मजबूत आवाजों की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई देती हैं। वर्तमान समय में भारत के परिप्रेक्ष्य में यह बात एकदम सही और सटीक बैठती है। विश्व पटल पर भारत की आवाज लगातार बुलंद हो रही है। आज के समय में दुनिया भारत को बेहद ही अलग तरीके से देखती है। नया भारत बोलता है तो विश्व हमें गंभीरता से सुनता है और यही नए भारत की ताकत है। ऐसे समय में जब भारत की दुनिया में अहमियत इतनी अधिक बढ़ रही है तो ऐसे में हमें मजबूत होती छवि और बदलते वक्त के साथ लंबे समय से चली आ रही आदतों को बदलने का समय भी आ चुका है। ऐसे में हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर का मानना है कि भारत को अब वैश्विक मुद्दों पर दखल नहीं देने वाली सोच को बदलने की जरूरत है।
पहले हमारी विदेश नीति काफी अलग थी परंतु जब से मोदी सरकार सत्ता में आई, यह पूरी तरह से बदल चुकी है। खासतौर पर सुब्रमण्यम जयशंकर के विदेश मंत्री बनने के बाद भारत की विदेश नीति में जमीन-आसमान का अंतर देखने को मिला है। अब तक यह देखने को मिलता रहा है कि भारत वैश्विक मुद्दों पर दखल देने से बचता है। फिर चाहे उसे हमारी मजबूरी समझ लीजिए या कुछ और।
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भारत को है अपने विचारों को बदलने की आवश्यकता
हाल ही में एस जयशंकर ने अपने एक बयान में कहा कि भारतीय विदेश नीति की एक हठधर्मिता है कि भारत को दुनिया की उभरती समस्याओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हमें इन विचारों को बदलना चाहिए। विदेश मंत्री ने कहा, 1950-60 का दौर था, तब शायद हमारे पास दुनिया के मसलों पर बोलने की क्षमता नहीं थी और तब यह हमारे हित में भी नहीं था परंतु अब वक्त बदल चुका है। जयशंकर ने कहा कि कुछ दिन पहले ही हम दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनें। 20वें स्थान और पांचवें स्थान की अर्थव्यवस्था की सोच एक समान नहीं हो सकती। अब हमें अपनी क्षमता के अनुसार बदलने की आवश्यकता है।
जयशंकर ने यह बातें अपनी पुस्तक “द इंडिया वे: स्ट्रैटेजीज फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड” के गुजराती अनुवाद का विमोचन करने हेतु आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने आगे यह भी कहा, पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत को आत्मविश्वास दिखाना चाहिए। आत्मविश्वास की कमी हमारी आदतों के कारण है जो हमें बांधे रखती है। हमें पुरानी आदतों ने बांधे रखा है। आज हम उस स्तर पर पहुंच चुके हैं कि जहां हम अपने हितों को आगे बढ़ाने के साथ जितना संभव हो सबके साथ संबंध बनाए रखें। हमारी चुनौती यह है कि क्या दुनिया हमें परिभाषित करेगी या हम स्वयं को परिभाषित करेंगे।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत- इस्राइल संबंधों के बारे में बात करते हुए कहा कि एक समय था जब वोट बैंक की राजनीति विदेश नीति पर हावी हो गई थी जिसने इजरायल के साथ संबंध को आगे बढ़ाने से रोका। उन्होंने कांग्रेस का नाम लिए बिना तंज करते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक कारणों से हमें खुद को इजरायल के साथ संबंध बढ़ाने से प्रतिबंधित करना पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे जो इजरायल गए थे। अब वह समय जा चुका है, हम राजनीतिक फायदे के लिए विदेश नीति को प्रभावित नहीं करते हैं।
सबका साथ, सबका विश्वास के सिद्धांत पर चल रही है विदेश नीति
जयशंकर का मानना है कि आज हमें अपना नजरिया विस्तृत करना होगा और उसके अनुसार ही कदम उठाते हुए निर्णय लेने होंगे। इसके अलावा जयशंकर ने अपने संबोधन के दौरान यह भी कहा कि आज भारत की विदेश नीति सबका साथ और सबका विश्वास के सिद्धांत के साथ चलाई जा रही है। अमेरिका के साथ मिलकर, चीन की क्लास लगाते हुए, यूरोप से लाभ लेते हुए, रूस को भरोसा देते हुए, जापान को साथ लेकर भारत को काम करते जाना है।
जयशंकर ने स्पष्ट किया कि वर्तमान समय में भारत की छवि दुनिया में काफी मजबूत है और हमें किसी भी मसले पर राय रखने से जरा भी हिचकना नहीं चाहिए। वैश्विक मसलों पर दखल देने से बचना नहीं चाहिए। जब दुनिया के तमाम देश भारत के मसलों पर बात करने, हमें ज्ञान देने का काम कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं। चौधरी अमेरिका जो हमेशा से ही भारत को मानवाधिकार पर बिन मांगे बेफिजूल का ज्ञान देता आया है, जबकि उसने कभी स्वयं के गिरेबान में झांककर नहीं देखा, तो हमें भी ठीक उसी तरह अमेरिका के साथ बर्ताव करना चाहिए और उसे भी मानवाधिकार पर आईना दिखाना चाहिए।
हालांकि, हाल के दिनों में भारत ऐसा करता दिख रहा है। पिछले दिनों विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका को दो टूक जवाब देते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि लोगों को हमारे बारे में विचार रखने का अधिकार है परंतु ठीक उसी तरह हमें भी उनके बारे में अपना विचार रखने का पूरा हक है। हम इस मामले में चुप नहीं बैठने वाले हैं। दूसरों के मानवाधिकारों को लेकर भी हमारी राय है। एस जयशंकर के रवैये से साफ तौर पर पता चलता है कि उन्होंने भारत की विदेश नीति को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। अब जयशंकर का मानना है कि विश्व पटल पर अपनी आवाज को और बुलंद करने हेतु हमें वैश्विक मुद्दों पर हस्तक्षेप करने से पहले सोचने समझने की जरूरत है और हर मसले पर मजबूती से अपना पक्ष रखने की जरूरत है।
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