प्रजा त्रस्त, राजा मस्त, वर्तमान समय में यह कहावत झारखंड की स्थिति पर एकदम सटीक बैठती है। इसमें लेश मात्र संदेह नहीं है कि हेमंत सोरेन की सरकार में राज्य की कानून व्यवस्था चरमराती चली जा रही है। दुमका में दो मासूम बच्चियों के साथ हुई वारदातों ने हर किसी को हिलाकर रख दिया। परंतु मासूमों को न्याय दिलाने के बजाए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तो पिकनिक मनाने से लेकर अपनी सरकार बचाने के जद्दोजहद में लगे हुए हैं। उन्हें झारखंड की बच्चियों की तो जैसे पड़ी ही नहीं है। केवल यही नहीं एक तो स्वयं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन घटनाओं को गंभीरता से ले नहीं रहे तो वहीं दूसरी तरफ उनकी ही सरकार जांच में बाधा डालने के प्रयास कर रही है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे NCPCR ने चौंकाने वाले खुलासे करते हुए झारखंड सरकार की पोल पट्टी खोलकर रख दी है।
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NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने क्या कहा है
दरअसल, सोमवार को दुमका पहुंची राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने झारखंड सरकार की पोल खोलकर रख दी है। NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बताया कि कैसे 14 वर्षीय आदिवासी लड़की के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में झारखंड सरकार द्वारा जांच में रुकावट डालने की कोशिश हुई और उन्हें पीड़िता के परिजनों से मिलने नहीं दिया गया।
NCPCR अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए बताया कि आदिवासी मासूम बच्ची के साथ हुई घटना के बाद वो पीड़ित परिवार से मिलने के लिए दुमका आए थे। परंतु जब वो वहां पहुंचे तो मृतक लड़की के माता पिता वहां पर नहीं थे। जब उन्होंने आसपास के लोगों से पूछा, तो पता चला कि उनको एक जीप में बैठाकर कहीं ले जाया गया है।
प्रियंक कानूनगो के अनुसार उन्होंने अपनी इस यात्रा को लेकर पहले से ही सरकार को सूचित कर दिया था। उन्होंने ट्वीट कर कहा- “दो मामलों की जांच करने के लिए मैं दुमका आया हूं। झारखंड सरकार को इस दौरे के बारे में पहले ही बता दिया गया था कि NCPCR की एक टीम पीड़ित परिवार से मिलना चाहती थी। स्थानीय कलेक्टर ने इस पर सहमति भी दी थी। परंतु तब भी हम पीड़िता के माता-पिता से नहीं मिल पाए। पड़ोसियों ने बताया कि कोई उन्हें कार में बैठाकर ले गया। सरकार का ये रवैया बेहद असहयोगात्मक व जांच में रुकावट डालने वाला है।“ NCPCR से पंगा लेकर सरकार अपनी ही फजीहत करा रही है।
एवं उनके घर जाने का कार्यक्रम तय कर प्रशासन ने सूचना दी थी।
परंतु यहाँ उनके गांव आने पर घर पर माता पिता नहीं मिले पड़ोसियों ने बताया कि हमारे आने के पहले माता पिता को एक जीप में बैठाकर कोई ले गया है।
सरकार का ये रवैया बेहद असहयोगात्मक व जाँच में रुकावट डालने वाला है।— प्रियंक कानूनगो Priyank Kanoongo (मोदी का परिवार) (@KanoongoPriyank) September 5, 2022
NCPCR के इन आरोपों के बाद अंगुली हेमंत सोरेन सरकार पर उठ रही हैं और प्रश्न पूछे जा रहे हैं कि उनकी सरकार स्वयं तो सोई हुई है और ऐसे में कोई जांच करने और पीड़िताओं को न्याय दिलाने के प्रयास कर रहे हैं, वो उसमें भी बाधा डालने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? आखिर ऐसा कर झारखंड सरकार किसको बचाने के प्रयास कर रही है?
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राज्य की कानून व्यवस्था दम तोड़ रही है
हेमंत सोरेन की सरकार में इस समय राज्य की कानून व्यवस्था दम तोड़ती नजर आती है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्य में जिहादी गतिविधियां बढ़ रही है और मासूम लड़कियों को लव जिहाद का शिकार बनाया जा रहा है। दुमका में दरिंदे शाहरुख हुसैन के 15 वर्षीय अंकिता कुमारी को जिंदा जलाने का मामला ठंडा तक नहीं पड़ा था कि वहां से ऐसी ही एक और जघन्य घटना सामने आयी।
आपको बता दें कि आरोपी ने 14 वर्षीय आदिवासी लड़की को पहले अपने प्रेम जाल में फंसाया और फिर शादी का झांसा देकर उसके साथ दुष्कर्म कियाष बाद में जब नाबालिग लड़की गर्भवती हुई तो उसकी हत्या कर दी गयी और शव पेड़ पर लटका दिया गया ताकि पूरा मामला आत्महत्या प्रतीत हो। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और उस पर हत्या और रेप का केस दर्ज किया है।
इन घटनाओं को लेकर जहां एक तरफ जनता में भारी आक्रोश हैं तो वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री इन मामलों को गंभीरता से लेने की जगह आदिवासी लड़की के साथ हुई घटना को लेकर यह कहते दिख रहे हैं कि दुमका जैसी घटनाएं तो होती रहती हैं। यानी मुख्यमंत्री जी के लिए इस तरह की घटनाएं आम बात हैं।
याद कीजिए एक बार सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार को लेकर अपने बयान में कहा था कि- “लड़के हैं, उनसे गलती हो जाती हैं।“ अब वैसी ही कुछ सोच झारखंड के मुख्यमंत्री के भीतर भी देखने को मिल रही है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वक्त तो बदल जाता है, परंतु इसके बाद भी नहीं बदलती तो बलात्कार को लेकर कुछ नेताओं की छोटी सोच। वो मुख्यमंत्री, जो दुष्कर्म को आम बात समझते हैं और इन्हें गंभीरता से नहीं लेते, तो भला अब उनसे न्याय की क्या ही उम्मीद की जाए। यह झारखंड सरकार की नाकामी ही है, जिसका शिकार एक के बाद एक झारखंड की बेटियां हो रही हैं।