समय चलायमान और परिवर्तनशील है वह कभी भी एक सा नहीं रहता। चावल की बात करें तो भारत दुनिया में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत में चावल का उत्पादन वित्त वर्ष 1980 में 53.6 मिलियन टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2020-21 में 120 मिलियन टन हो गया। यह भारत के प्रभाव और शक्ति को दर्शाने के लिए काफी है कि खाद्यान निर्माण का प्रभुत्व भारत के चावल पैदा करने की शक्ति से आंका जा सकता है। लेकिन जैसा कि यह फसल पर निर्भर करता है कि पिछले वर्ष से उत्पादन बढेगा, कम होगा या स्थिर रहेगा। इसी क्रम में इस बार जो कमी आंकी गई वो थी खरीफ सीजन में धान की फसल के रकबे में गिरावट आना। देश में चावल की बढ़ती कीमतों और धान की बुवाई का रकबा घटने के बाद पैदावार में कमी की आशंका के कारण सरकार ने निर्यात शुल्क बढाने की घोषणा कर दी है।
दरअसल, सरकार के राजस्व विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, गैर-बासमती चावल पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाने के बाद सरकार ने घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने 8 सितंबर, 2022 को एक अधिसूचना में कहा, “टूटे हुए चावल की निर्यात नीति को ‘मुक्त’ से ‘निषिद्ध’ में संशोधित किया गया है।” यह अधिसूचना 9 सितंबर, 2022 से प्रभाव में आ गई है। बता दें, सरकार ने मौजूदा खरीफ सीजन में धान की फसल के रकबे में गिरावट के बीच बृहस्पतिवार को गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगा दिया है। हालांकि, उबले और बासमती चावल के निर्यात को इस प्रतिबंध से बाहर रखा गया है।
सरकार के अनुसार, अब सिर्फ उन कंसाइन्मेंट के एक्सपोर्ट की इजाजत होगी जिनकी लोडिंग और बिलिंग हो चुकी है और जो पोर्ट पर कस्टम को सुपुर्द कर दिया गया है। इस कदम से घरेलू बाजार में चावल की सप्लाई बढ़ जाएगी जिससे कीमतों में आया उछाल घटने का अनुमान है। वहीं, दूसरे अन्य कदमों से भी चावल की अन्य ग्रेड के लिए एक्सपोर्ट महंगा हो जाएगा और इससे भी घरेलू बाजार में सप्लाई बढ़ेगा और कीमतों में नरमी देखने को मिलेगी।
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चावल की बढ़ती कीमतों पर लगेगा ब्रेक
ज्ञात हो कि घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। कृषि मंत्रालय के अनुसार, कुछ राज्यों में बारिश कम होने से मौजूदा खरीफ सीजन में अब तक धान का बुवाई क्षेत्र 5.62 फीसदी घटकर 383.99 लाख हेक्टेयर रह गया है। चावल के वैश्विक व्यापार में भारत का हिस्सा 40 फीसदी है। भारत ने वर्ष 2021-22 में 2.12 करोड़ टन चावल निर्यात किया था। इस दौरान 150 से अधिक देशों को 6.11 अरब डॉलर का गैर-बासमती चावल निर्यात किया गया था। अब कर लगाने से गैर बासमती चावल के निर्यात में 20 से 30 लाख टन की कमी आएगी, जो भारत में विभिन्न अवसरों पर पड़ने वाली आवश्यकताओं के समय उसकी आपूर्ति के लिए काम आएगा। ज्ञात हो कि पशु चारे के लिए भी समुचित मात्रा में टूटा चावल उपयोग में लाया जाता है। साथ ही इसका इस्तेमाल इथेनॉल में मिलाने के लिए भी किया जाता है।
वहीं, इस कदम को बाज़ार के जानकर और मुख्यतः चावल से संबंधित व्यापारी देश के लिए सकारात्मक बता रहे हैं। वह ऐसे कि अबतक अपने ही देश में उपजा चावल जब यहां से निर्यात होकर बाहर जाता था तो बहुत कम दामों में जाया करता था, जो भारतीय बाजार के लिए इतना लाभप्रद नहीं था। यह अतिरिक्त 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाने के बाद महंगाई पर भी अंकुश लगाने की कवायद है, ऐसा माना जा रहा है। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने निर्यात शुल्क लगाने के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, “भारतीय चावल का निर्यात काफी कम कीमत पर हो रहा था। निर्यात शुल्क से गैर-बासमती चावल के निर्यात में 20 से 30 लाख टन की कमी आएगी। सरकार के इस कदम से निर्यात से प्राप्ति पर कोई असर नहीं पड़ेगा।”
आपको बता दें कि चीन के बाद चावल उत्पादन में दूसरे स्थान पर मौजूद भारत इस खाद्यान्न के वैश्विक व्यापार में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने 2.12 करोड़ टन चावल का निर्यात किया था, जिसमें से 39.4 लाख टन बासमती चावल था। केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने शुक्रवार को कहा कि उसना चावल को छोड़कर बाकी सभी गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने से घरेलू स्तर पर चावल की कीमतों को काबू करने में मदद मिलेगी। चावल की थोक कीमतें एक वर्ष में करीब आठ प्रतिशत बढ़कर 3,291 रुपये प्रति क्विंटल हो चुकी है। वहीं, बासमती चावल के निर्यात पर न तो प्रतिबंध लगाया गया है और न ही उस पर कोई सीमा-शुल्क लगा है।
आम आदमी की जेब पर कम होगा दबाव
यहां यह समझना आवश्यक है कि इससे भारतीय बाजार को लाभ होगा, नुकसान नहीं। वो ऐसे कि पिछले एक सप्ताह में भारत में चावल की कीमतों में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है क्योंकि पड़ोसी बांग्लादेश ने फिर से चावल पर आयात शुल्क 25 प्रतिशत से घटाकर 15.25 प्रतिशत कर दिया है। आयात शुल्क में कमी से बांग्लादेश से चावल की मांग बढ़ने की उम्मीद है। हाल ही में घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने गेहूं या मेसलिन के आटे के लिए छूट की नीति में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। यह कदम अब गेहूं के आटे के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति देगा, जिससे देश में गेहूं के आटे की बढ़ती कीमतों पर भी अंकुश लगेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के आटे की बढ़ती मांग के कारण घरेलू बाजार में गेहूं के आटे की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
ऐसे में मोदी सरकार इस परिप्रेक्ष्य में निर्णय ले रही कि महंगाई पर अंततः किन-किन माध्यमों और किन-किन नियमों के माध्यम से सख्ती बढाकर अंकुश लगाया जाए। गैर-बासमती चावल पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाने की घोषणा इसका एक भागमात्र है। आगामी दिनों में मोदी सरकार की ओर से कई ऐसे निर्णय लिए जा सकते हैं जिससे रिकॉर्ड उछाल को नियंत्रण में लाया जाएगा और आम आदमी की जेब पर दबाव भी कम पड़ेगा।
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