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मनमोहन सिंह के बारे में प्रत्येक उद्योगपति वही सोचता है जो नारायण मूर्ति ने कहा है

मनमोहन सरकार के बारे में नारायण मूर्ति ने सत्य कहा है

TFI Desk द्वारा TFI Desk
25 September 2022
in अर्थव्यवस्था, मत
Narayana Murthy
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भारत में आर्थिक विकास को लेकर आज के समय में बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, हम अमेरिका को पीछे छोड़ने तक की बात कर रहे हैं। अनुमान यह भी है कि भारत अपने लक्ष्यों को जिस तेजी के साथ पूरा कर रहा है, इससे आगे जाकर भारत जल्द ही आर्थिक महाशक्ति के रूप में विश्व पटल पर उभरेगा।

महत्वपूर्ण बात यह है कि जो आर्थिक महाशक्ति आने वाले 25 वर्षों में भारत बनेगा, उस मुकाम को 2025 तक या 2030 तक हासिल किया जा सकता है‌। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं यह समझने के लिए आपको पूरा लेख पढ़ना होगा। हालांकि भारत के विकास को लेकर और बिजनेस को आगे बढ़ाने को लेकर इन्फोसिस के सीइओ नारायण मूर्ति ने बड़ी बात की है।

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एनआर नारायण मूर्ति का बयान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश व्यापारिक क्षेत्र में तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। कोरोना महामारी के कारण भारत को भी क्षति का सामना करना पड़ा था लेकिन सहज शब्दों में कहें तो भारत एक अच्छी आर्थिक स्थिति में है। हालांकि, इन्फोसिस के सीईओ ने इससे भी बड़ा बम फोड़ा है। दरअसल, सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी इंफोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने शुक्रवार को एक बयान देकर कांग्रेस की दिक्कतों को बढ़ा दिया है। नारायण मूर्ति ने कहा कि कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार के समय जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो देश का आर्थिक विकास ठहर गया था और कई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिए गए थे।

आपको बता दें कि नारायण मूर्ति भारतीय प्रबंधन संस्थान IIM अहमदाबाद में युवा उद्यमियों और छात्रों के साथ चर्चा के दौरान बोल रहे थे और इस दौरान ही उन्होंने कहा कि भारत का युवा दिमाग चीन के लिए योग्य प्रतिस्पर्धी बन सकता है। नारायण मूर्ति से देश के विकास और आर्थिक गति को लेकर कई महत्वपूर्ण प्रश्न किए गए जिनमें से एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि मैं लंदन में (2008 और 2012 के बीच) एचएसबीसी के बोर्ड में था। पहले कुछ वर्षों में जब बोर्डरूम में चीन का दो से तीन बार उल्लेख किया गया तो भारत का नाम एक बार आता था लेकिन अब स्थिति पहले से बदली है। नारायण मूर्ति ने कहा कि लेकिन दुर्भाग्य से मुझे नहीं पता कि बाद में भारत के साथ क्या हुआ।

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मनमोहन सरकार की आलोचना

ध्यान देने वाली बात यह है कि मनमोहन सिंह की सरकार की आलोचना करते हुए नारायण मूर्ति ने राजनीति में न पड़ने की बात कही है। उन्होंने कहा कि निजी रूप से मनमोहन सिंह का वो बहुत सम्मान करते हैं। नारायण मूर्ति ने कहा कि संप्रग सरकार के दौरान मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह एक असाधारण व्यक्ति रहे और उनके प्रति मेरे मन में बहुत सम्मान है, लेकिन संप्रग सरकार के दौरान भारत ठहर चुका था और कई महत्वपूर्ण फैसले तत्कालीन सरकार ने नहीं लिए थे। नारायण मूर्ति ने कहा कि आज दुनिया में भारत के लिए सम्मान का भाव है और देश अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।

वहीं भारत के भविष्य को लेकर भी नारायण मूर्ति से प्रश्न किया गया। जब उनसे पूछा गया कि वह भविष्य में भारत को कहां देखते हैं तो उन्होंने उत्तर दिया कि यह आपकी यानी युवा पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वे जब भी किसी दूसरे देश, विशेषकर चीन का नाम लें तो साथ में भारत का नाम अवश्य लें। मुझे लगता है कि आप लोग ऐसा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि चीनी की अर्थव्यवस्था भारत से 6 गुना बड़ी है। 1978 से 2022 के बीच इन 44 सालों में चीन ने भारत को बहुत ज्यादा पछाड़ दिया है। अगर आप लोग मेहनत करते हैं तो भारत भी वैसा ही सम्मान पाएगा, जैसा आज चीन को मिलता है।

देखने वाली बात है कि नारायण मूर्ति कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं है इसके बावजूद बिना किसी एजेंडे के वो भारत के गौरव को महसूस कर रहे हैं।

मनमोहन सरकार के दस वर्षों की बात करें तो मनमोहन सिंह स्वयं में एक आर्थिक जगत के प्रकांड विद्वान रहे, इसके बावजूद वे कभी भारत को विकास के पथ पर बुलेट ट्रेन की रफ्तार से दौड़ा ही नहीं पाए। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत का जोश ठंडा पड़ गया और चीन आगे निकलता चला गया। चीन अपने यहा सस्ती वस्तुओं को बनाकर भारत में बेचता गया और भारत से कमाई करके भारत से ही आगे निकल गया जबकि भारत ऐसा कुछ न कर सका।‌

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भ्रष्टाचार का बोलबाला

मनमोहन सरकार में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा और कुछ विशेष लोगों को आसानी से आर्थिक मदद दी जाती रही। ऐसा भी नहीं था कि उन विशेष लोगों ने भारत के विकास में कोई योगदान दिया हो बल्कि उनमें से कई लोग तो देश तक छोड़कर भाग गए‌। जिस कांग्रेस को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए था वह पार्टी भाजपा और मोदी सरकार से सवाल पूछती है जो कि हास्यास्पद भी है। मनमोहन सरकार में बिजनेस ठप पड़ा हुआ था और व्यापारियों से आवश्यकता से अधिक कर वसूला जाता था जो कि देना मुश्किल होता था।

आर्थिक मंदी के बावजूद बिजनेसमैन भारत की क्षमताओं को समझ रहे थे लेकिन असल रोड़ा मनमोहन सरकार थी और नतीजा ये कि सरकार तो गई ही साथ ही भारत का विकास सरकार के दस सालों में 20 वर्ष पीछे चला गया। मोदी सरकार के आने के बाद इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा दिया गया और नतीजा यह रहा कि भारत की रेटिंग मनमोहन सरकार के मुकाबले काफी सुधर गयी।

मोदी सरकार के दौरान होने वाले इन्वेस्टर समिट वैश्विक कंपनियों को भारत में निवेश के लिए लुभाते रहे जिससे भारत में उद्योग जगत तेजी से फलने-फूलने लगा। एक तरफ जहां विदेशी निवेश से भारत में विकास की बाढ़ आयी तो वहीं दूसरी ओर इस निवेश से निजी क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर प्रदान किए। आज की स्थिति में भारत में दिग्गज स्मार्टफोन कंपनी सैमसंग का सबसे बड़ा प्लांट है एप्पल यहां मैन्युफैक्चरिंग के जरिए अलग-अलग देशों में व्यापार करने की प्लानिंग कर रही है। इतना ही नहीं जो चाइनीस कंपनियां पहले चीन से बनाकर भारत में सामान बेचती थी वही कंपनियां अब भारत में सामान बेच रही है जोकि भारत में ही बना भी था।

और पड़ें- ब्लूमबर्ग ने सुझाया है कि मेक इन इंडिया के कारण भारत सैन्य रूप से कमजोर हुआ है, हम चुपचाप इस प्रचार को ध्वस्त करते हैं

बिजनेस को बढ़ावा मिला

मोदी सरकार ने टैक्स में गिरावट करके बिजनेस को बढ़ावा दिया है इतना ही नहीं कॉरपोरेटर तक में कटौती की गयी है भले ही विपक्ष कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का मुद्दा उठाता है लेकिन सच तो यह है कि देश के विकास में कॉरपोरेट सेक्टर की अहम भूमिका है और यदि कॉरपोरेटर को ही राहत नहीं दी जाएगी तो देश के विकास का पहिया ठप हो सकता है। इसके अलावा मोदी सरकार लगातार मेक इन इंडिया आत्मनिर्भर भारत जैसे निशानों पर जोर देता रहा जिससे उद्योग जगत बाहर जाकर व्यापार करने के बजाए यहीं अपने प्लांट स्थापित कर भारत में ही उद्योग के बेहतरीन अवसर खोजने लगा जिसका नतीजा यह हुआ कि भारत में प्रत्येक कॉरपोरेट सेक्टर के कंपनी को पिछले 8 वर्षों में तगड़ा मुनाफा देखने को मिला है।

यही कारण है कि इंफोसिस के सीईओ नारायण मूर्ति जैसे अनेकों बिजनेसमैन मोदी सरकार की तारीफ कर रहे हैं। इतना ही नहीं, सत्य यह भी है कि जो बात नारायण मूर्ति ने बिना किसी लाग लपेट के बोल दी, कुछ ऐसा ही देश के लगभग सभी उद्योग घराने महसूस करते रहे हैं हालांकि उन्होंने समय पर किसी भी राजनैतिक टिप्पणी से स्वयं को दूर रखा।

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