“नारायण नारायण!”
किसी और देवता के बारे में आपको शब्दों से स्मरण हो न हो, परंतु कुछ लोग ऐसे हैं जिनके उच्चारण मात्र से आप परिचित हो जाते हैं कि यही हैं वो। ये आश्चर्य भी है और हमारा दुर्भाग्य भी कि जिन्हें हमें विश्व के सर्वप्रथम पत्रकार के रूप में सम्मान देना चाहिए, जिन्हें उनकी विद्वत्ता के लिए सुशोभित करना चाहिए, उन्हें केवल एक नौटंकी, एक हास्य कलाकार तक सीमित कर दिया गया है।
भ्रम एवं भ्रांतियों के इस युग में देवर्षि नारद को सदैव नौटंकी के रूप में प्रदर्शित किया गया है, जो देवताओं का वंदन करते हैं और अपनी विद्वत्ता से हंसाते हैं। कुछ इन्हें विदूषक भी कह सकते हैं, परंतु सत्य इससे तनिक अलग है। नारद मुनि समाचार के देवता कहे जाते हैं और भारतवर्ष में आज भी पत्रकारिता में नारद पुरस्कार से कई लोगों को सम्मानित किया जाता है, परंतु उसका इतना प्रसार नहीं होता जितना अमेरिका के Pulitzer प्राइज़ का किया गया।
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तो ऐसा क्या था देवर्षि नारद मुनि में, जो उन्हें अन्य देवताओं से अलग बनाता था?
सनातन शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मदेव के छह मानस पुत्रों में सबसे कनिष्ठ थे देवर्षि नारद। उन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया । वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे और इसलिए उन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
सभी युगों, सभी लोकों, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदा से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है – देवर्षीणाम् च नारद:। अर्थात,“देवर्षियों में मैं नारद हूं”।
इसके अलावा श्रीमद्भागवत महापुराण का कथन है जहां सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र (जिसे नारद-पांचरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है। नारद जी मुनियों के देवता थे और इस प्रकार उन्हें ऋषिराज के नाम से भी जाना जाता था।
वहीं, वाल्मीकि रामायण को रचने में देवर्षि नारद मुनि की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। कहते हैं कि दस्यु रत्नाकर को देवर्षि नारद ने दर्शन दिए और उन्हें रामायण का दर्शन कराया।
जब उन्होंने पूछा,
“कोऽन्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान्।
धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः॥१-१-२
चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः।
विद्वान् कः कस्समर्थश्च कैश्चैकप्रियदर्शनः॥१-१-३
आत्मवान् को जितक्रोधो द्युतिमान् कोऽनसूयकः।
कस्य बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे॥१-१-४
अर्थात सम्प्रति, इस लोक में ऐसा कौन मनुष्य है जो गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी और दृढ़व्रत होने के साथ साथ सदाचार से युक्त हो, जो सब प्राणियों का हितकारक हो, साथ ही विद्वान, समर्थ और प्रियदर्शन हो?”
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उत्तर में नारद जी कहते हैं-
इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः।
नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान धृतिमान वशी॥
बुद्धिमान नीतिमान वाग्मी श्रीमान शत्रुनिबर्हणः।
धर्मज्ञस्सत्यसन्धश्च प्रजानां च हिते रतः॥
यशस्वी ज्ञानसम्पन्नः शुचिर्वश्यस्समाधिमान।
रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता॥
सर्वदाऽभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्दुभिः।
आर्यस्सर्वसमश्चैव सदैकप्रियदर्शनः॥
स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्द्धनः।
समुद्र इव गाम्भीर्ये स्थैर्ये च हिमवानिव॥
विष्णुना सदृश्यो वीर्ये सोमवत प्रियदर्शनः।
धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः॥
अर्थात वत्स, इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न श्री राम में ये सभी गुण हैं-
- गुणवान्
- वीर्यवान् ( वीर )
- धर्मज्ञ ( धर्म को जानने वाला)
- कृतज्ञ ( दूसरों द्वारा किये हुए अच्छे कार्य को न भूलने वाला)
- सत्यवाक्य ( सत्य बोलने वाला)
- दृढव्रत ( दृढ व्रती )
- चरित्रवान्
- सर्वभूतहितः ( सभी प्राणियों के हित करने वाला)
- विद्वान्
- समर्थ
- सदैक प्रियदर्शन ( सदा प्रियदर्शी )
- आत्मवान् ( धैर्यवान )
- जितक्रोध (जिसने क्रोध को जीत लिया हो)
- द्युतिमान् (कान्तियुक्त )
- अनसूयक (ईर्ष्या को दूर रखने वाला)
- बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे ( जिसके रुष्ट होने पर युद्ध में देवता भी भयभीत हो जाते हैं)
इतना ही नहीं महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबल से समस्त लोकों के समाचार जानने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं।
विभिन्न धर्मग्रंथों में नारद मुनि का उल्लेख इस प्रकार किया गया है –
- अथर्ववेद के अनुसार नारद नाम के एक ऋषि हुए हैं।
- ऐतरेय ब्राह्मण के कथन के अनुसार हरिशचंद्र के पुरोहित सोमक, साहदेव्य के शिक्षक तथा आग्वष्टय एवं युधाश्रौष्ठि को अभिशप्त करने वाले भी नारद थे।
- मैत्रायणी संहिता में नारद नाम के एक आचार्य हुए हैं।
- सामविधान ब्राह्मण में बृहस्पति के शिष्य के रूप में नारद का वर्णन मिलता है।
- छान्दोग्यपनिषद्में नारद का नाम सनत्कुमारों के साथ लिखा गया है।
- महाभारत में मोक्ष धर्म के नारायणी आख्यान में नारद की उत्तरदेशीय यात्रा का विवरण मिलता है। इसके अनुसार उन्होंने नर-नारायण ऋषियों की तपश्चर्या देखकर उनसे प्रश्न किया और बाद में उन्होंने नारद को पांचरात्र धर्म का श्रवण कराया।
- नारद पंचरात्र के नाम से एक प्रसिद्ध वैष्णव ग्रन्थ भी है जिसमें दस महाविद्याओं की कथा विस्तार से कही गई है। इस कथा के अनुसार हरी का भजन ही मुक्ति का परम कारण माना गया है।
- नारद पुराण के नाम से एक ग्रन्थ मिलता है। इस ग्रन्थ के पूर्वखंड में 125 अध्याय और उत्तरखण्ड में 182 अध्याय हैं।
- कुछ स्मृतिकारों ने नारद का नाम सर्वप्रथम स्मृतिकार के रूप में माना है।
अब बताइए ऐसे गुणी और बुद्धिमान मनुष्य को एक नटखट, नौटंकी के रूप में चित्रित करने का अधिकार किसने और कैसे दिया? हास्य परिहास जीवन का एक भाग होता है, परंतु किसी एक व्यक्ति को ऐसा रूप देना, जो वो है ही नहीं, घोर अन्याय है, और देवर्षि नारद के साथ ये अन्याय स्वीकार्य नहीं।
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