“अगर सरदार पटेल ने भारत को एकजुट किया तो इसका श्रेय आदि शंकराचार्य को दिया जाना चाहिए”

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के इस बयान के मायने समझिए...

आरिफ मोहम्मद खान बयान

Source- TFI

आरिफ मोहम्मद खान बयान: सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) देश की एकता के प्रतीक माने जाते हैं। आजादी के बाद भारत के एकीकरण में सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान अतुलनीय रहा। देश की 562 रियासतों को भारत संघ में मिलाने का काम सरदार पटेल ने ही किया था और इसलिए उनको भारत की एकता का सूत्रधार भी कहा जाता हैं। लेकिन अगर सरदार पटेल के द्वारा भारत को एकजुट किये जाने का श्रेय यदि आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) को दिया जाये तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा और यही मानना है केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का भी।

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केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का बयान

दरअसल, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammad Khan) ने हाल ही में बड़ा बयान देते हुए कहा है कि यदि सरदार पटेल 1947 के बाद भारत को एकजुट कर सके और हम सबसे बड़ा लोकतंत्र और एक राष्ट्र बन पाए तो वास्तव में इसका श्रेय वास्तव में ‘केरल के सपूत’ शंकराचार्य को जाता हैं। मैं ऐसा पहली बार नहीं कह रहा हूं। राज्यपाल ने आगे कहा कि वो शंकराचार्य ही थे, जिन्होंने एक हजार वर्ष से भी पूर्व में लोगों को अपनी सांस्कृतिक और अध्यात्मिक एकता से अवगत कराया था। भारत में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता है, लेकिन हम लाखों वर्षों तक राजनीतिक रूप से बंटे रहे हैं।

साथ ही उन्होंने केरल को “ज्ञान की खोज करने वालों” के लिए बहुत अनुकूल जगह भी बताया। उन्होंने कहा कि केरल की परंपरा महान है और ये भारत के सबसे अच्छे राज्यों में से एक हैं। केरल का समाज ऐसा है, जहां के लोगों को श्रेय दिया जाना चाहिए। राज्यपाल ने आगे कहा कि केरल में ऐसी दमनकारी प्रथा थी कि यहां बड़ी संख्या में महिलाओं को अपने ऊपरी वस्त्र पहनने की भी अनुमति नहीं थी। जब भी इस प्रकार संकट की घड़ी आती है, तो किसी महान आत्मा का आगमन होता हैं।

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आरिफ खान ने ऐसा क्यों कहा?

अब ऐसे में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के बयान के पीछे के तर्क को समझना बेहद ही आवश्यक हो जाता है। आदि शंकराचार्य को लेकर राज्यपाल आरिफ खान ने ऐसा क्यों कहा? आइये जानते हैं…

असंभव कार्य को संभव करने की प्रेरणा के लिए जगतगुरु आदि शंकराचार्य को एक आदर्श माना जाता हैं। आदि शंकराचार्य का जन्म सन् 788 में दक्षिण भारत के केरल में स्थित कालड़ी ग्राम में हुआ था। जगतगुरु शंकराचार्य ने मात्र सात वर्ष की अल्प आयु में ही संन्यास ले लिया था। उन्होंने दो वर्ष की आयु में वेद, महाभारत और रामायण को कंठस्थ कर लिया था। 32 वर्ष की आयु में शंकराचार्य की मृत्यु हो गई थी। लेकिन शंकराचार्य ने बहुत कम समय में पैदल चलकर कई बार पूरे भारत का भ्रमण किया था। आदि शंकराचार्य ने यह यात्रा भारतीय धर्म-दर्शन व अध्यात्म को नयी ऊर्जा प्रदान करने के उद्देश्य से की थी।

आदि शंकराचार्य ने पश्चिम में द्वारका, उत्तर में बद्रीनाथ, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और दक्षिण में श्रृंगेरी चार पुरियों में मठों की स्थापना कर, धर्म की दिग्विजय का उद्घोष किया। मान्यता है कि चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना का उद्देश्य इस सत्य को स्थापित करना था कि धर्म का शासन राजनीतिक संस्थाओं से श्रेष्ठ है। आदि शंकराचार्य ने भारत की भाषा संस्कृत और सनातन धर्म को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया। प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा के विकास और धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का अतुलनीय योगदान रहा हैं।

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आदि शंकराचार्य को हिंदू धर्म में भगवान शिव के साक्षात् अवतार माना जाता हैं। कहा जाता हैं कि जिस समय देश में सनातन परंपरा संकट में थी, उस समय आदि शंकराचार्य ने सनातन परंपरा के प्रचार-प्रसार और उसे सुगठित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आदि शंकराचार्य ने सनातन परंपरा के प्रचार-प्रसार में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। देश के तमाम तीर्थस्थानों की यात्रा के बाद केदारनाथ में 32 साल की उम्र में उनका देहवसान हो गया।

आठवीं शताब्दी में बौद्ध और जैन धर्म के विस्तार ने हिंदू धर्म के लिए अस्तित्व को संकट में डाल दिया था, जिसके बाद ऐसे मुश्किल समय में शंकराचार्य ने सनातन धर्म के अस्तित्व बचाने और एक सूत्र में बांधने का कार्य किया। ठीक ऐसे ही सरदार पटेल ने वही कार्य किया जो एक हजार वर्षों पहले आदि शंकराचार्य ने किया था। सरदार पटेल ने आजादी के बाद बिखरी हुई 562 रियासतों को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य किया।

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