैं कि दिवाली से पहले भारत के साथ एफटीए को अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
ऐसे में भावविभोर हो रहे भारतीयों को यह समझने की ज़रुरत है कि हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती। यह ऋषि सुनक थे जिनके इस्तीफे ने यूके सरकार से बाहर निकलने की एक श्रृंखला शुरू कर दी और अंततः बोरिस जॉनसन के पतन का प्रमुख कारण बना। भारतीय समुदाय इस बात से खुश था कि आखिरकार एक भारतीय व्यक्ति भारत के पूर्व उपनिवेशवादी यानी ब्रिटेन पर शासन करेगा। आम भावना ऐसी थी, ‘स्वतंत्रता के सिर्फ 75 वर्षों में ब्रिटेन पर अधिकार करने वाला एक भारतीय’ यानी जिसने हम पर शासन किया अब हम उन पर शासन करेंगे। इसे जनभावना कहें या एक भारतीय होने के नाते गर्व की अनुभूति पर यही सच था।
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जब सोनिया गांधी को लेकर खड़ा हो गया था बवाल
वहीं भारतीय राजनीति की ही बात करें तो वर्ष 1991 से राजनीति में जो परिवर्तन आ रहे थे उससे यह लगने लगा था कि आगामी भविष्य में भारत की अगली प्रधानमंत्री और कोई नहीं बल्कि सोनिया गांधी ही होंगी और कहीं न कहीं यह आंकलन सही भी होने लगा था। जब 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार चली गयी थी तो यह अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस अब सोनिया गांधी का ही चयन करेगी। इस बीच 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद जब राजनीतिक गलियारों में सोनिया गांधी के पीएम बनने और कांग्रेस की सत्ता वापस देश में आने की चर्चाएं हुई तब सुषमा स्वराज ने एक ऐलान कर दिया। दरअसल कर्नाटक के बेल्लारी से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सोनिया गांधी संसद पहुंच गयी थीं। कांग्रेस ने सोनिया गांधी को पीएम बनाने का ऐलान किया कांग्रेस के इस ऐलान से सुषमा स्वराज बिफर गयी और उन्होंने कह दिया था कि “अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो अपने पद को त्यागने के साथ ही वे अपने बाल कटवा लेंगी और पूरा जीवन एक भिक्षु की तरह बिताएंगी। रंगीन वस्त्र के स्थान पर सफेद कपड़े पहनेंगी।”
सुषमा स्वराज के इस बयान के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया और उनकी जगह मनमोहन सिंह देश के अगले प्रधानमंत्री बने। बात सत्य भी थी कि भारत को चलाने वाला/वाली भारतीय होना चाहिए। यह कोई भी नहीं चाहेगा कि उसके ऊपर शासन करने वाला/वाली कोई गैर भारतीय हो। ऐसे में अगर एक भारतीय के रूप में सोनिया गांधी के चयन पर ऐसी सोच है तो निश्चित रूप से ब्रिटेन के लोगों में भी यही चर्चा रही होगी कि उनके मूल का ही कोई हो। हम भारतीयों ने सोचा था कि सोनिया गांधी विदेशी होने के कारण भारत का नेतृत्व नहीं कर सकती हैं, उसी तरह अंग्रेज सोच सकते हैं कि सुनक भारतीय मूल के होने के कारण यूके का नेतृत्व नहीं कर सकते।
बात बड़ी साफ़ है कि एक भारतीय के रूप में हमें अपने अधिकारों का ज्ञान होना आवश्यक है तो यह बात भी ध्यान में लाने वाली है कि अन्य देशों की भी अपनी नीति-नियामक होते हैं और वो उनके अनुसार ही काम करते हैं। ऐसे में एक सभ्य समाज का हिस्सा होने के नाते हमें सहज रूप से इस बात का सम्मान करना चाहिए।
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