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जाति आधारित आरक्षण को ख़त्म करने का वक्त आ गया है, सुप्रीम कोर्ट का भी यही मानना है

EWS आरक्षण का सुदामा-कोटा, दरिद्र-कोटा, गरीब-कोटा, भिखारी-कोटा कहकर मजाक उड़ाया जा रहा है और मजाक उड़ाने वाले वही लोग हैं जो वर्षों से ‘कोटा’ का ही खा-पी रहे हैं।

Chaman Kumar Mishra द्वारा Chaman Kumar Mishra
8 November 2022
in चर्चित, मत
ews reservation, जाति आधारित आरक्षण

Source- TFI

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सुदामा कोटा, दरिद्र कोटा, गरीब कोटा, भिखारी कोटा EWS आरक्षण को कुछ इसी नाम से दलित चिंतक संबोधित करते हैं। आगे बढ़ें, उससे पहले मैं आज आपको एक छोटी-सी कहानी सुनाना चाहता हूं। उत्तर-प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर में दो छात्र रहते थे, दिलीप और अनिमेष। दिलीप नोएडा की सबसे पॉश कॉलोनी में रहता था और अनिमेष दादरी में। दिलीप के पिता उत्तर-प्रदेश सरकार में बड़े पद पर कार्यरत थे। अनिमेष के पिता मंगल बाजार में सब्जी की दुकान लगाते थे। दिलीप नोएडा के सबसे महंगे स्कूल में पढ़ता था। अनिमेष सरकारी स्कूल में। दिलीप ने सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भरा, रजिस्ट्रेशन फीस उस पर 50 रुपये लगी। अनिमेष ने भी उसी सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भरा, अनिमेष पर रजिस्ट्रेशन फीस 500 रुपये लगी। अनिमेष फॉर्म भरने के लिए अपने पिता के समक्ष कई दिनों तक रोया था, गिड़गिड़ाया था, उसके पिता ने बड़ी मुश्किल से 500 रुपये जुटाए थे। परीक्षा हो गई (जाति आधारित आरक्षण)। दिलीप के नंबर अनिमेष से बहुत कम आए फिर भी दिलीप का सिलेक्शन हो गया। ज्यादा नंबर लाने के बाद भी अनिमेष परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाया।

अनिमेष ने अपने पिता से ख़ूब खरी-खोटी सुनी। उसके पिता ने उसी दिन अनिमेष को सब्जी की दुकान पर बैठा दिया। अनिमेष का भविष्य बर्बाद हो गया। दिलीप नोएडा के सबसे अमीर व्यक्तियों में गिना जाने लगा। वक्त गुजरता गया। दिलीप को एक बेटा हुआ सुदीप और इधर अनिमेष के भी एक बेटा हुआ विमलेश। दोनों ने फिर सरकारी नौकरी का फार्म भरा। विमलेश एक नंबर से चूक गया। सुदीप, विमलेश से बहुत कम नंबर लाकर भी परीक्षा में सिलेक्ट हो गया। 75 वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है। अनिमेष- एक ब्राहमण परिवार का प्रतीक है। दिलीप- SC/ST परिवार का प्रतीक। सवाल बस एक है- अनिमेष की पीढ़ियों ने स्वयं नहीं चुना था कि वो किस जाति में पैदा होंगे फिर भी क्यों उन्हें जन्म लेने के आधार पर सजा दी गई? योग्य होने के बावजूद उनके स्थान पर अयोग्य को क्यों चुना गया? अगर चुना भी गया तो क्यों अनिमेष के बेटे के साथ भी यही हुआ? क्यों उसकी कई पीढ़ियों के साथ यही हुआ?

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EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के मत से निर्णय सुना दिया हैं। कोर्ट ने इस आरक्षण को मान्यता दी है। मोदी सरकार ने संविधान संशोधन करके EWS आरक्षण का रास्ता साफ किया था। कुछ लोगों को यह बात पच नहीं रही थी कि सवर्ण जाति के गरीब को आरक्षण क्यों? इसलिए वो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। कोर्ट में पांच न्यायाधीशों ने इस मामले पर सुनवाई की। यह न्यायाधीश थे- जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, बेला त्रिवेदी, जेबी पारदीवाला, यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट। तीन न्यायधीशों ने कहा कि EWS को आरक्षण मिलना चाहिए, वहीं दो न्यायधीश यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि नहीं मिलना चाहिए। बहुमत आरक्षण लागू रखने के पक्ष में था इसलिए EWS आरक्षण के पक्ष में निर्णय हुआ।

न्यायाधीशों की अहम टिप्पणी

लेकिन इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने जो टिप्पणी की वो बहुत महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने आरक्षण की समीक्षा की वकालत की। इस दौरान जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने कहा, “आरक्षण की नीति को लेकर संविधान के निर्माताओं की दृष्टि स्पष्ट थी, 1985 में संवैधानिक बेंच ने भी ऐसा ही प्रस्ताव दिया था। संविधान निर्माण के 50 वर्ष पूर्ण होने पर भी इसी को प्राप्त करने की बात कही गई थी। वो थी कि आरक्षण एक निश्चित समय तक के लिए होना चाहिए, लेकिन उसको हम आज तक प्राप्त नहीं कर सके, जबकि हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि भारत में सदियों पुरानी जाति व्यवस्था आरक्षण प्रणाली की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार थी। इसकी शुरुआत की गई थी जिससे कि SC, ST और दूसरे पिछड़ा वर्ग की मदद की जा सके और उन्हें सामान्य जाति के व्यक्ति के समान स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया जाए। ऐसे में स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद हमें समाज के व्यापक हित में आरक्षण की प्रणाली पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।”

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इसके साथ ही न्यायाधीश जेबी पारदीवाला ने कहा, “आरक्षण सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाने का एक माध्यम है। लेकिन इसे निहित स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए। निरंतर हुए विकास और शिक्षा का असर यह हुआ है कि अब बड़ी संख्या में पिछड़े भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और रोजगार भी उन्हें मिल रहे हैं। ऐसे में इन लोगों को आरक्षण देने वाली सूची से हटा देना चाहिए और जिन लोगों को वास्तव में आरक्षण की आवश्यकता है, उन्हीं को आरक्षण मिलना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणियां बताती हैं कि अब वो वक्त आ गया है जब ‘जाति आधारित आरक्षण’ की समीक्षा की जानी चाहिए। आज से कुछ वर्ष पहले जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने यही बात कही थी तो बहुत बवाल हुआ था। हर तरफ हंगामा हो गया था कि मोहन भागवत ने यह कैसे कह दिया? पिछले कुछ वर्षों में किसी भी पार्टी ने जाति आधारित आरक्षण खत्म करने की बात तो छोड़िए, समीक्षा की बात भी नहीं कही है। कोई भी नेता मीडिया में सामने यह बयान देने में डरता है जबकि ऑफ़ द रिकॉर्ड वो इस बात को स्वीकारते हैं कि जाति आधारित आरक्षण को अब खत्म होना चाहिए लेकिन उनका वोट बैंक चला जाएगा इसलिए वो सामने से इसका विरोध नहीं करते।

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‘जाति आधारित आरक्षण’ ने छीना अधिकार

एक सरल सवाल पूछता हूं उत्तर-प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को आरक्षण की क्या आवश्यकता है? स्वर्गीय रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान को आरक्षण की क्या आवश्यकता है? अखिलेश यादव के परिवार को आरक्षण क्यों मिलना चाहिए? केशव प्रसाद मौर्या के परिवार को आरक्षण क्यों मिलना चाहिए? ऐसे तमाम उदाहरण मैं दे सकता हूं जो राजा हैं, लेकिन आरक्षण का लाभ ले रहे हैं।

इन 75 वर्षों में लाखों युवाओं को उनका वास्तविक हक़ नहीं मिला, लाखों युवाओं ने एक अच्छी नौकरी की उम्मीद ही छोड़ दी, लाखों युवाओं के सपने यूं ही टूट गए, लाखों परिवार बिखर गए लेकिन कभी किसी ने उनके लिए आवाज़ नहीं उठाई और जब मोदी सरकार ने EWS दिया तो उसका नाम लेकर भी गरीबों का मजाक बनाया जाता है। EWS कोटा को- भिखारी कोटा, सुदामा कोटा, गरीब कोटा, दरिद्र कोटा बताया जाता है।

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Tags: EWS ReservationEWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसलाjustice uu lalitSupreme Court on Reservationसुप्रीम कोर्ट
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