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कैसे अचानक नरेंद्र मोदी बन गए थे मुख्यमंत्री, आज के दिन ही ली थी शपथ

मोदी को मुख्यमंत्री बनाने में अटल जी की थी बड़ी भूमिका

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
7 October 2022
in समीक्षा
मोदी गुजरात

Source- Google

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भाजपा राष्ट्रीय मुख्यालय

21 वीं शताब्दी, दिल्ली

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सीएम बनते ही बदल दी दशा और दिशा

जनाधार स्थापित करना एवं गुजरात में एक स्पष्ट रणनीति बनाना ही नरेंद्र मोदी की नीति का हिस्सा था। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारम्भ हुआ। उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का जनाधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकर सिंह वाघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की ही रणनीति थी, अब वो अलग बात थी कि वाघेला ने उन्हीं के साथ विश्वासघात करने में कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा। परंतु नरेंद्र मोदी न रुके, न झुके। उन्होंने रथ यात्रा के पश्चात कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित कश्मीर तक की मुरली मनोहर जोशी की दूसरी रथ यात्रा भी नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई, जिसमें लाल चौक पर आतंकियों के लाख धमकियों के बाद भी छाती ठोक कर भाजपा के कार्यकर्ताओं ने भारत का तिरंगा फहराया। नरेंद्र मोदी को 1998 में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वह अक्टूबर 2001 तक काम करते रहे।

इसी बीच 2001 में केशुभाई पटेल (तत्कालीन मुख्यमंत्री) की सेहत बिगड़ने लगी थी और भाजपा चुनाव में कई सीटे हार रही थी। इसके बाद भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री के रूप में मोदी को नए उम्मीदवार के रूप में रखा। हालांकि, भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी, मोदी के सरकार चलाने के अनुभव की कमी के कारण चिंतित थे। परंतु ये अटल बिहारी वाजपेयी थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को समझा और उन्हें उनका उचित स्थान और सम्मान दिया था। राजधर्म वाला बयान आप राजनीतिक दबाव भी कह सकते हैं, अन्यथा वाजपेयी हमसे और आपसे बेहतर जानते थे कि नरेंद्र मोदी अपना राजधर्म कितना बेहतर निभा रहे थे।

मोदी ने पटेल के उप मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया और आडवाणी व अटल बिहारी वाजपेयी से बोले कि यदि गुजरात की जिम्मेदारी देनी है तो पूरी दें अन्यथा न दें। 3 अक्टूबर 2001 को उन्हें केशुभाई पटेल की जगह गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके साथ ही उन पर दिसंबर 2002 में होने वाले चुनाव की पूरी जिम्मेदारी भी थी। तत्पश्चात नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री का अपना पहला कार्यकाल 7 अक्टूबर 2001 से शुरू किया। इसके बाद मोदी ने राजकोट विधानसभा चुनाव लड़ा, जिसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी के अश्विन मेहता को 14,728 मतों से हराया था।

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गुजरात हिंसा और नरेंद्र मोदी सरकार

नरेंद्र मोदी कई चुनौतियों से भी जूझ रहे थे। एक था गुजरात में भाजपा का बिखरा हुआ संगठन, दूसरा था गुजरात की विकृत संरचना, जो 2001 के विनाशकारी भूकंप के पश्चात और अधिक नष्ट होने लगी थी। परंतु इससे पूर्व कि नरेंद्र मोदी इन सबमें व्यापक परिवर्तन ला पाते, अनर्थ हो गया। 27 फ़रवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात वापस लौट रहे कारसेवकों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में मुसलमानों की हिंसक भीड़ द्वारा आग लगा कर जिन्दा जला दिया गया। इस हादसे में 59 कारसेवक मारे गये थे। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले 1180 लोगों में अधिकांश संख्या अल्पसंख्यकों की थी। इसके लिये न्यूयॉर्क टाइम्स सहित कई वामपंथियों एवं इस्लामिस्टों ने मोदी प्रशासन को दोषी ठहराया। कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की मांग की और यह सिद्ध करने का प्रयास कि सारा कार्य मोदी की देखरेख में हुआ।

परंतु नरेंद्र मोदी ने गुजरात की दसवीं विधानसभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल १८२ सीटों में से १२७ सीटों पर जीत हासिल की। इसका एक कारण था मोदी की कट्टर हिन्दुत्व की रणनीति और दूसरा कारण था अक्षरधाम मंदिर पर आतंकी हमले के पश्चात गुजरात सरकार की प्रतिक्रिया, जिसमें आतंकियों पर किसी प्रकार की दया नहीं दिखाई गई।

इतना ही नहीं अप्रैल २००९ में भारत के उच्चतम न्यायालय ने विशेष जांच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं। यह विशेष जाँच दल दंगों में मारे गये कांग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था। दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने SIT की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। परंतु वामपंथी रुके नहीं। फरवरी 2011 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह आरोप लगाया कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य जानबूझ कर छिपाये गये हैं और सबूतों के अभाव में नरेन्द्र मोदी को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता।

मोदी में है विपत्ति को अवसर बनाने की कला

इंडियन एक्सप्रेस ने भी यह लिखा कि रिपोर्ट में मोदी के विरुद्ध साक्ष्य न मिलने की बात भले ही की हो किन्तु अपराध से मुक्त तो नहीं किया। द हिन्दू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ़ इतनी भयंकर त्रासदी पर पानी फेरा अपितु प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न गुजरात के दंगों में मुस्लिम उग्रवादियों के मारे जाने को भी उचित ठहराया। भारतीय जनता पार्टी ने मांग की कि SIT की रिपोर्ट को लीक करके उसे प्रकाशित करवाने के पीछे सत्तारूढ़ काँग्रेस पार्टी का राजनीतिक स्वार्थ है इसकी भी उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच होनी चाहिये।

सुप्रीम कोर्ट ने बिना कोई फैसला दिये अहमदाबाद के ही एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जांच करके अविलम्ब अपना निर्णय देने को कहा। अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जांच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि यह बात तो सच है कि ये दंगे भीषण थे परन्तु नरेन्द्र मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं था। 7 मई 2012 को उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जज राजू रामचन्द्रन ने यह रिपोर्ट पेश की कि गुजरात के दंगों के लिये नरेन्द्र मोदी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 ए (1) (क) व (ख), 153बी (1), 166 तथा 505 (2) के अन्तर्गत विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्यता की भावना फैलाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है।

हालांकि, रामचन्द्रन की इस रिपोर्ट पर विशेष जांच दल (SIT) ने आलोचना करते हुए इसे दुर्भावना व पूर्वाग्रह से परिपूर्ण एक दस्तावेज़ बताया। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने तक काफी उतार चढ़ाव देखे हैं परंतु विपत्ति को अवसर बनाने की कला बहुत कम लोगों में होती है और यह गुण ही नरेंद्र मोदी को आज के सबसे उत्कृष्ट नेताओं में से एक बनाता है।

और पढ़ें: Gujarat 2002 Scam– कैसे तीस्ता सीतलवाड़ ने अनेकों दंगा पीड़ित मुसलमानों को उल्लू बनाया

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