आदिपुरुष पर प्रतिबंध की मांग- सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान

ओम राउत ने गलत पंगा मोल ले लिया

Adipurush

Adipurush Ban: देवियों और सज्जनों, हम TFI की ओर से आदिपुरुष के टीज़र द्वारा पहुंचाई गई ग्लानि, एवं उससे भारतीय जनमानस को हुए शारीरिक, मानसिक एवं सांस्कृतिक कुठाराघात पर अत्यंत खेद प्रकट करते हैं। आइए, व्यवहारिकता और संस्कृति के लिए दो मिनट का मौन रखें, जिन्हें एक बार पुनः फुटबॉल बनाकर टी सीरीज़ द्वारा लतियाया गया। आइए जानते है कि क्यों फिल्म Adipurush के पूर्ण प्रतिबंध (Ban) की मांग उठने लगी है?

यदि आपको प्रतीत हो रहा है कि हम भी आदिपुरुष की भांति अपनी संस्कृति का उपहास उड़ा रहे हैं, तो आप भ्रमित हो रहे हैं। हम तो भोले माणूस हैं, इतना घनघोर पाप हमरी औकात के बाहर है भैया। परंतु ओम राऊत ने जाने अनजाने इस बार वो कर दिया, जो किसी ने भी सोचा नहीं था। अब समस्त देश की एक ही पुकार है, एक ही मांग है कि ओम राऊत की आदिपुरुष को अविलंब प्रतिबंधित (Adipurush Ban) किया जाए।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे आदिपुरुष के एक टीज़र के कारण समूचा राष्ट्र कुपित है और कैसे लोग अब इसमें व्यापक परिवर्तन अथवा सम्पूर्ण प्रतिबंध (Adipurush Ban) की मांग करने पर उतर आए हैं।

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विवादों के केंद्र में है टीज़र

हाल ही में प्रदर्शित आदिपुरुष फिल्म का टीज़र अपने कॉन्टेन्ट के लिए कम एवं अपने इफ़ेक्ट्स के लिए विवादों के केंद्र में है। क्या दर्शक, क्या नेता, सभी इस फिल्म के ट्रीटमेंट से क्रोधित हैं।

उदाहरण के लिए 500 करोड़ के बजट में बनी फिल्म ‘आदिपुरुष’ के टीजर पर विवाद जारी है। फिल्म में भगवान राम, हनुमान और रावण के गलत चित्रण को लेकर इस पर तत्काल बैन लगाने की मांग की गई है। ऐसे में अयोध्या के राम मंदिर के प्रमुख पुजारी  सत्येन्द्र दास ने बुधवार को कहा कि भगवान राम, हनुमान और रावण का चित्रण महाकाव्य के अनुसार नहीं है। ये फिल्म उनकी गरिमा के खिलाफ है। मुख्य पुजारी ने आगे कहा कि फिल्म बनाना कोई अपराध नहीं है, परंतु केवल सुर्खियों में लाने के लिए और जानबूझकर विवाद पैदा करने के लिए नहीं बनाया जाना चाहिए।

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यही नहीं, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने भी इस टीजर की निंदा की है। उन्होंने कहा कि हिंदू देवी-देवताओं का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पाठक ने कहा, “संतों ने जो कुछ भी कहा है, उस पर ध्यान देने की जरूरत है। फिल्मों ने अक्सर हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। जब भी हमारी संस्कृति पर हमला हुआ, इन्हीं संतों और अखाड़ों ने हमारी संस्कृति को बचाया है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व है।”

इससे पूर्व भाजपा प्रवक्ता एवं चर्चित अभिनेत्री मालविका अविनाश ने रावण के चित्रण को लेकर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था, “मैं इस बात से दुखी हूं कि निर्देशक ने रामायण को लेकर कोई शोध नहीं किया। वाल्मीकि की रामायण, कम्बा रामायण या तुलसीदास की रामायण को लेकर की गई कई व्याख्याएँ हैं, जो पूरी दुनिया में उपलब्ध हैं। वे रामायण का सुंदर चित्रण करते हैं। कम से कम वे हमारे देश में पहले से बनी फिल्मों पर तो शोध कर ही सकते थे।’ अविनाश ने कहा, “टीजर में दिखाई देने वाला रावण मुझे भारतीय नहीं दिखता। वह नीली आँखों वाला, चमड़े की जैकेट पहने हुए है। रचनात्मक और स्वतंत्रता की आड़ में ये हमारे इतिहास को इस तरह से पेश नहीं कर सकते।”

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‘रावण में लाख बुराइयां थीं’

अब महोदया ने बात तो गलत नहीं बोली है। माना कि रावण को हमें सकारात्मक चित्रण नहीं देना था, परंतु आदिपुरुष का टीज़र देखकर तो स्वयं दशानन भी अपना चंद्रहास निकालकर ओम राऊत और सैफ अली खान को दौड़ा लेगा। सोशल मीडिया पर ‘रावण में लाख बुराइयां थीं’ वाला मीम अब वास्तव में सत्य प्रतीत हो रहा, क्योंकि वह रावण कम, एक मुस्लिम आक्रांता अधिक प्रतीत हो रहा है। और कोई मुझे ये बताए कि इतना परफेक्ट ट्रिम कट त्रेता युग में कब से मिलने लगा?

अब बात संस्कृति के अपमान की हो और नरोत्तम मिश्रा पीछे रहें, ऐसा हो सकता है क्या। उन्होंने आदिपुरुष में भारतीय संस्कृति को अपमानित करने वाले दृश्य, विशेषकर बजरंगबली द्वारा कथित रूप से चमड़े के सामग्री के उपयोग पर आपत्ति जताई और उन दृश्यों को हटाने को कहा, अन्यथा उन्होंने कानूनी कार्रवाई को तैयार रहने के लिए कहा –

वहीं पर रामानंद सागर के रामायण में सीता जी की भूमिका से सबको अभिभूत करने वाली दीपिका चिखलिया ने इस फिल्म के स्पेशल इफ़ेक्ट्स पर प्रश्न उठाते हुए कहा, “मैंने आदिपुरुष का बिल्कुल टीजर देखा है। मुझे लगता है कि रामायण की कहानी एक सच्चाई है और इसे VFX से जोड़ना सही नहीं लगा। यह मेरे निजी विचार हैं। लोग कह रहे हैं कि फिल्म में हनुमान जी ने लेदर पहना है, लेकिन टीजर में मुझे कुछ साफ नजर नहीं आया। लेकिन अगर ऐसा है तो मुझे लगता है कि वाल्मिकी जी और तुलसी जी ने जिस सच्चाई के साथ रामायण को लिखा है, उससे छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। मुझे लगता है हमे इसे संभाल कर रखना चाहिए, क्योंकि यह देश की धरोहर है।”

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रामानंद सागर का रामायण

वैसे ये बात भी गलत नहीं है। जब से आदिपुरुष का टीज़र प्रदर्शित हुआ है, क्रोधित जनता ने पुनः रामानंद सागर के रामायण को स्मरण किया है, और कई लोगों ने तो युगो साको के बहुचर्चित, एनिमेटेड संस्करण को भी स्मरण किया है, जो दुर्भाग्यवश भारत में 1993 में प्रदर्शित नहीं हो पाई थी।

सन् 1983 में जापानी फिल्ममेकर यूगो साको (Yugo Sako) पहली बार भारत आए। यहां उन्हें रामायण की कहानी के बारे में पता चला। उन्हें कहानी इतनी पसंद आई कि उन्होंने इस पर और रिसर्च करनी शुरू कर दी। उन्होंने जापानी में रामायण के 10 अलग-अलग वर्जन तक पढ़ डाले।  तभी उन्हें इस पर फिल्म बनाने की ख्वाहिश हुई। वह इस पर एक एनिमेशन फिल्म बनाना चाहते थे, जिस पर 1990 में फिल्म पर काम शुरू हुआ। 450 एक्टर फिल्म के लिए चुने गए। इस फिल्म को बनाने में भारतीय कलाकारों और तकनीशियनों का भी अहम योगदान रहा, परंतु इसे विरोध भी झेलने पड़े।

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एक भ्रामक खबर

परंतु इंडियन एक्सप्रेस के एक भ्रामक खबर के कारण यब फिल्म सिनेमाघरों में तब प्रदर्शित नहीं हो पाई। परंतु वो कहते हैं न, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं, और शीघ्र ही इसकी कीर्ति चहुं ओर फैलने लगी।

लगभग 20 वर्ष पूर्व, कार्टून नेटवर्क पर, दीपावली के शुभ अवसर जब ये फिल्म प्रदर्शित हुई थी, तो ये जनमानस में कितनी लोकप्रिय होगी, इसका अंदाज़ा लेशमात्र भी किसी को न था। पर ऐसी ही था, ‘रामायण – द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ के नाम से, और जो प्रभुत्व चंद्रमौलि चोपड़ा यानी रामानंद सागर के बहुचर्चित ‘रामायण’ ने फैलाया था, उसको भयानक टक्कर दी इस फिल्म ने। आज जब ओम राऊत के हाल ही में में प्रदर्शित ‘आदिपुरुष’ के टीज़र से लोग इतनी बुरी तरह भड़के हुए हैं, तो ऐसे में इस चलचित्र का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। सत्य कहें तो वाल्मीकि रामायण को सबसे अधिक और सबसे सटीक अगर किसी ने आत्मसात किया, तो इसने, और यही संदेश आत्मसात करने की आवश्यकता शायद आदिपुरुष को सबसे अधिक थी, जो दुर्भाग्यवश वह न कर पाई। देश के हर कोने से एक ही आवाज सुनाई दे रही है कि Adipurush फिल्म को ban किया ही जाना चाहिए।

जय श्री राम!

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