Zoho- बचपन में कछुआ और खरगोश की कहानी आपने अवश्य सुनी होगी। खरगोश अपनी जरा सी उपलब्धि में ढोल पीट देता है, जबकि कछुआ अपनी रफ्तार से मंद-मंद चलता है। वहीं, इसका परिणाम यह होता है कि ज्यादा बकैती करना वाला खरगोश अपने घमंड और ताकत के कारण मुंह की खाता है क्योंकि इस रेस में कछुआ अपनी शांत रफ्तार में चलते हुए विजयी हो जाता है। ऐसा ही कुछ भारतीय कंपनियों के साथ भी हैं, जिनका गुणगान तो हर वक्त किया जाता है परंतु इनकी हकीकत इसके विपरीत ही नजर आती है।
उदाहरण के लिए आप एड-टेक की दिग्गज कंपनी BYJUs को ही देख लीजिए। आज BYJUs बर्बादी की कगार पर पहुंच रही है। कोरोना के बाद से ही कंपनी लगातार घाटे में चल रही है। हाल ही में आये कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो कंपनी का घाटा लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है। परंतु BYJUs की तरफ से लगातार सत्य पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है। वहीं, दूसरी ओर कुछ ऐसी कंपनियां हैं, जो कि शांति से काम करते हुए अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं। इनमें एक ऐसा ही नाम जोहो (Zoho) का है, जो आईटी सेक्टर में धमाकेदार ग्रोथ कर रही है। इसके चलते यह कहा जा रहा है कि यदि BYJUs चाहे तो वह जोहो से सीख सकता है।
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Zoho का रेवेन्यू 1 अरब डॉलर के पार
हाल ही में कंपनी के द्वारा घोषणा की गयी है कि कंपनी का राजस्व $1 बिलियन का आंकड़ा पार कर गया है। साथ ही वार्षिक उपयोगकर्ता सम्मेलन के दौरान Zoholics India ने यह भी ऐलान किया है कि वह रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट (R&D) में नया निवेश करेगी। जानकारी के अनुसार, जोहो कॉरपोरेशन तेज नेटवर्क देने के लिए अगले पांच वर्षों में दुनियाभर में 100 नेटवर्क पीओपी (Point of Presence) खोलने की योजना पर काम कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कंपनी ब्लॉकचेन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी में निवेश को दोगुना करेगी।
जोहो एक ऐसी सॉफ्टवेयर कंपनी है जो सिंगल क्लाउड सिस्टम के माध्यम से हर ऐसी एप्लिकेशन उपलब्ध कराता है, जिसकी आवश्यकता क्लाउड सिस्टम पर बिजनेस चलाने के लिए पड़ती है और यह सबसे सफल व्यावसायिक कंपनियों में से एक है। ज़ोहो और एडटेक दिग्गज – बायजू के बीच मुख्य अंतर यही है, ज़ोहो अपने कर्मचारियों और ग्राहकों की परवाह करता है। जोहो के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के अर्ध-कुशल युवाओं को अवसर दिया जाता है और उन्हें अत्याधुनिक कौशल का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
यह सकारात्मक रूप से इसके विस्तार में भी दिखता है। देखा जाये तो वित्त वर्ष 2021 के दौरान जोहो का वार्षिक लाभ 2.4 गुना बढ़ाकर 1,918 करोड़ रुपये (255.7 मिलियन डॉलर) पहुंच गया है, जो कि एक बड़ी उपलब्धि है। कंपनी का मुकाबला सेल्सफोर्स, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और ओरेकल जैसे टेक जायंट से है। इसके बावजूद जोहो ने ऐसे प्रतिद्वंद्वियों के बीच भी किसी तरह आगे बढ़ने का तरीका ढूंढ निकाला है। कंपनी प्रीमियम आधार पर अपने प्रोडक्ट्स की सेवा मुहैया कराती है।
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Zoho और BYJUs में अंतर
ज़ोहो के ख़र्चे भी बढ़े हैं लेकिन कर्मचारियों के फ़ायदे पर बड़ा ख़र्च हुआ है। उन्होंने अपनी विज्ञापन लागत भी कम कर दी, जो उनमें और BYJUs में एक बड़ा अंतर दर्शाता है। BYJUs अपने व्यवसाय को बनाए रखने और विस्तार करने के लिए मार्केटिंग ट्रिक्स पर पूरी तरह निर्भर है और उसकी सबसे बड़ी धनराशि केवल विज्ञापन में ही चली जाती है।
सीधे शब्दों में कहा जाये तो दोनों ही कंपनियों को उनके कार्यों का पुरस्कार मिल रहा है। जोहो को उसके अच्छे कर्मों का और BYJUs को उसकी गलतियों का नुक़सान उठाना पड़ रहा है। एक तरफ जोहो अपने ग्राहकों, कर्मचारियों की बहुत परवाह करता है। दूसरी ओर, BYJUs अपने कर्मचारियों को ऐसे ही निकाल रहा है।
BYJUs की प्राथमिकता उसके हाल के निर्णयों से स्पष्ट हो जाती है। एक तरफ BYJUs को अपनी मौजूदा परिस्थिति के कारण लागत में कटौती का उपाय करने पर मजबूर होना पड़ा रहा है। फिर भी वित्तीय संकट के ऐसे समय में इसने दुनिया के सबसे अधिक भुगतान वाले एथलीट लियोनेल मेसी के माध्यम से मार्केटिंग नौटंकी के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर दिये। हाल ही में BYJUs ने मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मेसी (Lionel Messi) को ब्रांड एंबेसडर बनाने का ऐलान किया है। बड़े नामों को कंपनी से जोड़ने और क्रिकेट टीमों पर इतना अधिक पैसा खर्चा करने की जगह अगर BYJUs ने कंपनी की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया होता तो शायद आज कंपनी डूबने की कगार पर आकर खड़ी नहीं होती।
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BYJUs को सीखने की जरूरत
ज़ोहो (Zoho) अपने उत्पाद में निवेश करता है और BYJUs इसके ठीक विपरीत कर रहा है। जाहिर तौर पर पिछले कुछ समय में देखा जाये तो BYJUs की छवि पर काफी असर पड़ा है। तथ्य यह है कि समस्या की पहचान समाधान प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम होता है परंतु शीर्ष प्रबंधन समस्याओं को स्वीकारने तक के लिए तैयार नहीं है।
अनावश्यक अधिग्रहण के कारण ही BYJUs मौजूदा परिस्थिति में पहुंचा है। पिछला दो वर्ष एडटेक दिग्गज BYJU’S के लिए कुछ खास नहीं रहा है। यह समय ऐसा था जब BYJU के दरवाज़े पर निवेशकों का ढेर लगा रहता था। BYJU’S के पास इतना पैसा था कि वह दूसरे ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म की खरीदारी की होड़ में लग गया। BYJU’S ने वर्ष 2021 में अधिग्रहण पर $2.4 बिलियन से अधिक खर्च किए। वहीं, BYJU’S ने वर्ष 2020 में वाइट हैट जूनियर और अमेरिकी कंपनी-ऑस्मो को खरीदा था, जो कि भारतीय एडटेक स्पेस में अब तक का सबसे बड़ा और महंगा अधिग्रहण था।
अपनी गलतियों से सबक लेकर और अपने हालात सुधारने के लिए सबसे पहले BYJUs को खर्चों में कटौती करनी होगी। इसके साथ प्रोडक्ट की गुणवत्ता में सुधार करने होंगे। साथ ही ग्राहकों के बीच अपनी छवि सुधारने की भी BYJUs को आवश्यकता है। तभी कंपनी बेहतर स्थिति में पहुंच सकती हैं।
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