भारतीय रेलवे देश की शान रहा है लेकिन पिछली सरकारों की तरफ से इस ओर कम ही ध्यान दिया गया। पिछली सरकारों में रेल दुर्घटना और ट्रेनों का विलंब होना बहुत सामान्य सी बात हुआ करती थी, लेकिन कहते हैं न कि समय और परिस्थितियां एक समान नहीं होती हैं। समय बदला, सरकार बदली और परिस्थितियों में भी आमूलचूल परिवर्तन हुए और इस तरह रेलवे के भी दिन फिर गए। रेलवे अब विकास के अनेक अवसर का साक्षी बन रहा है। वंदे भारत ट्रेन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तो है ही इसके साथ-साथ मालवाहक ट्रेनों पर ध्यान देना और उन्हें और अपग्रेड करना भी सरकार के द्वारा रेलवे में किए गए कार्यों का नवीनतम उदाहरण है।
स्वदेश निर्मित पहला एल्युमीनियम माल ढुलाई रैक
रेलवे को उसका स्वदेश निर्मित पहला एल्युमीनियम माल ढुलाई रैक मिल गया है जिसे ओडिशा के भुवनेश्वर से रवाना कर दिया गया। रविवार, 16 अक्टूबर को एल्युमीनियम रैक वाली मालगाड़ी को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हरी झंडी दिखायी। देश की यह ऐसी पहली मालगाड़ी है जिसमें एल्युमिनियम से बनाए गए रैक लगाए गए हैं। रेलवे की ओर से कहा गया है कि बेस्को लिमिटेड वैगन डिविजन और हिंडाल्को के सहयोग से इस मालगाड़ी का निर्माण किया गया है।
ध्यान देना होगा कि भारतीय रेलवे में यह विकास बहुत लाभकारी साबित होगा। हालांकि, नये वाले रैक के विनिर्माण में खर्च 35 प्रतिशत अधिक आता है क्योंकि यह पूरी तरह से एल्यूमिनियम से निर्मित है। इस रैक से होने वाले लाभ के बारे में बात करें तो मालवाहक ट्रेनों में इस नये रैक के लग जाने के बाद इसके सेवा देने के समय कार्बन उत्सर्जन में आठ से 10 टन की कमी आएगी। ऐसे में सोचने वाली बात है कि लागत तो बढ़ा है पर उसकी गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी हुई है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
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लाभ ही लाभ
एल्युमीनियम रैक से क्या क्या लाभ होंगे-
- एल्युमीनियम रैक के कारण वैगन का वजन घटा है।
- मौजूदा स्टील रैक की अपेक्षा यह एल्युमीनियम रैक 180 टन हल्का है।
- हल्का होने से होगा यह कि समान दूरी के लिए गति तेज होगी।
- हल्का होने से बिजली भी कम खर्च होगी।
- इसके साथ-साथ इसका प्रति क्विंटल कार्बन फुटप्रिंट भी कम है।
- नया वाला रैक अपरदन (कटाव) प्रतिरोधी है जिससे इसके रखरखाव का खर्च कम आएगा।
- नया रैक का Resale value मूल्य 80 प्रतिशत होगा
- यह अभी वाले रैक की अपेक्षा 10 वर्ष अधिक चल पाएगा।
रेल मंत्री वैष्णव ने कहा कि “ये वैगन जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में हमें सक्षम बनाएंगे।” इस बारे में हिंडाल्को की तरफ से भी बयान दिया गया। हिंडाल्को ने कहा कि “रेलवे ने आने वाले वर्षों में एक लाख वैगन शामिल करने की योजना है जिससे कार्बन उत्सर्जन में प्रति वर्ष 25 लाख टन की कमी होगी।”
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कोयला ले जाएंगे ये रैक
जानकारी दे दें कि ओडिशा के लापंगा में हिंडाल्को के आदित्य स्मेल्टर के लिए ये रैक कोयला ले जाएंगे। ध्यान देना होगा कि इन एल्युमीनियम रैक को निर्मित करने के पीछे कंपनी की एक बड़ी योजना है। यह बड़ी कंपनी योजनाबद्ध रूप से काम करते हुए हाई-स्पीड पैसेंजर ट्रेनों के लिए हल्के, कम खर्च वाले और टिकाऊ एल्युमीनियम रेल कार बॉडी स्ट्रक्चर में अपना योगदान देने की सोच रखती है। एक बयान पर ध्यान दें तो एल्युमीनियम रैक के निर्माण से आयात संबंधी लाभ भी होगा, वो इस तरह से कि यह आयात बिल को कम करता है। लोहा और इस्पात उद्योग निकल और कैडमियम की बहुत अधिक खपत करता है। भारत को इन धातुओं के आयात पर निर्भर होना पड़ता है जिससे एल्युमीनियम रैक के आने के बाद छुटकारा मिलेगा। देश में एल्युमीनियम उद्योग के मद्देनजर भी लाभकारी है।
इसके अतिरिक्त, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और जापान में एल्युमीनियम ट्रेनों की बड़ी हिस्सेदारी है। इसका श्रेय इसके स्लीक और एरोडायनेमिक डिजाइनों और बिना पटरी से उतरे उच्च गति पर झुकाव की उनकी क्षमता को दिया जाता है। दुनिया भर में मेट्रो ट्रेनों के लिए एल्युमीनियम अच्छा विकल्प है। वे यात्रियों की सुरक्षा को बढ़ाते हैं और उच्च स्थायित्व प्रदान करते हैं। इसने क्रैशवर्थनेस और बेहतर क्रैश एब्जॉर्प्शन क्षमता में सुधार किया है।
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अब देखें तो भारत में एल्यूमीनियम रैक का बनना एक अच्छा और विकास की ओर बढ़ाता एक और कदम हैं। एल्युमीनियम रैकों की बढ़ी हुई संख्या से लाभ ही लाभ होते दिखायी देते हैं। ऐसे वो समय अब अधिक दूर नहीं है जब भारत अपनी स्वदेशी एल्युमिनियम बॉडी वाली मेट्रो ट्रेनों और हाई स्पीड ट्रेनों को भी बनाना शुरू कर दे। पहले ही एल्युमिनियम बॉडी वाले वंदे भारत ट्रेन सेट बनाने पर रेलवे का ध्यान है जिसके बारे में घोषणा भी कर दी गयी है ऐसे में भारतीय रेलवे की तीव्र गति से हो रहे विकास को पूरी दुनिया देख रही है।
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