देव आनंद, एक ऐसा नाम जिससे हर कोई परिचित है. एक ऐसा चेहरा, जिसे आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं. बॉलीवुड में कई एक्टर आए और गए लेकिन कोई भी लीजेंड देव आनंद जैसा नहीं बन आया. उनकी एक्टिंग और डायलॉग डिलीवरी का हर कोई दीवाना था. उनके जैसा डायलॉग डिलीवरी देने वाले एक्टर ने अभी तक इंडस्ट्री में एंट्री नहीं ली. हालांकि, यह तो सब जानते हैं लेकिन आज हम आपको देव आनंद की जिंदगी से जुड़ी ऐसी कहानी बताएंगे, जिसे आप नहीं जानते हैं. इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे हिंदू-मुस्लिम के चक्कर में देव आनंद की प्रेम कहानी परवान नहीं चढ़ी और नौशाद ने उनके जीवन पर ग्रहण लगा दिया.
दरअसल, देव आनंद को इंडस्ट्री में पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फिल्म हम एक हैं से मिला. हालांकि, फिल्म फ्लॉप होने से वो दर्शकों में पहचान नहीं बना सके. इस फिल्म के निर्माण के दौरान ही प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात गुरुदत्त से हुई. इन दोनों में दोस्ती हुई और दोनों ने एक दूसरे को वादा किया कि गुरुदत्त फिल्म निर्देशित करेंगे तो देवानंद को हीरो लेंगे और जब देवानंद फिल्म प्रोड्यूस करेंगे तो गुरुदत्त को डायरेक्टर के रूप में लेंगे. उसके बाद वर्ष 1948 में उनकी दो फिल्में रिलीज हुई जिद्दी और विद्या. फिल्म विद्या पर बात करना इसलिए भी महत्वूपूर्ण है क्योंकि इसी फिल्म के जरिए देव आनंद की मुलाकात सुरैया से हुई. सुरैया इस फिल्म में मुख्य नायिका बनी थीं और इसी के सेट से दोनों के बीच में प्यार हुआ था.
वर्ष 1948 से 1951 तक इस जोड़ी ने कुल 7 फिल्मों में काम किया और इस दौरान देव आनंद-सुरैया की प्रेम कहानी नरगिस-राजकपूर और दिलीप कुमार-मधुबाला की तरह पूरे देश में फैल गई. लोग इस जोड़ी को काफी पसंद भी करने लगे थे, जिसकी चर्चा आज भी होती है. जब ये दोनों एक दूसरे के करीब आएं, उस समय तक सुरैया फिल्म उद्योग में अपनी पांव जमा चुकी थी और देव आनंद अभी स्टेबल होने की कोशिश कर रहे थे लेकिन इसके बावजूद दोनों एक दूसरे के पसंद बन गए थे.
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नानी बनीं विलेन
अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में देव आनंद ने अपनी प्रेम कहानी बयां की है. इसमें उन्होंने लिखा है कि ‘काम के दौरान सुरैया से मेरी दोस्ती गहरी होती जा रही थी. धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई. एक दिन भी ऐसा नहीं बीतता था जब हम एक दूसरे से बात ना करें. अगर आमने-सामने बात नहीं हो पा रही हो तब हम फोन पर घंटों बात करते रहते थे. जल्द ही मुझे समझ आ गया कि मुझे सुरैया से प्यार हो गया है लेकिन उनकी नानी इस प्रेम कहानी में सबसे बड़ी अड़चन थीं. सुरैया के घर में नानी की इजाजत के बगैर कुछ भी नहीं होता था. हमारी प्रेम कहानी की वो विलेन थीं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि सुरैया मुस्लिम थीं और मैं हिंदू.’
उन्होंने बताया कि हम शादी भी करना चाहते थे लेकिन सुरैया अपनी दादी की मर्जी के खिलाफ जाने को तैयार नहीं थी. निहित स्वार्थी लोगों ने हिंदू-मुस्लिम की बातें उठाकर हमारे लिए मुश्किलें पैदा कर दी और एक दिन नानी की हुक्म का पालन करते हुए सुरैया ने मुझे नो कह दिया. इस तरह हिंदू मुस्लिम के चक्कर में एक बड़ी प्रेम कहानी का अंत हो गया.
नौशाद ने भी किया था खेल
अब आप सोच रहे होंगे कि देव आनंद ने कौन से निहित स्वार्थी लोगों की बात की है, जो उनके लव लाइफ में विलेन बनें? पहली तो सुरैया की नानी थीं और इसमें दूसरा और सबसे बड़ा नाम है प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद का. जी हां, देव आनंद और सुरैया की प्रेम कहानी के विरूद्ध नानी का साथ देने वालों में फिल्मों के विलेन मामा ज़हूर और डायरेक्टर एम.सादिक, ए.आर कारदार और बड़े संगीतकार नौशाद भी शामिल थे. पहले से शादी-शुदा एम.सादिक तो खुद सुरैया से शादी करना चाहते थे तो वही नौशाद ने पूरी तरह से इस मामले का हिंदू-मुस्लिम कर दिया था.
नौशाद एक तरह से सुरैया के गुरू थे और अपने करियर के कई बेहतरीन गाने सुरैया ने उनके बैनर तले गाया, जिसके कारण सुरैया पर नौशाद का अलग ही प्रभाव था. नौशाद, सुरैया को धमाकाता था कि देव आनंद से न मिले या किसी भी तरह का संपर्क न रखें, दूसरी ओर नानी थीं जिनका मजहबी चश्मा उस समय भी ‘मोटा’ ही थी और यही कारण रहा कि सुरैया और देवानंद को अलग होना पड़ा. इस मामले को देखकर यह कहा जा सकता है कि बॉलीवुड में हिंदू, मुसलमान वाला खेल आज से ही नहीं हो रहा है, यह कई दशकों से चलता आ रहा है और अभी तक कई देव आनंद और सुरैया इसके शिकार बन चुके होंगे. अंतर यही है कि पहले यह दिख नहीं पाता था और अब यह दिख रहा है.
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