सनातन बस एक धर्म नहीं है अपितु एक जीवन शैली है, यही जीवन शैली विभिन्न मान्यताओं और विचारों के बीच भी अपने अनुयायियों को एक साथ जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमेशा से ही सनातन धर्म के त्योहार लोगों के हर्षोल्लास का बहुत बड़ा कारण रहे हैं लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस बड़े आर्थिक योगदान के चलते अब सनातन त्योहार को अर्थ जगत में एक प्रमुख सेक्टर के रूप में भी गिना जा सकता है। प्रश्न है क्यों और कैसे? तो आइए जानते हैं।
सनातन धर्म का अर्थव्यवस्था में योगदान
भारत मूल रूप से एक हिंदू राष्ट्र है तो निश्चित रूप से इसकी अर्थव्यवस्था को चलाने में मुख्य भूमिका भी हिंदुओं की ही होगी, यह सच भी है कि भारत में हिंदुओं ने या कहें कि सनातनियों ने अर्थव्यवस्था में अपने तीर्थ क्षेत्रों से लेकर अपनी पूजा पद्धति से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कुछ ऐसा ही योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में सनातनी त्योहारों का भी रहा है। दरअसल, CAIT की एक हालिया रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि दिवाली जो कि सनातनियों का मुख्य त्योहार है उसमें इस बार बंपर खरीदारी होने वाली है।
CAIT ने रविवार को कहा है कि पिछले साल के दिवाली सीजन की तुलना में इस साल के दिवाली सीजन में व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं के लिए लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है जिसका आर्थिक क्षेत्र में एक बड़ा फायदा देखने को मिल सकता है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रेड एसोसिएशन ने व्यवसायियों को आगामी त्योहारी सीजन से पहले सामानों का स्टॉक करने के लिए कहा है, क्योंकि लगभग 36 प्रतिशत शहरी खरीदार इस सीजन में पिछले वर्षों से अधिक खर्च करने के लिए तैयार हैं।
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एक अन्य कंसल्टिंग फर्म रेडसीर का अनुमान है कि त्योहारी सीजन के दौरान ई-कॉमर्स की बिक्री सकल व्यापारिक मूल्य (जीएमवी) में लगभग 11.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की संभावना है, जो पिछले वर्ष से 28 फीसदी अधिक है। सनातनियों के इस त्योहारी सीजन के पहले सप्ताह (22-30 सितंबर) के दौरान, Flipkart समूह ने जीएमवी आधार पर लगभग 62 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ बाजार का नेतृत्व किया, जबकि Amazon की हिस्सेदारी लगभग 26 प्रतिशत थी और दोनों ई कॉमर्स कंपनियों को दिवाली के दौरान मोटा मुनाफा हुआ है।
इस मामले में कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने एक बयान में कहा कि 26 सितंबर से 5 अक्टूबर तक नवरात्रि के शुरुआती सीजन में एफएमसीजी उत्पादों में करीब 12 फीसदी, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स में 15 फीसदी, इलेक्ट्रॉनिक्स में करीब 20 फीसदी की वृद्धि हुई है इसमें मोबाइल में करीब 10 फीसदी, किराना में करीब 20 फीसदी, खिलौनों में करीब 15 फीसदी आदि का पंजीकरण हुआ है जो यह दर्शाता है कि दिवाली में इस बार खरीदारी के सारे रिकॉर्ड टूटने वाले हैं।
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खरीददारी को लेकर ग्राहकों का व्यवहार
CAIT के प्रमुख ने कहा कि पिछले दो वर्षों में खरीददारी को लेकर ग्राहकों का व्यवहार पूरी तरह से बदल गया है। वे पुष्टि करते हैं कि वे जो सामान खरीद रहे हैं वह भारतीय हैं न की चीनी। इसलिए, अधिक से अधिक लोग अब केवल भारतीय उत्पादों की मांग कर रहे हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा संकेत है। इस साल व्यापारियों ने दिवाली त्योहार के मौसम के लिए चीन से कोई सामान नहीं मंगवाया। ऐसे में सीधे तौर पर यह भी कहा जा सकता है कि सनातन धर्म के लोगों के कारण और त्योहारों के कारण भारतीय बाजार में चीन का नामोनिशान मिट सकता है।
इस बार के त्योहारी सीजन को लेकर आई दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट बताती है कि सीजन के शुरुआती दो सप्ताह में देशभर में बिक्री में लगभग 10% का उछाल देखा गया है। हालांकि ऑफलाइन की तुलना में ऑनलाइन बिक्री में वृद्धि ज्यादा है। इसमें अभी तक 35% ग्रोथ दर्ज हुई है। ऑनलाइन के कुछ सेगमेंट में तो बिक्री पिछले साल की तुलना में 60% तक ज्यादा हुई है। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में इस बार त्योहारी सीजन खरीददारी के नये रिकॉर्ड तोड़ने वाला होगा।
ये केवल आने वाली दिवाली के अनुमान हैं लेकिन बात यदि पिछली दिवाली की ही करें तो कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने बताया था कि पिछली दिवाली के व्यापार के आंकड़ों ने दिवाली पर पिछले 10 साल के बिक्री रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। लगभग 70 मिलियन व्यापारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यापारी के निकाय ने कहा था कि 2021 की अविश्वसनीय दिवाली बिक्री से पिछले दो वर्षों से जारी आर्थिक मंदी तक समाप्ति की ओर है। पिछले साल भी चीन को दिवाली पर एक बड़ा नुक़सान देखने को मिला था और कुछ ऐसा ही इस बार भी हो रहा है।
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भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी
दिवाली सनातनियों का सबसे बड़ा त्योहार है। रक्षाबंधन की बात करें तो उसमें भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने धूम मचाई थी। पिछले दो वर्षों में सनातनियों के त्योहारों में प्रमुख रक्षाबंधन की राखी ने ही चीन को करीब 10 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचाया है और यह नुकसान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा लाभ बनकर उभरा था। लोग त्योहारों पर खुलकर खर्च करते हैं और खुलकर खर्च करने की यह प्रवृत्ति जो पहले चीन को फायदा पहुंचाती थी अब इसका फायदा भारत को हो रहा है।
इसके अलावा सनातनियों का एक बड़ा त्योहार होली भी है और उसको लेकर आर्थिक स्थिति के बारे में रिपोर्ट बताती हैं कि साल 2022 की होली में पिछले साल की तुलना में बिक्री में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई क्योंकि भारत ने कोरोनो वायरस के डर के बिना रंगों का त्योहार मनाया था। CAIT ने कहा कि इस साल की होली की बिक्री भारत के खुदरा क्षेत्र के लिए एक वरदान साबित हुई थी।
व्यापारिक संगठनों का कहना था कि होली के त्योहार की बिक्री में पिछले साल की तुलना में कारोबार में करीब 30 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। एक अनुमान के मुताबिक, होली पर देश में करीब 20,000 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था जो कि एक बड़ी बात थी। वहीं इस साल चीनी सामानों की बिक्री नहीं हुई।
इससे पहले होली के त्योहार पर भारत को चीन का निर्यात हर साल लगभग 10,000 करोड़ रुपये का होता था, जिसमें मुख्य रूप से रंग, खिलौने, गुब्बारे आदि शामिल थे लेकिन इस बार चीन का एक भी सामान नहीं बिका यानी सारा लाभ भारत का।
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होली से लेकर नवरात्रि, रक्षाबंधन, शरद पूर्णिमा, दशहरा, करवाचौथ और दिवाली तक, ये वे सारे त्योहार हैं जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वित्त वर्षों के दौरान हर एक दो महीनों में एक बंपर बूस्ट देते हैं। इन त्योहारों पर हमारे पास संगठित क्षेत्र के आंकड़े तो आ जाते हैं लेकिन एक बड़ा वर्ग भारत का असंगठित क्षेत्र ही है, कहा जाए तो यह असंगठित क्षेत्र ही हमारी अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलता है।
त्योहारों पर जितना सामान शापिंग मॉल और ई कॉमर्स कंपनियों के माध्यम से नहीं खरीदा जाता उतना सामान रेहड़ी पटरी वालों से आम नागरिक खरीद लेते हैं।
दिवाली पर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति हो या फिर घरों की सजावट का सामन, सभी मंझोले या छोटे व्यापारियों द्वारा ही खरीदा जाता है। इसी तरह दशहरे में खिलौनों और खान-पान समेत मेले की चकाचौंध में छोटे व्यापारियों को बड़ा लाभ होता है। सनातनियों के त्योहारों की बात करें तो मकर संक्रांति से लेकर वसंत पंचमी, कार्तिक पूर्णिमा तक, अने अवसरों में गंगा स्नान तक ये सभी त्योहार एक बड़े आर्थिक जगत को प्रभावित करता है।
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इन सब त्योहारों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था हिलोरे मारने लगती है। लोगों को कभी पैसे की कमी का एहसास नहीं होता है। सनातन धर्म ने एक ऐसा चक्र बनाया है जिसमें एक धनी से लेकर कम धनी और निर्धन परिवार भी त्योहार धूमधाम से मना लेता है और इन सब में विशेष बात यह है कि इसका भारी भरकम लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को भी होता है। सोना, चांदी, कपड़ा, भोजन ये सबकुछ धड़ल्ले से खरीदे जाते हैं और बेचे जाते हैं। सनातन धर्म किस तरह देश के लिए एक सुदृढ़ आर्थिक नींव स्थापित कर चुका है यह पूरी दुनिया देख रही है।
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