स्वतंत्रता और अधिकार का रोना रोने वाले ‘बुर्का गैंग’ की कोर्ट रूम में भारी बेइज्जती हो गयी

'बुर्का गैंग' अब दोबारा हंगामा करने से पहले हजार बार सोचेगा

burka

भारत एक ऐसा देश है जहां हर धर्म के लोगों को अपने अनुसार रहने की पूरी स्वतंत्रता मिलती है। आप जो चाहे कर सकते हैं, जो मन हो वो पहन सकते हैं। परंतु समस्या तब आ खड़ी होती है जब स्वतंत्रता के नाम पर कुछ लोग असंगत मांगें रखने लगते हैं और इसके माध्यम से देश के माहौल को बिगाड़ने में लग जाते हैं। ऐसा ही कुछ बीते महीने कर्नाटक में भी देखने को मिला था। सबने देखा कि किस तरह कर्नाटक में बुर्का गैंग सक्रिय हो गया और स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने की मांग को लेकर नौटंकी करने लगा था।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश हेमंत गुप्ता और न्यायधीश सुधांशु धूलिया ने कोर्ट रूम में बुर्का गैंग को दर्पण दिखाते हुए ऐसी क्लास लगायी कि वो इस तरह के व्यर्थ मुद्दों को उठाने का साहस नहीं करेगा।  

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बुर्का गैंग से कोर्ट में पूछे गये तीखे प्रश्न

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाल ही में हिजाब विवाद पर सुनवाई की, इस दौरान उन्होंने बुर्का गैंग पर कई प्रश्नों की झड़ी लगा दी। न्यायाधीशों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का पूरा अधिकार है, परंतु इसके साथ ही उन्होंने प्रश्न पूछा कि क्या यह अधिकार निर्धारित यूनिफॉर्म (Uniform) वाले स्कूल में भी लागू हो सकता है? क्या छात्राओं को जो इच्छा हो वह पहनकर स्कूल में आ सकती हैं। यही नहीं न्यायाधीशों की पीठ ने तो यह तक पूछा कि क्या छात्राओं का मन होगा तो वो मिनी स्कर्ट और मिडी पहनकर स्कूल जा सकती हैं?

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कोर्ट रूम में भी एक ड्रेस कोड का पालन किया जाता है। यहां कोई महिला जींस पहनकर कह सकती है कि यह उसकी पसंद है? गोल्फ कोर्स का एक ड्रेस कोड है और कुछ रेस्तरां में भी एक ड्रेस कोड होता है।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों ने बुर्का गैंग को दर्पण दिखाते हुए स्पष्ट शब्दों में यह बताया कि जिस स्कूल-कॉलेज में वो धर्म की आड़ लेकर अपनी मनमानी चलाना चाहती हैं, वहां उनकी एक नहीं चलने वाली। वहीं कोर्ट में जब सुनवाई के दौरान पगड़ी की तुलना हिजाब से की गयी तो इस पर भी जजों के द्वारा हिजाब गैंग को करारा जवाब दिया गया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने यह तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय में भी न्यायाधीश तिलक, पगड़ी आदि पहनते हैं, तो फिर महिलाओं को क्यों सरकार द्वारा तय किए गए यूनिफॉर्म का पालन करने को विविश किया गया। इस पर न्यायधीश हेमंत गुप्ता ने दो टूक कहा कि पगड़ी हिजाब के बराबर नहीं है। दोनों की तुलना नहीं की जा सकती। यह धार्मिक नहीं हैं। शाही राज्यों में पगड़ी को पहना जा सकता था। मेरे दादा कानून का अभ्यास करते हुए इसे पहनते थे। इसे धर्म से मत जोड़ें।

केवल इतना ही नहीं उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान स्कूल-कॉलेज में महिलाओं को हिजाब पहनने की अनुमति नहीं देने पर शिक्षा से वंचित रहने तक का तर्क दिया गया। जिस पर पीठ ने कहा कि राज्य यानी कर्नाटक सरकार आपसे आपके किसी अधिकार को अस्वीकार नहीं कर रही। वो केवल इतना ही कह रही है कि आप उस ड्रेस में स्कूल आए, जो विद्यार्थियों के लिए निर्धारित है।

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हिजाब विवाद ने इस साल की शुरुआत में जोर पकड़ा था

आजकल माहौल ऐसा बन रहा है कि जिहादी मानसिकता वाले लोग देश को अपने हिसाब से चलाने के प्रयासों में जुटे रहते हैं। वो चाहते हैं कि हर चीज उनके  हिसाब से हो और अगर उनकी मनमानी नहीं चलती तो वो धर्म का हवाला, अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव जैसी नौटंकियां करने लगते हैं। इन लोगों का एजेंडा केवल एक ही नजर आता है कि कोई भी मुद्दा उठाकर व्यर्थ का ड्रामा करो। जब इन्हें कोई मुद्दा नहीं मिला, तो उन्होंने हिजाब के मुद्दे को ही पूरे देश में हवा दे दी, जिसको लेकर काफी बड़ा बखेड़ा भी खड़ा हो गया था।

कर्नाटक में हिजाब विवाद ने इस साल की शुरुआत में जोर पकड़ा था, जब नयी वर्दी नीति के कारण हिजाब पहनकर स्कूल पहुंची लड़कियों को प्रवेश करने से रोका गया था। इसका विरोध शुरू हुआ और लड़कियां हिजाब पहनकर स्कूल जाने की मांग पर अड़ गयीं। देखते ही देखते इस बवाल ने बड़ा रूप ले लिया और कर्नाटक के बाद दूसरे राज्यों में भी हिजाब विवाद का प्रभाव देखने को मिलने लगा। हिजाब विवाद को लेकर देश में कई दिनों तक काफी हंगामा देखने को मिला था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने धर्म की आड़ में व्यर्थ की मांगों को लेकर देश में बवाल मचाने वाले बुर्का गैंग की एक बार फिर से अच्छे से क्लास लगायी है।

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