स्वयं से स्वयं के इलाज करने के आदी हो चुके भारतीय किसी भी बीमारी के लिए उंगलियों पर दवाईयों के नाम रखते हैं और जब लगता है कि किसी की थोड़ी भी तबीयत खराब होती है तो उस समय घर का फर्स्ट-एड बॉक्स खोला जाता है और शुरू हो जाता है इलाज. इस इलाज में प्रमुख रूप से जो दवाई उपयोग में लाई जाती है उनमें रैनिटिडीन का नाम किसी से अनभिज्ञ नहीं है. इस टेबलेट का चलन इतना आम है कि लोग बिना डॉक्टर से परामर्श किए बगैर ही एसिडिटी होने पर मेडिकल पर लेने पहुंच जाते है. यदि आप एंटासिड रैनिटिडीन के नियमित उपभोक्ता हैं जो कि एसीलोक, जिनटैक और रैंटैक के रूप में भी लोकप्रिय है तो आपको पता होना चाहिए कि इस दवा को भारत सरकार द्वारा हाल ही में आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची 2022 में हटा दिया गया है. इसकी वजह है रैनटैक के साइड इफेक्ट्स- शोध से बता चलता है कि इस दवा से कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है. रैनिटिडीन उन 26 दवाओं में शामिल है, जिन्हें आवश्यक दवाओं की सूची से हटा दिया गया है.
सरकार के इस कदम से अब इस दवाई का सेवन करना और बेचना दोनो मना होगा. ध्यान देने वाली बात है कि रैनटैक एक दवा है जो आपके पेट में बनने वाले एसिड की मात्रा को कम करती है. इसका उपयोग दिल में जलन, अपच और पेट में बहुत अधिक एसिड के कारण होने वाले अन्य लक्षणों के इलाज और रोकथाम के लिए किया जाता था. इसके अलावा इसका उपयोग पेट के अल्सर, रिफ्लक्स डिजीज और कुछ दुर्लभ स्थितियों के इलाज और रोकथाम के लिए भी किया जाता रहा है.
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दरअसल, रैनिटिडिन कैंसर से संबंधित चिंताओं के लिए दुनिया भर में जांच के दायरे में है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत के औषधि महानियंत्रक और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के साथ साल्ट (फॉर्मूले) को आवश्यक स्टॉक से बाहर निकालने के बारे में विवरण पर चर्चा की थी. इसकी जांच 2019 से चल रही है, जब अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन को दवा में कैंसर पैदा करने की आशंका वाली गड़बड़ी मिली थी. दवा नियामकों ने रैनिटिडिन युक्त दवाओं के नमूनों में कैंसर पैदा करने वाली गड़बड़ी एन-नाइट्रोसोडिमिथाइलमाइन (एनडीएमए) को ‘अस्वीकार्य स्तर’ पर पाया था. तब रैनिटिडीन की ओर से कहा गया था कि “एजेंसी रैनिटिडीन में एनडीएमए के स्तर की जांच कर रही है और रोगियों के लिए किसी भी संभावित जोखिम का मूल्यांकन कर रही है. एफडीए चल रही जांच के परिणामों के आधार पर उचित उपाय करेगा.”
रैनिटिडीन को 1981 में पेश किया गया था और तब से यह जीईआरडी से संबंधित स्थितियों के लिए सबसे अधिक मांग वाली दवाओं में से एक है. एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि इसे दुनिया भर में 222 मिलियन रोगियों के इलाज के लिए तैयार किया गया और 120 से अधिक देशों में इसे बेचा गया है. एनडीएमए मनुष्यों के लिए विषैला होता है और इस यौगिक के अत्यधिक संपर्क से मानव शरीर को कई नुकसान हो सकते हैं.
यूएस एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, एनडीएमए के संपर्क में आने से इंसानों का लीवर खराब हो जाता है. यह पेट में ऐंठन, बढ़े हुए जिगर, यकृत, गुर्दे और फेफड़ों के कार्य में कमी और चक्कर आने का कारण बन सकता है. एनडीएमए एक ज्ञात संदूषक है, जो मांस, डेयरी उत्पादों और सब्जियों सहित पानी और खाद्य पदार्थों में पाया जाता है. अब जिस दवा से ठीक होने के बजाय उसके उपयोग पश्चात दुआ की ज़रुरत पड़े तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों ऐसी दवाई अब भी चलन में हैं जो कैंसर पैदा कर सकती हैं.
यही नहीं, थोक के भाव में बिकने और खायी जाने वाली दवाओं में जिनटैक के अतिरिक्त कॉम्बिफ्लेम, डोलो, पैरासिटामोल जैसी दवाईयां भी हैं. ये दवाईयां भी ऐसे खायी जाती हैं जैसे कोई टॉफी खायी जा रही हो. सरकार ने जिस प्रकार सख्ती दिखाते हुए जिनटैक को आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची 2022 से बाहर किया है उसी प्रकार उससे मिलती-जुलती सभी दवाओं पर अंकुश लगाना होगा क्योंकि “आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास” की भांति लोग तो अपनी सेहत दुरस्त करने के चक्कर में ये खाते रहेंगे और बीमारी को बुलावा देते रहेंगे।
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