उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में एक लंबी पारी खेली। देश में जब-जब बात होगी बड़े और प्रभावशाली नेताओं की तब-तब उत्तर प्रदेश के धरतीपुत्र के रूप में विख्यात मुलायम सिंह यादव का नाम तो लिया ही जाएगा। सोमवार को मुलायम सिंह यादव ने सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर अंतिम सांस ली। उन्होंने 82 साल की उम्र में संसार से विदा ले लिया।
सफल राजनैतिक जीवन
जब भी मुलायम सिंह यादव को याद किया जाएगा भारतीय राजनीति में उनके एकछत्र राज को अवश्य याद किया जाएगा। वो उत्तर भारत के बड़े समाजवादी और किसान नेता के रूप में जाने जाते रहे। एक साधारण किसान परिवार में जन्में मुलायम सिंह यादव ने अपना राजनैतिक जीवन उत्तर प्रदेश में विधायक के रूप में आरंभ किया।
अगर उनके राजनैतिक जीवन की बात करें तो उन्होंने कई सफलताएं अपने नाम कीं। मुलायम सिंह यादव आठ बार विधायक, सात बार सांसद, एक बार देश के रक्षा मंत्री और कुल तीन बार राजनैतिक रूप से अति महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, उनका कई-कई क्षेत्रों में बहुत प्रभाव रहा। मुलायम सिंह यादव जीवनभर एक किंगमकेर की तरह ही रहे और अपने राजनैतिक जीवन के अंतिम दौर में वो समाजवादी पार्टी के संरक्षक के रूप में काम करते रहे।
लेकिन वो कहते हैं न कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, इतने बड़े नेता होने के बाद भी उनकी राजनैतिक उपलब्धियों के साथ-साथ बड़े विवाद भी उनसे जुड़े रहे और समय-समय पर उन विवादों की चर्चा भी हुई। स्वयं को एक समाजवादी कहने वाले मुलायम सिंह अपनी सक्रिय राजनीति में एक नहीं बल्कि कई बार विवादों में रहे। आइए कुछ विवादों पर ध्यान देते हैं।
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मुलायम सिंह से जुड़े कुछ विवाद
विवादित बयान-
उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में कई रिक्शा चालकों को मुफ्त ई-रिक्शा दिया गया था। उस दौरान बदायूं दुष्कर्म कांड काफी सुर्खियों में था। उस कार्यक्रम के बीच मुलायम सिंह ने एक ऐसा विवादित बयान दे दिया था, जिससे राजनैतिक जगत के साथ-साथ पूरे देश में इसकी निंदा हुई थी। दरअसल, मुलायम ने कि दुष्कर्म तो एक ने किया और नाम चार का लिख दिया, क्या ऐसा होना संभव है कि चार युवक एक महिला के साथ दुष्कर्म करें। ऐसा शायद उन्होंने इसीलिए कहा था कि क्योंकि उस समय दुष्कर्म के मामलों में मुलायम ने यूपी को अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम सक्रिय बताया था।
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कारसेवकों पर गोली चलवाने का निर्णय-
मुलायम सिंह यादव उस समय भी विवादों के घेरे में आ गए थे जब उन्होंने अयोध्या नगरी में कारसेवकों पर गोली चलवाने का निर्णय लिया था। ये शायद उनके राजनैतिक जीवन का सबसे विवादित निर्णय था। साल 1990 में कारसेवकों पर दो बार गोली चलायी जाने की घटना सामने आयी थी। जिसमें पहली बार 30 अक्टूबर, 1990 में कारसेवकों पर गोलियां चलाई गयीं, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गयी थी। इस घटना के दो दिनों के बाद 2 नवंबर को गोली चली थी और ये गोलियां तब चली थीं जब हजारों कारसेवक बाबरी मस्जिद के पास हनुमान गढ़ी पहुंचे थे।
इस घटना में लगभग डेढ़ दर्जन लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने कुछ सालों बाद एक टीवी चैनल पर अपने इंटरव्यू में ये बात कही थी कि “उस समय उनके सामने मंदिर-मस्जिद और देश की एकता का मुद्दा उठता नज़र आ रहा था। बीजेपी वालों ने तो अयोध्या में 11 लाख की भीड़ कारसेवा के नाम पर वहां लाकर खड़ी कर दी थी। जिस वजह से मुझे देश की एकता को मद्देनजर रखते हुए गोली चलवाने का फैसला लेना पड़ा। हालांकि, मुझे इस बात का काफी ज्यादा अफसोस है, लेकिन मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था।” उनके अनुसार जहां उनका ये निर्णय लेना बड़ी ही कठिनाई भरा था, वहीं असल में उनको इसका काफी ज्यादा राजनीतिक लाभ भी हुआ था। इससे मुस्लिमों के बीच उनकी अच्छी छवि बन गयी थी, इसलिए उनके कुछ विरोधी ‘मुल्ला मुलायम’ बुलाने लगे थे।
महिला कार्यकर्ताओं से जुड़ा विवाद-
एक बार मुलायम सिंह यादव पर महिला कार्यकर्ताओं का उपयोग करके ज्यादा वोट प्राप्त करने का भी आरोप लगाया गया था। खबरों के अनुसार, उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि पार्टी में अधिक से अधिक लड़कियों को शामिल करो, इससे ज्यादा वोट मिलेंगे और हम ये प्रयोग पहले भी कर चुके हैं।
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दुष्कर्म पर दिया गया बयान-
मुरादाबाद में एक सपा रैली के आयोजन के दौरान मुलायम सिंह ने एक ऐसी बात कह दी थी जिससे उनकी देशभर में निंदा हुई थी। उन्होंने कहा था कि दुष्कर्म के मामलों में किसी भी अपराधी को फांसी की सजा देना सही बात नहीं है। क्योंकि लड़के हैं और लड़कों से गलतियां हो जाती हैं। साथ ही उन्होंने इसके विरुद्ध कानून बदलने की भी मांग की थी।
मुलायम सिंह ने साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन करके अपने राजनैतिक करियर को एक नया मोड़ दिया था। मुलायम के इस गठबंधन या फिर यूं कहें कि इस दांव ने बीजेपी को एक बुरी तरह हराया। पिछड़ी जातियों और दलितों का ये महागठबंधन बीजेपी को बहुत भारी पड़ा था।
गेस्ट हाउस कांड-
इसके बाद जो घटना हुई उसे गेस्ट हाउस कांड के नाम से भी जाना जाता है। जिसके बाद बसपा ने सपा पर ये आरोप लगाया था कि मुलायम सिंह यादव के समर्थकों ने मायावती पर हमला करवाया था। दरअसल हुआ कुछ ऐसा था कि 2 जून, 1995 को मायावती बसपा के विधायकों के साथ लखनऊ के एक गेस्ट हाउस के एक कमरे में थीं। तभी अचानक वहां आए पर कथित रूप से सपा के समर्थक गेस्ट हाउस के अंदर घुस गए। जिसके बाद मायावती ने अपनी जान बचने के लिए स्वयं को कमरे में बंद कर लिया था। इस घटना के बाद सपा और बसपा में टकराव काफी अधिक बढ़ गया था।
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रामपुर तिराहा कांड-
मुलायम सिंह यादव जब मुख्यमंत्री थे तब एक मामला सामने आया था- रामपुर तिराहा कांड। एक अक्तूबर 1994 में रात के लगभग 10 बजे देहरादून के दर्शनलाल चौक से लगभग दो-ढाई सौ बसों का काफिला जा रहा था। तभी रामपुर तिराहा पहुंचते ही उन पर गोलियों की बारिश होने लगी थी। जिसके बाद वहां पर कई खून से लतपत लाशों का ढेर लग गया था। इस घटना में महिलाओं के साथ बदसूलूकी की भी खबरें आई थीं। इस घटना ने मुलायम सरकार की बहुत किरकिरी करवायी थी।
इन विवादों से इतर पहलवान और शिक्षक रह चुके मुलायम सिंह यादव को उनके साहसिक सियासी फैसलों के लिए भी जाना जाता है। राजनीति के अखाड़े में वो हमेशा ही एक पहलवान के रूप में जाने जाते रहे थे। उत्तर प्रदेश की राजनीति में उन्होंने कई बड़ी ऊंचाइयों को अपने नाम किया है। उनके जैसा एक सफल नेता बनना सभी नेताओं के बस की बात नहीं है। उन्होंने तीन बार राज्य का कार्यभार संभाला, वो देश के रक्षा मंत्री भी रहे। हालांकि उनके प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा नहीं हो पाया। राजनीति के क्षेत्र में मुलायम सिंह यादव की जैसी धाक रही उससे राजनीति में आने वाले युवा पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
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