‘रक्तांचल’ में एक बड़ा ही चर्चित संवाद है, “दंगल के नियम कितने भी बदल जाए लेकिन आज भी दंगल दांव से जीते जाते हैं!” यह बात राजनीति में भी शत प्रतिशत लागू होती है, जहां हर एक सीट, चाहे वह ग्राम प्रधान की ही क्यों न हो, अति महत्वपूर्ण होती है। राजनीति में अभेद्य कुछ भी नहीं होता और यह बात योगी आदित्यनाथ से बेहतर कौन जान सकता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे योगी आदित्यनाथ कर्नाटक के एक महत्वपूर्ण गढ़ पर भाजपा का आधिपत्य स्थापित करने वाले हैं और साथ ही यह भी जानेंगे कि सीएम योगी कैसे एचडी देवेगौड़ा से उनका गढ़ छीनने का खाका तैयार कर रहे हैं। दरअसल, योगी आदित्यनाथ कर्नाटक के मांड्या क्षेत्र के बहुचर्चित कुम्भ मेले में भाग लेने जाने वाले हैं। वो 16 अक्टूबर से प्रारंभ होने वाले इस मेले में बतौर प्रमुख अतिथि सम्मिलित होंगे।
तो, इसमें इतना महत्वपूर्ण क्या है? भाजपा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को राज्य में अपना आधार मजबूत करने के लिए भेज रही है, खासकर ओल्ड मैसूर और बेंगलुरु क्षेत्रों में। खेल मंत्री नारायण गौड़ा ने 16 अक्टूबर को कावेरी, हेमावती और लक्ष्मण तीर्थ नदियों के संगम पर महाकुंभ मेले का उद्घाटन करने के लिए योगी को मांड्या जिले में अपने निर्वाचन क्षेत्र केआर पेट में आमंत्रित किया है। गौड़ा हाल ही में योगी आदित्यनाथ को आमंत्रित करने पहुंचे थे। योगी कुछ हफ्ते पहले नेलामंगला में धर्मस्थल मंजुनाथेश्वर प्राकृतिक चिकित्सा और योग विज्ञान संस्थान के ‘क्षेमवन’ का उद्घाटन करने के लिए बेंगलुरु गए थे।
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देवगौड़ा की बढ़ेगी मुश्किलें
इसका अपना राजनीतिक महत्व है। मांड्या क्षेत्र वह जगह है जहां से भाजपा का विजयी होना लगभग असंभव माना जाता है। कहते हैं कि भाजपा एक बार को पाकिस्तान में सरकार बना ले परंतु यहां नहीं। ऐसा क्यों? क्योंकि यह ‘माटी के लाल’ जेडीएस के संस्थापक एचडी देवेगौड़ा का गढ़ है। वैसे वो कितने माटी के लाल हैं, ये तो वही जाने परंतु यहां के लोगों के लिए वह आराध्य समान हैं।
परंतु प्रश्न तो अब भी उठता है कि इससे देवेगौड़ा के गढ़ को कैसे हानि होगी? असल में एचडी देवेगौड़ा हैं वोक्कालिगा, जिनकी कर्नाटक में काफी प्रभावशाली उपस्थिति है और जिनसे प्रभावशाली भाजपा नेता एवं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस एम कृष्णा भी संबंध रखते हैं। ये उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना कि लिंगायत समुदाय, जिससे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदयुरप्पा आते हैं। वोक्कालिगा समुदाय की लिंगायत और अन्य जातियों से बनती नहीं है और ये कर्नाटक के राजनीति में उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना यूपी-बिहार की राजनीति में ब्राह्मण, ठाकुर एवं यादव, जाटव और अन्य जातियों की लड़ाई।
ऐसे में योगी क्या करेंगे? स्मरण है कर्नाटक 2018 का विधानसभा चुनाव? भाजपा भले ही प्रारंभ में सरकार नहीं बना पाई परंतु 108 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही और इसके एक प्रमुख कारण थे- योगी आदित्यनाथ। वो कैसे? महोदय ने जहां भी रैली की है, भाजपा को उस राज्य में बढ़त मिली है। उदाहरण के लिए त्रिपुरा में 25 वर्ष से लेफ्ट की सरकार थी लेकिन भाजपा ने वहां भारी जीत दर्ज कर 60 में से 43 सीटों पर कब्जा जमाकर इतिहास रचा था। सीएम योगी तब भी यहां विधानसभा चुनाव के लिए स्टार प्रचारक थे। योगी ने त्रिपुरा में विधानसभा की 20 सीटों पर चुनाव प्रचार किया था जिनमें से 17 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी।
ठीक उसी प्रकार कर्नाटक विधासभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने भाजपा के लिए प्रचार किया था। यहां भी वो स्टार प्रचारकों में से एक थे। उन्होंने कर्नाटक में कुल 24 जगहों पर रैलियां थीं। वो नाथ सम्प्रदाय से जुड़े हैं और इसी वजह से योगी ने चुनाव प्रचार में अपनी छाप छोड़ी थी और इसका असर कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर दिखा भी था। जिन इलाकों में योगी की रैली हुई थी, वहां की काफी सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों को बढ़त मिली थी। फिर क्या था, हिंदुत्व छवि वाले योगी की मांग चुनाव प्रचार के लिए हर राज्य में होने लगी। हिमाचल, गुजरात के बाद त्रिपुरा में भी योगी का जादू चला और कर्नाटक में भी योगी का जादू दिखा था। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इन पांच राज्यों में भाजपा के मतदाता आधार को और मजबूत करने में योगी अहम भूमिका निभाने वाले हैं।
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नाथ संप्रदाय से आते हैं योगी आदित्यनाथ
इसके अतिरिक्त योगी आदित्यनाथ नाथ संप्रदाय द्वारा संचालित गोरखपुर स्थित गोरक्षनाथ पीठ के अध्यक्ष भी हैं। यह पद उन्हें अपने आध्यात्मिक गुरु एवं राजनीतिक नेता, महंत अवैद्यनाथ से विरासत में मिला था। तो नाथ संप्रदाय का कर्नाटक से क्या नाता? असल में कर्नाटक में नाथ संप्रदाय का एक प्रमुख वर्ग वास करता है और नाथ संप्रदाय के महंत को इनके अनुयायी अपने आराध्य का दर्जा भी देते हैं। वर्ष 2018 में भी योगी जब भाजपा के स्टार प्रचारक के रूप में कर्नाटक आए थे तो कहीं न कहीं उनके इसी व्यक्तित्व की कुछ भूमिका अवश्य थी, जिसके कारण भाजपा 108 सीटें प्राप्त करने में सफल रही थी।
क्या ऐसा पूर्व में भी हुआ है? निस्संदेह! वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 25 संसदीय सीटें अपने नाम की। यदि हम इसमें भाजपा समर्थित कर्नाटक में मांड्या से निर्दलीय उम्मीदवार एवं अभिनेत्री सुमालता को भी जोड़ ले तो कांग्रेस और जेडीएस के हाथ केवल एक एक सीट लगी थी। कर्नाटक में भाजपा की ये जीत कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई दिग्गज जैसे मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व कांग्रेसी मंत्री वीरप्पा मोइली एवं के एच मुनियप्पा एवं राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल गौड़ा अपनी अपनी सीटें बचाने में पूरी तरह असफल रहे थे।
जाने माने अखबार ‘द हिन्दू’ की हिन्द सीएसडीएस लोकनीति सर्वे ने भाजपा के प्रति बढ़े जनाधार को बखूबी दिखाया है। सर्वे डेटा के अनुसार, केंद्र सरकार की नीतियों के प्रति जनता का व्यवहार काफी संतोषजनक रहा है। लगभग तीन चौथाई लोगों ने केंद्र सरकार की नीतियों में अपना विश्वास प्रकट किया। यही नहीं, कर्नाटक राज्य के जातिगत समीकरण भी इस बार भाजपा के पक्ष में दिखाई दिये।
वोक्कालिगा और लिंगायत भाजपा के साथ
जहां एक ओर उत्तरी कर्नाटक में भाजपा ने लिंगायतों में अपना समर्थन बरकरार रखा है। वहीं, जेडीएस और कांग्रेस के बीच बेमेल गठबंधन के खिलाफ दक्षिण कर्नाटक, खासकर वोक्कालिगा बाहुल्य ओल्ड मैसूर की जनता में गुस्सा देखने को मिलते रहा है। इससे भाजपा को राज्य के जातिगत समीकरण बदलने का सुनहरा अवसर मिला। 2019 चुनाव के पश्चात प्रकाशित सर्वे डेटा में बताया गया कि 10 में से 9 लिंगायत मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था। यही नहीं, भाजपा राज्य के अन्य ओबीसी और दलितों को भी अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल रही है।
ओल्ड मैसूर के इलाके में स्थित वोक्कालिगा समुदाय का भी जेडीएस से मोहभंग शुरू हो चुका है। सर्वे डेटा के अनुसार, पिछले विधानसभा चुनाव में 10 में से 6 वोक्कालिगा मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया है। कई विशेषज्ञों के अनुसार, कांग्रेस और जेडीएस का कुल मत प्रतिशत भाजपा को हराने के लिए काफी था पर यह अनुमान सच्चाई से कोसों दूर थी। रही सही कसर कांग्रेस और जेडीएस के स्थानीय कैडरों के बीच तालमेल की भारी कमी ने पूरी कर दी। इतना ही नहीं, दोनों खेमों में उम्मीदवारों के चुनाव को लेकर काफी असंतोष व्याप्त था और इसी अंदरूनी लड़ाई का परिणाम रहा कि कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन कर्नाटक में विफल रहा।
ध्यान देने वाली बात है कि इस समय तो कर्नाटक में हिन्दुत्व अपने चरमोत्कर्ष पर है और कर्नाटक प्रशासन ने भी सुनिश्चित किया है कि किसी भी स्थिति में तुष्टीकरण को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा, जिसका प्रमाण हिजाब प्रकरण और हलाल, झटका के विषय पर देखने को मिला है। इसके अतिरिक्त योगी आदित्यनाथ एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश में सत्ता वापसी करने में सफल रहे हैं। ऐसे में यदि वो भाजपा के लिए कर्नाटक में प्रचार करते हैं तो यह न केवल भाजपा के लिए सोने पर सुहागा होगा अपितु इससे यह भी सिद्ध होगा कि आज भी हिन्दुत्व भाजपा के लिए सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें योगी आदित्यनाथ जैसे दमदार नेता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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