भाषा लोगों के बीच संबंध स्थापित करने का बेहद ही महत्वपूर्ण साधन है। भाषा के बिना लोग मैत्रीपूर्ण बातचीत तक नहीं कर सकते। कोई भी देश जो अपनी सभ्यता के लोकाचार की रक्षा करना चाहता है, उसके लिए अपनी भाषा को महत्व देना बेहद ही आवश्यक हो जाता है, इसलिए भारत के लिए संस्कृत का शब्दकोश बनाना काफी महत्व रखता है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के बारे में तो आप भली भांति जानते ही होंगे। परंतु क्या आपको संस्कृति शब्दकोश यानी डिक्शनरी के बारे में पता है? क्या आपको यह मालूम है कि भारत में दुनिया की सबसे बड़ी और समृद्ध डिक्शनरी बनाई गयी है?
जी हां, भारत में दुनिया की सबसे बड़ी और समृद्ध संस्कृत की डिक्शनरी तैयार की गई है। इसे बनाने की शुरुआत आज से करीब 74 वर्षों पहले हुई थीं। हालांकि इस पर कार्य अभी तक जारी है। वर्ष 1948 में पुणे के डेक्कन कॉलेज के संस्कृत और लेक्सिकोग्राफी विभाग ने ‘संस्कृत का एक विश्वकोश शब्दकोश‘ नामक एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। प्रसिद्ध भाषाविद् और संस्कृत के प्रोफेसर रहे सुमित्रा मंगेश कात्रे ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। डॉ. सुमित्रा ने डिक्शनरी के पहले जनरल एडिटर के रूप में भी काम किया था। उनके बाद में प्रोफेसर ए. एम. घाटगे ने इस पर काम किया। सात दशकों से शब्दकोश पर काम जारी रहा। वर्तमान में शब्दकोश पर 22 लोगों की एक टीम कार्य कर रही हैं।
संस्कृत शब्दकोश पर काम
बताया जाता है कि वर्ष 1947 से लेकर 1973 यानी पहले 25 वर्षों तक 40 विद्वानों ने शब्दकोश पर काम किया। शब्दकोश को विशाल बनाने के लिए प्राचीन लेखों का प्रयोग किया गया। विद्वानों को 1,464 किताबों से शब्दों को अलग करने में ही 25 सालों का समय लग गया। इनमें वेद, दर्शन, साहित्य, धर्मशास्त्र, साहित्य, धर्मशास्त्र, वेदांग, व्याकरण, तंत्र, महाकाव्य, गणित, वास्तुकला, चिकित्सा, पशु चिकित्सा विज्ञान, कृषि, संगीत, शिलालेख, युद्ध, राजनीति, संकलन जैसे विषयों से जुड़े शब्दों को शामिल किया गया।
शब्दकोश को प्रकाशित करने से पहले इसमें पूरी सावधानी बरती गई थी। वर्ष 1976 में शब्दकोश का पहला खंड प्रकाशित हुआ था। शब्दकोश में वर्णानुक्रम में शब्द हैं। अर्थ का वर्णन करने में ऐतिहासिक उदाहरणों का पालन किया जाता है। शब्दकोश की खास बात यह है कि इसमें केवल अर्थों का वर्णन ही नहीं किया गया, बल्कि इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि इन शब्दों को कहां से लिया गया और इनसे जुड़े संदर्भ भी प्रदान किए गए है। शब्दों को उनके संदर्भ के कालानुक्रमिक क्रम के अनुसार व्यवस्थित करने का पूरा ध्यान रखा गया है। किसी विशेष अक्षर से शुरू होने वाले किसी भी शब्द में संस्कृत ग्रंथों में प्रस्तुत सभी उद्धरण शामिल हैं। यह उद्धरण हजारों साल पुराने हो सकते हैं।
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डिजिटल वर्जन लाने की भी तैयारी
इस परियोजना पर संपादकीय सहायक सारिका मिश्रा कहती हैं- “जब इस शब्दकोश को तैयार किया जा रहा था, तब कुछ शब्द ऐसे भी सामने आए, जिसके 20 से 25 अर्थ हो सकते हैं, क्योंकि यह उपयोग और पुस्तकों के संदर्भ के आधार पर भिन्न होता है। एक बार जब अधिकतम संभव अर्थ मिल जाते हैं, तो इसे बेहतर ढंग से समझा जाता है । इसके बाद इसे प्रूफ-रीड किया जाता है और जनरल एडिटर को उनकी पहली समीक्षा के लिए भेजा जाता है। शब्दकोश प्रविष्टि के रूप में अंतिम रूप दिए जाने से पहले इसे एक बार फिर विद्वानों और सामान्य संपादक द्वारा प्रूफ-रीड किया जाता है।”
अब तक शब्दकोश के 35 खंड प्रकाशित हो चुके हैं। इस प्रक्रिया में काफी हद तक कोषश्री नाम के फॉन्ट के साथ एक विशेष सॉफ्टवेयर द्वारा मदद मिली है। जब इस शब्दकोश को बनाने का काम शुरू हुआ, तब तो पन्नों को स्कैन करने के लिए सॉफ्टवेयर उपलब्ध नहीं थे। परंतु अब डिजिटल के दौर में काम थोड़ा बेहतर हो गया, क्योंकि अब सॉफ्टवेयर के कारण स्कैनिंग आसान हो गयी है। विशेषज्ञों के अनुसार डिक्शनरी अधिक से अधिक तक पहुंच सकें, इसलिए इसकी डिजिटल कॉपी लॉन्च होगी, जिसे सॉफ्टवेयर की सहायता से तैयार किया जाएगा।
अब तक जारी किए गए 35 खंडों में लगभग 1.25 लाख शब्दों को शामिल किया जा चुका है। शब्दकोश में पहले अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के कुल 6,056 पृष्ठ प्रकाशित किए गए हैं। ऐसी संभावना है कि शब्दकोश के पूरे होने तक इसमें कुल 20 लाख शब्दों की शब्दावली होगी। इस तरह से कहा जा सकता है कि यह ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी से भी बेहतर होगी, जिसके अब तक 20 खंड और 2,91,500 शब्द प्रविष्टियां हैं। इस तथ्य को देखते हुए कि संस्कृत भाषा में 46 शब्द हैं, अंग्रेजी शब्दकोश में अक्षरों की संख्या से 20 अधिक है, यह संख्या 20 लाख शब्दों से अधिक होने पर आश्चर्य नहीं होगा।
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इतनी विशाल संस्कृत शब्दकोश बनाने का कार्य जाहिर तौर पर आसान नहीं है। इसमें बहुत मेहनत लगी। विद्वानों को 1,464 किताबों से शब्दों को अलग करने में ही 25 सालों का समय लगाया। किताबों से लिए गए शब्दों की एक पर्ची तैयार की। इन पर्चियों में पुस्तक का शीर्षक, शब्द का संदर्भ, व्याकरणिक श्रेणी, उद्धरण, टिप्पणी, संदर्भ, सटीक संक्षिप्त नाम और पाठ की तिथि शामिल रही। इन पर्चियों पर उनके निर्माता द्वारा हस्ताक्षर किए गए और उन्हें विशेष रूप से डिजाइन किए गए धातु के 3,057 दराजों में रखा गया है। यह परियोजना इस बात का एक प्रमुख उदाहरण है कि कैसे मानव धीरज सब कुछ हासिल कर सकता है। देखा जाए तो भारत का इतिहास ऐसे चमत्कारों से भरा रहा है।
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