परिवर्तन को छोड़कर कुछ भी शाश्वत नहीं होता. यही प्रकृति का नियम है और जो इसे जितना शीघ्र समझ ले, उतना ही अच्छा. परन्तु कुछ ऐसे भी हलकट होते हैं, जिन्हें लगता है कि हमारे परिवर्तित होने से क्या होता है, हम तो ऐसे ही हैं. ऐसे ही एक ढीठ प्राणी हैं शाहरुख़ खान, जो पूर्णतया विनाश की ओर अग्रसर है. इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे शाहरुख़ खान अब सफलता से परे हो चुके हैं और वो अब अपनी पतन की ओर अग्रसर है, परन्तु न इसे वो स्वयं स्वीकार पा रहे हैं और न ही उनके दर्शक.
देखो जी, अब बड्डे पर कौन प्रशंसक अपने आराध्य के बारे में उल्टा सीधा सुनेगा, परन्तु ऐसा है, कड़वी घुट्टी और शाश्वत सत्य, किसी को भी आसानी से नहीं पचता. कभी सोचा था कि कोडैक के कैमरा और नोकिया के फोन भूतकाल के वस्तु बन जायेंगे? परन्तु आज उन्हें कोई पानी भी नहीं पूछता और नोकिया को पुनः प्रभुत्व स्थापित करने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं, इसके बारे में बोलने की आवश्यकता नहीं है.
तो इसका शाहरुख़ खान की लोकप्रियता से क्या लेना देना? एक समय हुआ करता था, जब शाहरुख़ खान है तो ‘इंडियन सिनेमा’ है, ऐसी भावना थी. लोग भर भर के चाहे ऑटो में, बस में, उनकी फिल्में देखने जाया करते थे. ‘बाज़ीगर ओ बाज़ीगर’, ‘तू मेरे सामने’ जैसे गीत हर युवा के जिह्वा पर विद्यमान थे. ‘बादशाह’, ‘DDLJ’ जैसी फिल्में तो हर दर्शक के लिए लगभग प्रथम चॉइस हो चुकी थी और कई बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड भी इस फिल्म ने तोड़े. ‘स्वदेश’ और ‘चक दे इंडिया’ से इन्होंने अपनी प्रतिभा का भी लोहा मनवाया.
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चेन्नई एक्सप्रेस से ही शुरु हो गई थी उल्टी गिनती
तो फिर क्या हुआ? आचार्य चाणक्य ने प्रकृति का उदहारण देते हुए स्पष्ट बताया था कि व्यक्ति वही श्रेष्ठ है जो लचीले पेड़ की भांति झुक जाए, विनयी हो, हर परिस्थिति में ढले, ठूंठ की भांति न हो तो किसी भी संकट में निपट जाएगा. लेकिन शाहरुख़ खान तो वही ठूंठ निकले. वो कैसे? वर्ष 2010 वो समय था जब भारतीय सिनेमा और बॉलीवुड दोनों ही एक महत्वपूर्ण बदलाव के साक्षी बन रहे थे. अब इस समय दो प्रकार की फिल्मों का प्रादुर्भाव हो रहा था – पुनः मारधाड़ और एक्शन से परिपूर्ण विशुद्ध मसाला फिल्में, जिसे KGF, विक्रम, पुष्पा से बेहतर कोई नहीं समझा सकता. दूसरी ओर उदय हुआ कंटेंट ओरिएंटेड सिनेमा का, जिसमें कथा ही सर्वोपरि थी – फिर चाहे वो पान सिंह तोमर हो, कहानी हो, तुम्बाड़ हो, कांतारा हो, आप बोलते जाइये और सूची अनंत है.
तो शाहरुख़ खान ने क्या किया? कुछ नहीं. प्रयोग के नाम पर अन्य खान लोग कम से कम फूंक तो मारते रहे लेकिन उन्होंने उतना भी प्रयास नहीं किया. ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में उनका न एक्शन किसी को रास आया, न कॉमेडी, बस किसी भांति कलेक्शन के नाम पर अपनी इज्जत बचा लिए. पतन की नींव तो यहीं से पड़ चुकी थी परंतु ‘हैपी न्यू ईयर’ की सफलता से उसे ढ़क दिया गया और अभी तो हमने असोका और जोश जैसे नवरत्नों पर प्रकाश भी नहीं डाला है.
लेकिन आखिर कितने दिन अपने ‘किंग खान’ वाले इमेज पर बंधु राज करते? सारी हवा निकल गई, जब 2015 में आई थी दिलवाले. यह कहने को शाहरुख़ और काजोल की कमबैक फिल्म थी और साथ में इसमें वरुण धवन और कृति सैनन भी थे. परन्तु सारे साजो सामान होने के बाद भी जब आपका कलेक्शन एक ऐसी फिल्म खा जाये, जहां अभिनेता आपसे आयु में लगभग आधा हो और जिसकी फिल्म का प्रभाव कागज़ पर उतना न हो, जितना आपके स्टारडम, तो काहे के सुपरस्टार हुए आप? बाजीराव मस्तानी के समक्ष इस फिल्म ने कैसे घुटने टेके, इसे बताने के लिए कोई विशेष शोध करने की आवश्यकता नहीं है.
पिछली 5 फिल्में फ्लॉप रही हैं
तत्पश्चात शाहरुख़ खान का वास्तविक पतन प्रारम्भ हो गया. ‘डियर ज़िन्दगी’ के अतिरिक्त उन्होंने कहीं भी न प्रयोग किया और न ही यह सिद्ध किया कि वो अपने कद के अनुरूप एक प्रभावी अभिनेता हैं. ‘रईस’ में बंधु ने वो राह पकड़ी जिस पर कई लोगों का आज रक्त उबलने लगता है- तुष्टीकरण की. परन्तु यहां भी इन्हें अपने बजट बचाने के लाले पड़ गए और ‘जब हैरी मेट सेजल’ के बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा. फैन का हश्र भी वही हुआ.
परन्तु जो अपनी गलतियों से सीख ले, वह शाहरुख़ खान थोड़े ही होंगे. फिर किंग खान मोड में आकर बना दिए ‘ज़ीरो’, जो बिलकुल अपने टाइटल के अनुरूप सिद्ध हुई. न कथा का कोई छोर, न तर्क का, बस रोमांस करना है जी, उसपर भी भिड़ गए नवीन राज गौड़ा यानी Yash से, जो लेकर आये थे “KGF”, और वही हुआ, जो आप समझ रहे हैं. शाहरुख खान की ‘जीरो’ बुरी तरह से फ्लॉप हो गई. अब शाहरुख़ खान वर्षों बाद दर्शकों के समक्ष एक नहीं 3 फिल्मों के साथ आ रहे हैं, जिसमें ‘पठान’ अगले ही वर्ष 25 जनवरी को प्रदर्शित होने को तैयार होने को है. परन्तु इसके प्रथम झलकियों से ऐसा कम ही प्रतीत होता है कि शाहरुख़ खान अपनी गलतियों से कुछ भी सीखे हैं. लगे रहिये शाहरुख़ मियां, विनाश बस द्वार खुलते ही मिलेगा!
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