मनुष्य ने जब जब अपने विकास के क्रम में प्रकृति पर नियंत्रण करने कि कोशिश की है, तब तब प्रकृति ने लताड़ लगाते हुए उसे उसकी असली जगह दिखायी है. ऐसे तमाम उदाहरण आपको मिल जायेंगे जहां मनुष्य ने लालच के कारण प्राकृतिक संसाधनो का अधिकाधिक दोहन किया. इसी क्रम में उसमें पहाड़ काटकर रोड बनाई, नदियों में से अंधाधुंध रेत निकाली, ऊंची ऊंची इमारतें बनाई किंतु उसके बाद इन्हीं क्षेत्रों में भयानक तबाही का मंजर भी प्रकृति ने दिखाया. मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से हुई घटनाओं में केदारनाथ की घटना, ग्लेशियर आउटबर्स्ट, बांध की वजह से बाढ़ के बाद अब इसी श्रृंखला में बेंगलुरु शहर का नाम भी जुड़ गया है. वर्तमान में आईटी हब बेंगलुरु बाढ़ में डूबा हुआ है, सड़कों पर पानी भरा हुआ है जिससे आम जन जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है.
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जैसा कि ज्ञात है सितंबर के महीने में मानसून वापस लौट रहा होता है, जिस कारण से भारत के दक्षिणी हिस्सों में बारिश होती हैं. इसी क्रम में बेंगलुरु में भी भारी वर्षा हो रही है किंतु यहां यह कतई न समझिएगा कि बेंगलुरु की यह दशा वर्षा ने की है क्योंकि स्वयं इंसान ही बेंगलुरु की इस स्थिति कि लिए ज़िम्मेदार हैं. बेंगलुरु शहर को भारत की इलेक्ट्रॉनिक सिटी, सिलीकॉन वैली जैसे नामों से नवाज़ा गया है किंतु आज यह शहर फ़्लड सिटी के नाम से जाना जा रहा है. कभी हरियाली से जगमगाता बेंगलुर आज कंक्रीट का जंगल बन गया है. बड़ी बड़ी आईटी कंपनियों के बड़े-बड़े ऑफ़िसों ने पूरे बेंगलुरु को बदल कर रख दिया. आज बेंगलुरु की इस दशा का ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ इंसान की लालच है. कुल मिलाकर कारणो की समीक्षा करें तो हम पाएंगे कि बेंगलुरु की मौजूदा स्थिति के ये 5 संभावित कारण हो सकते हैं-
- नालों के अतिक्रमण या ठोस अपशिष्ट/निर्माण और विध्वंस कचरे के डंपिंग के कारण झीलों के बीच परस्पर संपर्क न होना
- बाढ़ के मैदानों और आर्द्रभूमियों का अतिक्रमण (घाटी क्षेत्रों, बाढ़ के मैदानों और झील के तल में निर्माण)
- तूफानी जल नालों को संकरा और पक्का करना, जिससे प्राकृतिक नालियों के हाइड्रोलॉजी संबंधी कार्य बाधित हो रहे हैं
- व्यापक क्षेत्रों का नुकसान – खुले स्थानों, आर्द्रभूमि और वनस्पति आवरण में कमी
- बिना आंकलन के सुनियोजित ढंग से लिए गए निर्णय एवं गैर-जिम्मेदार शहरीकरण के कारण शहर में बढ़ी हुई पक्की सतह (शहर में अभी 78% पक्की सतह है जो 2022 के अंत तक बढ़कर 94% होने की संभावना है)
इसके अलावा, तेजी से शहरीकरण ने शहर में बड़े पैमाने पर भूमि कवर में बदलाव किया है, जिससे गंभीर पर्यावरणीय गिरावट आई है. वर्ष 1973 में वनस्पति आवरण 68% से घटकर 2020 में लगभग 3% रह गया है. इसने स्थिति को और बुरा कर दिया है. बीते दिन गुरुवार को बेंगलुरु के कुछ हिस्सों में बाढ़ का पानी तो कम हो गया लेकिन आईटी राजधानी के लिए सबसे खराब स्थिति अभी भी खत्म नहीं हुई है. मौसम ब्यूरो ने अगले दो दिनों के लिए शहर समेत दक्षिण आंतरिक कर्नाटक में भारी बारिश की भविष्यवाणी की है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, तटीय और दक्षिण आंतरिक कर्नाटक में 8-9 सितंबर को और आंतरिक कर्नाटक में 9-10 सितंबर को कुछ स्थानों पर भारी से बहुत भारी वर्षा की भविष्यवाणी की गई है.
Envis टेक्निकल रिपोर्ट के अनुसार एक समय बेंगलुरु को सिटी ऑफ़ लेक्स कहा जाता था. बेंगलुरु में लगभग कुल मिलाकर 285 झीलें हुआ करती थी किंतु वर्तमान में सिटी ऑफ़ लेक्स से यह शहर सिटी ऑफ़ फ़्लड बन चुका है. मनुष्य के इसी लालच ने वर्ष 2018 में बेंगलुरु शहर में स्थित बेलांडूर झील में आग भी लगवायी थी. उससे पहले भी झीलों में आग लगने की बहुत सारी घटनाएं हो चुकी हैं. ध्यान देने वाली बात है कि विकास और प्रकृति दोनो ही आवश्यक हैं किंतु लालच को केंद्र में रखकर किया गया विकास प्रकृति के नियमों के विरुद्ध हो जाता है और उसके बाद जब प्रकृति अपना विकराल रूप दिखाती है तो मनुष्य असहाय हो जाता है. इस संदर्भ में बेंगलुरु को एक अच्छा उदाहरण बनाया जा सकता है.
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