इतिहास वो नहीं जो हमें बताया जाए अपितु इतिहास वो भी है जिसे खोजने के लिए यत्न करना पड़े। जर्मन योद्धा एवं कूटनीतिज्ञ Otto Von Bismarck का मानना है कि हमारा उद्देश्य होना चाहिए इतिहास रचना, उसे लिखना नहीं। परंतु इसी प्रयास में कभी-कभी इतिहास का मूल विवरण भी हम भूल जाते हैं और इस प्रयास में कुछ धूर्त वामपंथी आगे निकल जाते हैं और इतिहास का अपना संस्करण प्रदर्शित कर सत्य को दबा देते हैं। आचार्य चाणक्य ने तो कहा ही था कि जो राष्ट्र अपने शास्त्र भूल जाता है, वो राष्ट्र स्वत: विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है।
नमस्कार, स्वागत है आपका TFI प्रीमियम पर। इस लेख में हम आपको ले चलेंगे एक अद्वितीय रत्न की ओर जो क्रांति और संस्कृति का अद्वितीय समागम है परंतु जिसकी महिमा से अब तक सम्पूर्ण भारत को अपरिचित रखा गया और इस जगह का नाम बिठूर है।
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में एक जिला है कानपुर नगर और इसी जिले में अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समृद्धि को समेटे हुए एक नगर बसा है जिसका नाम है बिठूर। कुछ लोग लव कुश की जन्मस्थली मऊ (तमसा के किनारे) जिले के वनदेवी धाम को नहीं बल्कि बिठूर को मानते हैं। जिले के कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन से ‘बिठूर’ 30 किलोमीटर दूर बसा है जहां वाल्मीकि का आश्रम भी है, जहां वाल्मीकि जी ने हमारे प्रभु श्रीराम के उत्तम चरित्र को प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय महाकाव्य रामायण की रचना की थी।
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धार्मिक और संस्कृति महत्व
बिठूर का धार्मिक महत्व क्या है? इसका हमारी संस्कृति से क्या नाता है? शास्त्रों के अनुसार, सृष्टि की रचना करने से पूर्व ब्रह्मा जी ने एक तपस्या की थी और अपनी तपस्या के लिए उन्होंने तब जिस स्थान को चुना था वो स्थान कोई और नहीं, बिठूर ही था। उन्होंने प्रतीक स्वरूप इस स्थान पर एक खूंटी भी गाड़ दी थी, आज इस खूंटी को “ब्रह्मा जी की खूँटी” कहते हैं। उसी को स्मरण दिलाता है यहां का ब्रह्मावर्त घाट। भगवान ब्रह्मा के अनुयायी पहले यहां पर गंगा में डुबकी लगाते हैं और फिर खड़ाऊ पहनकर यहां उनकी पूजा करते हैं।
मान्यताएं हैं कि भगवान ब्रह्मा ने यहां शिवलिंग की भी स्थापना की थी जिसे आज के समय में ब्रह्मेश्वर महादेव के नाम से लोग जानते हैं। बिठूर को प्राचीन काल में ब्रह्मावर्त नाम से ही जाना जाता था।
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ऐसे भी वर्णन हैं कि बिठूर में ही अपने आराध्य भगवान विष्णु की एक पैर पर खड़े होकर भक्त ध्रुव ने तपस्या की थी, तपस्या वाले स्थान को आज ध्रुव टीला के नाम से जाना जाता है। भक्त ध्रुव की कठिन तपस्या से भगवान ने अति प्रसन्न होकर सदैव एक दैवीय तारे के रूप में चमकते रहने का वरदान दिया।
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यदि आपको शांतिपूर्ण वातावरण से प्रेम है तो आपको बिठूर न रास आए ऐसा हो ही नहीं सकता है। आपको यहां ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से समृद्ध अनेक पर्यटन स्थल भी देखने को मिल जाएंगे। यहां के कई और धार्मिक और दर्शनीय स्थल राम जानकी मंदिर, लव-कुश मंदिर, हरीधाम आश्रम, और नाना साहब स्मारक हैं। बिठूर गंगा किनारे बसा हुआ है जहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन घाट पर लगने वाला कार्तिक अथवा कतिकी मेला देश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
बिठूर का एक क्रांतिकारी और ऐतिहासिक महत्व को भी जान लेते हैं। समय-समय पर ऐसा कहा जाता रहा है कि भारत में कभी भी भाषाई एकता नहीं हो सकती, उनके मुख पर बिठूर एक करारे तमाचे के समान है, क्योंकि यह स्थान हिंदवी स्वराज्य के अंतिम पग के समान है।
देश के स्वतंत्रता संग्राम में बिठूर ने अकल्पनीय और अतुलनीय भूमिका निभाई थी। वर्ष 1857 था स्वतंत्रता संग्राम का श्रीगणेश कर दिया गया था। यह नानाराव पेशवा एवं तात्या टोपे जैसे महान क्रांतिकारियों की बिठूर धरती रही है। टोपे परिवार की एक पीढ़ी तो आज भी बैरकपुर में वास कर रही है जहां वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन गुजरा था।
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क्रांति की लहर
इसी बिठूर में महान क्रांतिकारी तात्या टोपे ने क्रांति की लहर फूंक दी थी और अंग्रेजों की नींव हिला कर रख दी थी। यहां नाना साहब पेशवा की यादें बसी हैं, सन् 1818 में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय अंग्रेजों से प्रतिशोध की भावना लिए बिठूर आ गए। उनके इसी भावना को धार देते हुए नाना साहब पेशवा ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल इसी जमीन पर बजाया।
इस ऐतिहासिक भूमि को तात्या टोपे जैसे क्रांतिकारियों ने अपने रक्त से सींचकर उर्वर बनाया है। यहां कांतिकारियों की गौरव गाथाएं आज भी पर्यटक सुनने आते हैं। बिठूर केवल एक नगर नहीं, अपने आप में एक ऐतिहासिक टाइम कैप्सूल है, जिसे बस डिस्कवर करने की देर है।
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