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‘झुकना ही प्रवृत्ति, झुकना ही पहचान’ ये है बाइडन का नया अमेरिका

दुनिया को दो फाड़ में बांटने और सबको आपस में लड़वाने का दुस्साहस करने वाले अमेरिका को अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि उसके दिन अब लद गए हैं।

Devesh Sharma द्वारा Devesh Sharma
23 November 2022
in विश्व, समीक्षा
बाइडन अमेरिका, Ahead of Russian oil cap, America has become a slithering lizard

Source- TFI

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दुनियाभर में उपजी समस्याओं की जड़ को यदि देखा जाए तो कहीं न कहीं हमें अमेरिका का हस्तक्षेप दिख जाएगा। फिर चाहे वह आतंकवाद की समस्या हो या अफगानिस्तान जैसे देश का सुरक्षा के नाम पर लगभग 20 साल तक शोषण किया जाता रहा हो। उदाहरण के लिए अभी कुछ महीने पहले शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध को ही देख लीजिए, अमेरिका ने कैसे अपने लाभ के लिए दो देशों को युद्ध की आग में झोंककर पूरी दुनिया को दो धुव्रों में बांट दिया। दरअसल, बाइडन इन दिनों गल्फ देशों के झुकाव को रूस की ओर देखकर चैन की सांस नहीं ले पा रहे हैं, इसलिए वह पुनः सऊदी अरब के साथ अपने सबंधों को बेहतर करना चाहता है। परन्तु यह उतना भी आसान नहीं है जितना अमेरिका सोच रहा है, क्योंकि सऊदी अरब एक बार अमेरिका के असली चेहरे को देख चुका है इसलिए वह अमेरिका के साथ जाना तो कतई पसंद नहीं करेगा।

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अमेरिका और सऊदी के सबंध

ऐसा नहीं है कि अमेरिका और सऊदी के सबंध पहले से ही बहुत अच्छे थे। 2001 में हुए ट्रेड टावर पर हमले और 2018 में पत्रकार जमाल ख़ाशोगी की हत्या के बाद से अमेरिका और सऊदी के संबंधों में थोड़ी खटास आई थी परन्तु इसके बीच में तेल नाम का रोड़ा आ गया था जिसके चलते अमेरिका और सऊदी के संबंध ठीक चल रहे थे, परन्तु रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत होने के बाद दुनिया दो ध्रुवों में बंटने लगी जिसके चलते सऊदी को अपनी एक साइड चुननी पड़ी और वो खुले रूप में रूस का समर्थन करने लगा। इसके अलावा OPEC+ के देशों द्वारा तेल का उत्पादन कम करने की घोषणा करने के बाद बाइडन प्रशासन खुले तौर पर सऊदी का विरोध करने लगा और इस प्रकार धीरे-धीरे सऊदी अमेरिका का साथ छोड़ रूस के साथ जाने लगा। वर्तमान समय की बात की जाए तो सऊदी के रूस के साथ संबंध अच्छे हैं।

और पढ़े: G7, रूस और ईराक, तेल को लेकर भारत के समक्ष प्रार्थना क्यों कर रहे हैं?

सऊदी प्रिंस का भारत आना क्यों है विशेष?

सऊदी के प्रिंस ‘मोहम्मद बिन सलमान’ भारत आने वाले हैं और इसके पीछ का कारण गल्फ देशों के साथ अपसी प्रतिस्पर्धा है। दरअसल, सभी गल्फ देशों के साथ भारत के व्यापारिक संबंध बहुत अच्छे हैं, यूएई के साथ तो भारत ने फ्री ट्रेड पर भी समझौता किया है जिसके तहत दोनों देशों के बीच बहुत कम टैक्स पर अधिक से अधिक व्यापार किया जा सकेगा। ऐसे में आने वाले दौरे में सऊदी भी इसी प्रकार का समझौता करने की इच्छा रख सकता है।

दूसरा कारण यह हो सकता है कि रूस पर जी-7 देश ऑइल कैप लगाने जा रहे हैं जोकि आने वाले 5 दिसंबर से लागू कर दिया जाएगा। इस ऑइल कैप के लागू होने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम फिक्स कर दिए जाएंगे जिसका सीधा प्रभाव रूस पर देखने को मिलेगा। मोहम्मद बिन सलमान की भारत यात्रा के पीछे का दूसरा कारण रूस पर ऑइल कैप लगने के बाद उसकी अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करना भी हो सकता है।

और पढ़े: “आतंकी समर्थक देशों से वसूली होनी चाहिए”, अमेरिका को पीएम मोदी ने स्पष्ट संदेश दे दिया है

अमेरिका को रसातल में ले जा रहे हैं बाइडन

अब यदि अमेरिका की स्थिति की बात की जाए तो एक समय हुआ करता था जब दुनियाभर में यह देश अपने सामने किसी भी दूसरे देश को कुछ समझता ही नहीं था। परन्तु वो कहते हैं न कि हर किसी के दिन बदलते हैं तो अब अमेरिका के दिन पूरी तरह से लद चुके हैं और भारत जैस देशों के चमकने का समय है। अमेरिका के गल्फ देशों के साथ पुराने समय जैसे संबंध नहीं हो सकते हैं क्योंकि सभी गल्फ देशों ने देख लिया है कि अमेरिका सिर्फ अपने लाभ के लिए काम करता है।

निष्कर्ष यह है कि अमेरिका चाहता है कि पहले की तरह लोग उसकी हां में हां मिलाएं, उसके सामने दबे कुचलों की तरह प्रस्तुत हो जाएं लेकिन अब उसका समय जा चुका है यह उसे स्वीकार कर लेना चाहिए।

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