महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा शिवसेना का मराठी अस्मिता के नाम पर बोलबाला रहा है। राज्य के सबसे बड़े राजनीतिक नाम की बात करें तो वह निश्चित ही शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे का था। मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के मुद्दे पर महाराष्ट्र में अपनी राजनीति चलाने वाले ठाकरे ने दिल्ली की सत्ता तक पर पकड़ बनाकर रखी थी। सत्ता पर कब्जा ठाकरे तो जरूर था लेकिन वह स्वयं किसी पद पर नहीं रहना चाहते थे। लेकिन पद की लालसा ने उनके द्वारा चुने गए उनके उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे को राज्य की राजनीति में हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया। उद्धव ठाकरे से बालासाहेब का प्रेम उनकी राजनीतिक विरासत के लिए मुसीबत बना और अब गलत हाथों में पड़ी शिवसेना टुकड़े टुकड़े हो चुकी है। खास बात यह है कि अब एक बार फिर बालासाहेब ठाकरे की सेना परिवार से निकलकर एक मजबूत धड़ा बना रही है।
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बालासाहेब के बड़े बेटे को आप भूले तो नहीं
महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार की विरासत को लेकर अब संभव है कि नए सिरे से टकराव शुरू हो सकता है और इस टकराव में यदि कोई सबसे कमजोर कड़ी होगा तो वो निश्चित उद्धव ठाकरे ही होंगे। शिवसेना की टूट फूट का संकेत दशहरा में हुई शिवसेना की दो रैलियां हैं। एक ओर जहां मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे बागी नेताओं और विधायकों के साथ बीकेसी मैदान में शिवसेना पर दावा ठोक रहे थे तो दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी पार्टी के लिए अपना दावा ठोकते नजर आए।
दरअसल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के मंच पर उनके समर्थकों के अलावा उद्धव ठाकरे के परिवार को छोड़कर पूरा बाल ठाकरे कुनबा नजर आया। उद्धव के भाई जयदेव ठाकरे भी एकनाथ शिंदे को बीकेसी में शुभकामनाएं देने के लिए पहुंचे। इस मौके पर उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री को मैं काफी पसंद करता हूं और वह मेरे पसंदीदा सीएम हैं। उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र को ऐसे ही सीएम की जरूरत है। यहां बैठे तमाम लोगों से मेरी अपील है कि वह एकनाथ शिंदे को कभी अकेला न छोड़ें।”
इसके अलावा एकनाथ शिंदे के मंच पर जयदेव ठाकरे, उनकी पूर्व पत्नी स्मिता ठाकरे दिवंगत बिंदु माधव ठाकरे के बेटे निहार ठाकरे मौजूद थे। एकनाथ शिंदे का गुट ज्वाइन करने के मुद्दे पर जयदेव ठाकरे ने खुलकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि मुझे बीते पांच-छह दिनों से फोन आ रहे हैं और यह पूछा जा रहा है कि क्या आपने एकनाथ शिंदे का गुट ज्वाइन कर लिया है लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि ठाकरे कोई गुट नहीं हो सकते।
राजनीति से दूर रहे हैं जयदेव ठाकरे
ज्ञात हो कि जयदेव ठाकरे बाल ठाकरे के बेटे हैं लेकिन राजनीति से वो हमेशा दूर रहे हैं। अहम बात यह है कि उद्धव ठाकरे भी राजनीति से दूर रहे थे लेकिन बालासाहेब ठाकरे ने उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत दी थी। बालासाहेब ठाकरे की राजनीति में उनका सहयोग करने में सबसे अहम भूमिका राज ठाकरे की रही थी। इन सबके बावजूद बालासाहेब के रुख ने राज ठाकरे को नाराज किया और शिवसेना उद्धव के हिस्से आ गई लेकिन शिवसेना के एक बड़े दावेदार जयदेव ठाकरे हमेशा ही रहे थे।
जयदेव ठाकरे वैसे तो राजनीति से हमेशा दूर रहे लेकिन बाल ठाकरे के बड़े बेटे होने के नाते उनका शिवसेना पर हमेशा ही उद्धव ठाकरे से ज्यादा हक रहा है। जयदेव ठाकरे हर मुद्दे पर शिवसेना से बगावत कर एकनाथ शिंदे गुट के समर्थन में खड़े दिखते हैं। उनके बच्चों ने भी कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मुलाकात की थी, उसके बाद दशहरा रैली के अवसर पर भी शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के साथ दिखाई दिए। ध्यान देने वाली बात है कि एकनाथ शिंदे का ग्रुप लगातार शिवसेना पर अपना दावा मजबूत कर रहा है। संख्या बल से लेकर राजनीतिक मूल्यों जैसे सभी मुद्दों पर एकनाथ शिंदे, उद्धव ठाकरे के गुट से आगे ही दिखते हैं। ऐसे में दशहरा रैली के दौरान एकनाथ शिंदे के मंच पर से जयदेव ठाकरे का बयान इस फार्मूले का उल्लेख कर रहा है कि एकनाथ शिंदे अब उद्धव गुट को कमजोर करने के लिए उद्धव के परिवार का ही एक सदस्य सामने ले आए हैं, जो उनके लिए बड़ी चुनौती पैदा कर सकता है।
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