जनता को मुफ्तखोरी की आदत डालने के बेहद ही बुरे परिणाम होते हैं। यह हमें श्रीलंका की स्थिति से स्पष्ट तौर पर देखने को मिल ही गया। श्रीलंका के दिवालिया होने के पीछे का मुख्य कारण मुफ्तखोरी ही रहा। जब देश पर कोरोना जैसी भयंकर महामारी का साया छाया, तो खासतौर पर गरीब लोग भूखे पेट न सोएं, इसलिए मोदी सरकार द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) लेकर आयी थीं। यह योजना उस वक्त की आवश्यकता थीं। परंतु देखा जाए तो अब धीरे-धीरे यहीं योजना सरकार पर ही बोझ बनती चली जा रही है। बावजूद इसके सरकार ने एक बार फिर योजना की अवधि बढ़ाने का निर्णय लिया है।
फिर बढ़ी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की अवधि
वर्तमान परिस्थितियों पर नजर डालें तो भारत में कोरोना महामारी को बुरी तरह से मात मिल चुकी है। अब देश के हालात काफी हद तक सुधर गए हैं। लोगों का काम-धंधा वापस से शुरू हो चुका है, अर्थव्यवस्था ने भी तीव्र गति पकड़ ली है। एक तरफ जहां हम भारतीय अर्थव्यवस्था की तीव्र गति और कोरोना को मात देने की बात कर रहे हैं, वहीं एक बार फिर मोदी सरकार के द्वारा चलायी जा रही पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है कि अगर देश तरक्की की ओर अग्रसर हो रहा तो क्यों फिर सरकार को पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पड़ी? आखिर इसके पीछे सरकार का उद्देश्य क्या हो सकता है? वोट बैंक? महंगाई? या कुछ और?
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कोरोना महामारी के दौरान देश में जब चारों ओर हाहाकार मच गया था। लोगों को मजबूरन अपने घरों में बंद रहना पड़ा, कामकाज एकदम बंद हो गया था। तब सरकार की यह जिम्मेदारी थी कि इन मुश्किल हालातों में देश में कोई व्यक्ति भूखा ना सोएं। तब वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरुआत हुई थी। इस योजना के अंतर्गत गरीब लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया जाने लगा। योजना के अंतर्गत 80 करोड़ गरीबों को पांच किलो गेहूं और चावल हर महीने दिया जाता है।
यह योजना दो वर्षों से लगातार चली जा रही है और पिछली बार इसकी अवधि को 30 सितंबर 2022 तक के लिए बढ़ाया गया था, जिसके पश्चात योजना की अवधि बढ़ाने को लेकर सवाल खड़े किये जाने लगे थे। इस बीच अभी हाल ही आयी एक खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की अवधि को तीन महीने के लिए फिर से बढ़ा दिया गया है। अब दिसंबर 2022 तक इसके तहत गरीब लोगों को मुफ्त राशन मिलता रहेगा।
सरकार पर बढ़ रहा है बोझ
यहां प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या सरकार ने यह निर्णय सिर्फ जनता के हित के लिए किया है? या फिर सरकार इसमें भी अपना कोई फायदा देख रही है? माना जा रहा है कि त्योहारों के समय को मद्देनजर रखते हुए केंद्र सरकार इस योजना को और आगे बढ़ाने का विचार कर रही थी। वित्त मंत्रालय के अनुसार इस योजना को तीन महीने बढ़ाने से सरकार करीब 45 हजा़र करोड़ रुपये का भार आ सकता है। वित्त मंत्रालय द्वारा भी PMGKAY योजना को निरंतर जारी रखने को लेकर चेतावनी पहले ही जारी की जा चुकी है।
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इसके अतिरिक्त देश में गेहूं और चावल के स्टॉक में भी कमी देखने को मिल रही है। देश में गेहूं का स्टॉक 15 सालों के निचले स्तर पर पहुंच गया है। घरेलू जरूरतों को देखते हुए सरकार ने गेहूं और टूटे चावल के निर्यात तक पर प्रतिबंध लगा दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार 1 सितंबर को सार्वजनिक चावल और गेहूं का स्टॉक केवल 60 मिलियन टन से अधिक था। उसके बाद भी नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी मुफ्त अनाज प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को और तीन महीने के लिए बढ़ा दिया है। साल 2021-22 (अप्रैल-मार्च) के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए 105.6 मिलियन टन अनाज प्रसारित किया गया था, जिसमें से 41.7 मिलियन टन PMGKAY के अंतर्गत था।
अभी हाल ही में आई एक रिपोर्ट के चलते ये अनुमान लगाया गया था कि अगर इस तरह से इस योजना को आने वाले छह महीने तक बढ़ाया जाता रहा तो बजट से 700 अरब रुपये और खर्च हो जाएंगे। साथ ही मार्च 2023 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 6.4% तक सीमित करने के सरकार के लक्ष्य के लिए काफी जोखिम पहुंच सकता है, जो पहले 6.9% पर था और महामारी के पहले वर्ष में इसका रिकॉर्ड 9.2% पर पहुंच गया था।
प्रसन्ना अनंत सुब्रमण्यम की लीडरशिप में ICICI सिक्योरिटीज लिमिटेड के विश्लेषकों की मानें तो- “इस खाद्य योजना के जारी रहने पर इस साल तक खाद्यान्न स्टॉक भी खत्म हो सकता है।” साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि अगर इस योजना को आगे बढ़ाने का फैसला आया तो यह मुद्रास्फीति को भी बहुत प्रभावित कर सकता है। क्योंकि चावल और गेहूं के मूल्य भारत की खुदरा मुद्रास्फीति का लगभग 10% हिस्सा है, जो भीषण गर्मी की लहर और खराब मानसून (कम उत्पादन) के कारण बढ़ते जा रहे है।
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आवंटन कम करने की जरूरत
आज जब देश में कोरोना महामारी का लगभग अंत हो चुका है। देश की अर्थव्यवस्था भी पटरी पर है, तो ऐसे में सरकार को इस योजना को आगे बढ़ने का निर्णय ठीक नज़र नहीं आ रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना कोरोना महामारी के दौर में गरीब लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं साबित हुई। परंतु अब इसका विस्तार से पहले कुछ पहलूओं पर गौर करने की आवश्यकता है।
यदि सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को बंद नहीं कर सकती, तो इसमें कुछ बदलाव अवश्य किए जा सकते हैं। सरकार इसके आवंटन घटाने पर फैसला कर सकती है। जिन लोगों ने योजना का लाभ उठाया है उन्हें लाभार्थी सूची से हटा दिया जाना चाहिए जबकि जिन्हें इसकी आवश्यकता है उन्हें मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यदि लाभार्थी गरीबी रेखा से नीचे है तो आवंटन में वृद्धि भी अच्छी होगी या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों से स्वेच्छा से योजना छोड़ने की अपील भी कर सकते हैं, जैसे एलपीजी सब्सिडी के लिए किया गया था। परंतु अगर PMGKAY योजना जिस तरह चल रही है, उसी प्रकार से चालू रखा जाता है, तो यह हमारे देश के लिए, देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक भी सिद्ध हो सकती है।
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