दवाईयों की आवश्यकता आए-दिन हम सभी को पड़ती ही रहती है। कभी सिरदर्द हो रहा है तो दवाई चाहिए, कभी बुखार की दवा चाहिए होती है या फिर कभी किसी अन्य बीमारी की। परंतु अगर हम आपसे कहीं कि जिन दवाओं का सेवन आप स्वयं को ठीक करने के लिए वो नकली भी हो सकती हैं, तो? शायद आप हमारी बातों पर भरोसा न करें। परंतु हकीकत यही है कि देश में नकली दवाईयों का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। खास तौर पर कोरोना महामारी के बाद इसमें वृद्धि देखने को मिली है। जाहिर तौर पर यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। यही कारण है कि मोदी सरकार भी इसको लेकर सतर्क है और नकली दवाओं के कारोबार पर नकेल कसने के लिए बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है।
फर्जी फार्मा कंपनियों पर कसेगी नकेल
खबरें ऐसी सामने आ रही हैं कि सरकार बाजार में नकली और घटिया दवाओं को समाप्त करने के लिए सबसे अधिक बिकने वाली दवाओं के लिए एक ‘ट्रैक एंड ट्रेस’ तंत्र शुरू करने जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार शीघ्र ही दवा निर्माताओं से दवाओं के पैकेट पर बारकोड या QR कोड प्रिंट कराने के निर्देश दे सकती है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार शुरुआती चरण में कंपनियों को लगभग 300 सबसे अधिक बिकने वाली दवा को अपनी प्राथमिक पैकेजिंग जैसे बोतल, डिब्बे और जार पर बारकोड (क्यूआर) कोड प्रिंट करने की आवश्यकता होगी। इसमें 100 रुपये प्रति स्ट्रिप से अधिक के एमआरपी के साथ व्यापक रूप से बिकने वाली एंटीबायोटिक्स, दिल की बीमारियों से जुड़ी, दर्द निवारक गोलियां और एंटी-एलर्जी के शामिल होने की संभावना है।
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वैसे तो भारत दुनियाभर में अपने सस्ती दवाइयों के कारण विख्यात है। यह भारत की ही देन है कि एक समय में जिन बीमारियों के किए दवाइयां काफ़ी महंगी हुआ करती थीं, वह आज कम क़ीमतों पर उपलब्ध है। उदाहरण के तौर पर टीबी की दवाइयां ले लीजिए, एक समय में पश्चिमी देशों द्वारा बनायी गयी दवाइयों की क़ीमत कई हज़ारों में हुआ करती थी, परंतु आज महज़ कुछ सौ रुपयों में भी उपलब्ध है। इसमें कोई भी दो राय नहीं कि भारत समूचे विश्व का फ़ार्मा किंग कहा जाता है लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी फ़ार्मा क्षेत्र में कुछ कमियां व्याप्त थी जिसे खत्म करने के लिए भारत सरकार हम संभव प्रयास कर रही है। इसी क्रम में भारत सरकार यह महत्वपूर्ण कदम उठाने की तैयारी में है।
भारत में नकली दवा का कारोबार
दरअसल, कई बार यह देखा गया है कि दवा विक्रेता ग्राहक को ब्रांडेड दवाईयों के नाम पर उन्हें द्वयम दर्जे की दवाईयां उसी मूल्य पर देते थे, जो ग्राहकों को ठगने के जैसा ही है। WHO का एक अनुमान बताता है कि दुनिया भर में बिकने वाली करीब 35 फीसदी नकली दवाएं भारत से आती हैं। वहीं वर्ष 2019 में अमेरिका ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारतीय बाजार में बेचे जाने वाले सभी फार्मास्युटिकल सामानों में से लगभग 20 प्रतिशत नकली हैं।
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WHO के अनुसार घटिया और नकली चिकित्सा उत्पाद रोगियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उन बीमारियों का इलाज करने में भी विफल हो सकते हैं जिनके लिए वह दवा का सेवन कर रहे थे। रिपोर्ट में बताया गया कि नकली दवा के जो मामले रिपोर्ट किए जाते है, उनमें से सबसे अधिक मामले मलेरिया-रोधी और एंटीबायोटिक्स के आते है। साथ ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की नकली दवा तक बाजारों में बिक रही है।
QR कोड से कैसे निकलेगा समस्या का समाधान?
समस्या यह है कि डॉक्टर हमें जो दवा खाने के लिए बोलते हैं, किसी भी मेडिकल स्टोर से हम उसे खरीदकर खा लेते हैं। हमें नहीं मालूम होता कि वह दवा कैसे बनी है, उसमें सॉल्ट कौन-सा है। इसी समस्या का समाधान निकालने की तैयारी में सरकार है। नकली दवाओं के कारोबार पर नकेल कसने के लिए सरकार एक ऐप भी लॉन्च करने पर विचार कर रही है। इस ऐप के माध्यम से क्यूआर कोड स्कैन कर दवा से जुड़ी जानकारी के बारे में पता लगाया जा सकेगा।
कोड स्कैन करने पर पता चल जाएगा कि दवा को किस कंपनी ने बनाया? उसमें प्रयोग हुआ सॉल्ट कौन-सा है और उसकी एक्सपायर कब होगी? रिपोर्ट्स के अनुसार ऐप को शीघ्र ही लॉन्च किया जा सकता है। फार्मा कंपनियों को अपनी दवाओं पर कोड प्रिंट करने को कहेगी, जिसे स्कैन करके लोग उसकी जानकारी हासिल कर पाएंगे। दवा की जांच कर आप पता लगा पाएंगे कि जिन दवाइयों का बाज़ार से क्रय कर रहे हैं वह सुरक्षित और नकली तो नहीं है।
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वैसे तो यह कदम एक दशक पहले संकल्पित किया गया था परंतु इसे घरेलू फार्मा उद्योग और सॉफ्टवेयर/प्रौद्योगिकी में तैयारियों की कमी के कारण रोक दिया गया था। हालांकि सरकार अब नकली दवाओं के कारोबार को पूरी तरह से कुचलने की तैयारी में है। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से ना सिर्फ़ भारत के फ़ार्मा सेक्टर तो लाभान्वित होगा ही अपितु व्यक्ति को सही दवाइयों के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकेगी।
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