खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे, हिजाब विवाद में अभी कुछ तत्वों की हालत ऐसी ही हो गई है। तर्क से हटकर कुतर्क पर उतारू समूह और समुदाय विशेष ने न्यायपालिका के सम्मुख सीमायें तो लांघी ही पर साथ ही अपने अनर्गल दावों को सत्य सिद्ध करने के चक्कर में वो जज साहब के हाथों नप गए। इसके बाद जो हुआ वो देखते ही बना, जहां सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब के प्रमोटरों को ऐसी फटकार लगाई कि “मज़ा आ गया।” वो कहावत है न “तू डाल-डाल तो मैं पात-पात!” कुछ ऐसा ही बुधवार को हुआ।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा, कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में सवाल केवल स्कूलों में प्रतिबंध के बारे में है क्योंकि किसी को भी इसे कहीं और पहनने से मना नहीं किया जाता है। शीर्ष अदालत राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुन रही थी। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ को इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने की बात कही। उन्होंने तर्क दिया कि अगर कोई लड़की संविधान के अनुच्छेद 19, 21 या 25 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए हिजाब पहनने का फैसला करती है तो क्या राज्य उस पर प्रतिबंध लगा सकता है?
और पढ़ें: स्वतंत्रता और अधिकार का रोना रोने वाले ‘बुर्का गैंग’ की कोर्ट रूम में भारी बेइज्जती हो गयी
सुनवाई के दौरान गरमागरमी
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने के अधिकार के लिए बहस कर रहे वकील से कहा, “आप इसे अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते।” यह अदालत और वकील के बीच लंबे समय तक चलने वाली वार्ता का हिस्सा था, जिस दौरान न्यायमूर्ति गुप्ता ने भी टिप्पणी करते हुए कहा, “यहां समस्या यह है कि एक विशेष समुदाय एक हेडस्कार्फ़ (हिजाब) पर जोर दे रहा है, जबकि अन्य सभी समुदाय ड्रेस कोड का पालन कर रहे हैं। दूसरे छात्र और समुदाय यह नहीं कह रहे हैं कि हम क्या पहनना चाहते हैं।”
बहस को इस हद तक भी ले जाया गया जहां हिजाब पक्ष की वकालत कर रहे वकील ने रुद्राक्ष तक को अपनी तर्कहीन टिप्प्णियों में घुसाया। सुनवाई के दौरान जब एडवोकेट देवदत्त कामत ने कहा कि कई छात्र रुद्राक्ष या क्रॉस को धार्मिक प्रतीक के रूप में पहनते हैं तो न्यायाधीश ने तुरंत इसका जवाब दिया और कहा कि “यह शर्ट के अंदर पहना जाता है। कोई भी शर्ट को उठाने और यह देखने वाला नहीं है कि किसी ने रुद्राक्ष पहना है या नहीं।” न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मामले के केंद्र में एक महत्वपूर्ण मुद्दा रखते हुए कहा, “आप जो भी अभ्यास करना चाहते हैं उसका अभ्यास करने का आपको धार्मिक अधिकार हो सकता है। लेकिन क्या आप अभ्यास कर सकते हैं और उस अधिकार को स्कूल में ले जा सकते हैं। जो पोशाक के हिस्से के रूप में वर्दी है जिसे आपको पहनना है? यही सवाल होगा।”
अधिवक्ता कामत ने कहा, “स्कूल में कोई भी कपड़े नहीं उतार रहा है। अनुच्छेद 19 के हिस्से के रूप में इस अतिरिक्त पोशाक को पहनने का सवाल है, क्या इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है?” इस मामले पर पिछली सुनवाई में सोमवार को जस्टिस गुप्ता ने पूछा था कि क्या लड़कियों को उनकी पसंद के अनुसार ‘मिडी, मिनी, स्कर्ट’ में आने दिया जा सकता है। चूंकि वकील की तर्कहीन टिप्पणी पर न्यायमूर्ति ने उन्हें उन्हीं की भाषा में समझाने का प्रयास किया। यह पूछे जाने पर कि क्या हिजाब पहनना संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत एक आवश्यक प्रथा है, इस पर पीठ ने कहा, “इस मुद्दे को थोड़ा अलग तरीके से संशोधित किया जा सकता है। यह आवश्यक हो सकता है, यह आवश्यक नहीं भी हो सकता है।” पीठ ने पिछली सुनवाई में कहा, “हम जो कह रहे हैं वह यह है कि क्या आप किसी सरकारी संस्थान में अपनी धार्मिक प्रथा को आगे बढ़ाने पर जोर दे सकते हैं। क्योंकि प्रस्तावना कहती है कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है।”
विस्फोटक स्थिति में पहुंच चुके हैं ये तत्व
ज्ञात हो कि यह हिजाब विवाद 1 जनवरी को उडुपी के गवर्नमेंट पीयू कॉलेज में शुरू हुआ था। जहां 6 छात्राओं ने कहा कि उन्हें हिजाब पहनकर कक्षाओं में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। उन्होंने एक विरोध शुरू किया, जो जल्द ही एक देशव्यापी मुद्दा बन गया। भगवा दुपट्टा पहने हिंदू छात्रों के जवाबी प्रदर्शन दूसरे राज्यों में भी फैल गए। छात्रों को अन्य जगहों पर भी रोके जाने के बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें मुस्लिम छात्रों ने संविधान के अनुच्छेद 14,19 और 25 का हवाला दिया था। मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है पर बहस और मुद्दा जस का तस है। कट्टरता ही एकमात्र कारण है जिसके कारण यह विवाद राज्यव्यापी से राष्ट्रव्यापी बन गया ताकि कहीं से भी कैसे भी करके भारत को असहिष्णु साबित किया जाए। यह प्रदर्शित किया जाए कि यहां समुदाय विशेष के साथ ऐसा व्यवहार होता है। अपनी गलती भला कौन ही दिखाता या बताता है, कुछ ऐसा ही यह शरारती तत्व करते आए हैं। अब आलम यह है कि यह शरारती नहीं विस्फोटक स्थिति में जा पहुंचे हैं!
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.