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आखिर क्यों स्वास्थ्य बीमा से युवा पीढ़ी का मोहभंग हो रहा है?

इसका कारण इससे उत्पन्न हो रही समस्याएं तो नहीं?

TFI Desk द्वारा TFI Desk
24 September 2022
in स्वास्थ्य
स्वास्थ्य बीमा
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कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को बहुत हद तक बदलकर रख दिया है। देखा जाए तो कोरोना आने के बाद लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक सजग होने लगे हैं। लोगों में सेहत को लेकर जागरूकता बढ़ने लगी है और यही कारण है कि कुछ समय पूर्व स्वास्थ्य बीमा यानी हेल्थ इंश्योरेंस की मांग बढ़ती हुई दिखने लगी थी।

बीमा एक प्रकार का अनुबंध होता है, जो बीमा लेने वाले व्यक्ति और कंपनी के बीच में किया जाता हैं। अनुबंध के अनुसार बीमा कंपनी इसे लेने वाले व्यक्ति से एक निश्चित धनराशि यानि प्रीमियम लेती है और पॉलिसी की शर्त के हिसाब से क्षति होने पर उसका भुगतान भी करती है। आजकल आप देखेंगे कि हर चीज का बीमा किया जाने लगा है। फिर चाहे वो आपका घर हो, कार या फिर स्मार्टफोन तक का इंश्योरेंस होता है। इन चीजों के क्षतिग्रस्त होने की स्थिति मे बीमा कंपनी उसके मालिक को पहले से निर्धारित शर्त के हिसाब से मुआवजा प्रदान करती हैं।

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स्वास्थ्य बीमा को लेकर कम होने लगी दिलचस्पी

बात स्वास्थ्य बीमा की करें आजकल कब किस व्यक्ति को कौन सी बीमारी जकड़ लें, कहा नहीं जा सकता। कम उम्र में लोग बड़ी-बड़ी बीमारियों का शिकार होना आम होता चला जा रहा है। अब क्योंकि जीवन इतना अनिश्चित है, तो इसे ध्यान में रखकर ही लोग स्वास्थ्य बीमा लेते हैं। स्वास्थ्य बीमा एक प्रकार का बीमा कवरेज है, जिसमें बीमाधारक अपने द्वारा किए गए चिकित्सा और शल्य खर्चों का दावा कर सकता है। परंतु इस स्वास्थ्य बीमा के साथ कई समस्याएं भी है, जिसके कारण युवाओं में इसको लेकर धीरे-धीरे मोहभंग होता नजर आने लगा है।

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दरअसल, स्वास्थ्य बीमा लेने वाले कई लोगों के अनुभव अच्छे नहीं रहते है। यही कारण है कि दूसरे देशों की तुलना में देखा जाए तो स्वास्थ्य बीमा की पहुंच बेहद ही कम है। आंकड़ों के अनुसार यह चीन में 0.7 फीसदी और अमेरिका में 4.1 फीसदी की तुलना में भारत में केवल 0.4 प्रतिशत ही है। इसके पीछे के कई कारण नजर आते हैं, जिसमें भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होना, लोगों में स्वास्थ्य बीमा के प्रति जागरूकता की कमी और बीमा के विषय में लोगों सही जानकारी न होना जैसे कारण शामिल है।

देखा जाए तो कई सारे स्वास्थ्य बीमा ऐसे हैं, जो भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से के अनुरूप नहीं होते। बीमा कंपनियों द्वारा बीमारधारकों के दावों का भुगतान नहीं होना, लोगों की आय न बढ़ने पर भी बीमे के प्रीमियम का बढ़ जाना, बीमा कंपनियों द्वारा क्लेम को अस्वीकार कर देना, अधूरी दावे जैसी कई समस्या हैं जिनका सामना स्वास्थ्य बीमा लेने वाले लोग करते हैं। इस प्रकार की शिकायतें आए दिन सामने आती ही रहती है। फेयर प्ले इन इंडियन हेल्थ इंश्योरेंस नाम के एक वर्किंग पेपर से यह बात साफ होती है कि भारत देश में स्वास्थ्य बीमा के दावों का उतना भुगतान नहीं किया जा रहा है,  जितना उन्हें किया जाना चाहिए।

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बीमा कंपनियों की नीतियां

हमारे भारत में पॉलिसीधारकों को पॉलिसी का एक तथ्य बहुत अधिक परेशान करता हैं। वो यह है कि बीमा कंपनियों की जितनी पॉलिसी होती है, उनमें से अधिकांश नीतियां मे केवल अस्पतालों में भर्ती होने पर ही बीमे कवर प्रदान किया जाता है। साथ ही इसमें ना तो दवाओं का खर्च और ना ही क्लीनिकल विजट को शामिल नहीं किया जाता। यानी अधिकतर बीमा पॉलिसी ऐसी होती है, जिसमें केवल आपके अस्पताल का खर्च ही कवर किया जाता है। हालांकि अभी चुनिंदा नीतियों में ओपीडी को भी शामिल किया गया है। परंतु देखा जाए तो इससे भी अधिक लाभ होता नहीं है क्योंकि बहुत सारे ऐसे मेडिकल परीक्षण बिना अस्पताल में भर्ती किए होते हैं और पॉलिसीधारक इनको लेकर तब तक दावा नहीं कर सकते जब तक कि वे अस्पताल में भर्ती न हों।

स्वास्थ्य बीमा के साथ देखा जाए तो एक समस्या यह भी है कि बीमा कंपनी बीमाधारकों के कई क्लेम को अस्वीकार कर देती है। इसके पीछे बहुत से कारण होते हैं। एक तो यह भी पॉलिसी लेते समय ग्राहकों को पता तक नहीं होता कि उनकी बीमा में क्या क्या कवर किया जा रहा है। इसको लेकर इंश्योरेंस समादान के महाप्रबंधक चिराग निहलानी ऐसी तकनीकीताओं के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि “कुछ बीमा कंपनियों ने कई दावों को खारिज कर देती हैं या फिर निचले हिस्से मे जाकर दावों का निपटारा कर दिया जाता है। इनमें देखा जाए तो अधिकतर समय में ग्राहकों को इस बात की ठीक तरह से जानकारी नहीं होती है कि आखिर कवर क्या किया गया है और क्या नहीं। इस तरह कि स्थिति में, बीमा कंपनियां निचले हिस्से में दावों का निपटारा कर देती है।“

अस्वीकार कर दिए जाते हैं दावे

इसके अलावा यह भी हो सकता है कि ग्राहक ने पॉलिसी लेते वक्त किसी भी बीमारी का खुलासा नहीं किया हो, जिसका हवाला देकर बीमा कंपनी उनके द्वारा किए गए दावे को अस्वीकार कर दें। ऐसे में यह बेहद ही आवश्यक हो जाता है कि स्वास्थ्य बीमा लेने से पहले कंपनी के सारे नियम अच्छे तरह से जान लेना चाहिए कि उनकी पॉलिसी में किस चीज को कवर किया जाता है और किसे नहीं।

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स्वास्थ्य बीमा लोगों के महंगे अस्पताल तो बचाने में सहायता करती है, परंतु कुछ मामले अलग है। आमतौर पर जब भी कोई व्यक्ति पहले से मौजूद बीमारी के साथ यदि स्वास्थ्य बीमा योजना खरीदना चाहता है तो उसके साथ कई प्रकार की बातें हो सकती हैं। पहला तो यह होता है कि उसका आवेदन ही खारिज कर दिया जाता। दूसरा यह कि उसे स्वास्थ्य बीमा तो दे देते है, परंतु पहले से मौजूद बीमारी को बीमा के दायरे में शामिल नहीं किया जाता। ऐसे मामलों में स्वास्थ्य बीमा कुछ खास उपयोगी नहीं साबित हो पाती।

स्वास्थ्य बीमा के बढ़ते प्रीमियम

देखा जाए तो पिछले कुछ समय से बीमा प्रीमियम में भी बहुत बढ़ोत्तरी होती हुई देखने को मिल रही है। कुछ आंकड़ों के अनुसार बीमा प्रीमियम में वर्ष 2015-16 की तुलना में 6 गुना का इजाफा हुआ है। इसको लेकर बीमा कंपनियां की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि पिछले दो सालों में इंश्योरेंस क्लेम बढ़ गए है, जिस कारण वो बीमा प्रीमियम में बढ़ोत्तरी कर रहे है। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से लोगों में हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर दिलचस्पी कम होने लगी है।

भारत की बड़ी आबादी जो गरीब या फिर मध्यम वर्ग श्रेणी में आती है। ऐसे में अधिकतर लोगों के लिए यह स्वास्थ्य बीमा व्यर्थ ही नजर आती है। वहीं केंद्र और विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा निम्न वर्ग में शामिल लोगों के लिए कई ऐसी योजनाएं चलाई जाती है, जिसका लाभ वो उठा सकते है। उदाहरण के लिए आयुष्मान भारत योजना। यह योजना गरीब लोगों के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है, क्योंकि इसके अंतगर्त 5 लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की सुविधा सरकार के द्वारा दी जाती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया के अनुसार चार वर्षों में इस योजना से चार करोड़ लोग लाभान्वित हो चुके हैं। इस प्रकार की और भी की योजनाएं केंद्र और राज्य स्तर पर चलाई जा रही है।

यही कुछ कारण है जिसके चलते आजकल लोगों का स्वास्थ्य बीमा के प्रति मोहभंग होता नजर आ रहा है और खास तौर पर युवा इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। अगर बीमा कंपनिया अधिक से अधिक लोगों को स्वास्थ्य बीमा में जोड़ना चाहती हैं, तो उन्हें अपने नियम और नीतियों में तुरंत कुछ बदलाव करने की आवश्यकता है।

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