आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी “लाफ्टर इज़ द बेस्ट मेडिसिन”। कहा जाता है कि दुनिया के सबसे कठिन कार्यों में से हैं किसी को हंसाना और यही तमाम कॉमेडियन की भूमिका काफी अहम हो जाती हैं। लेकिन क्या कॉमेडी का अर्थ ये होता है कि इसकी आड़ में आप कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हो जाते हो? सार्वजनिक मंचों पर किसी के धर्म, आस्था का मजाक उड़ाने से लेकर अपने ही माता-पिता को अपमानित करने की आजादी आपको मिल जाती है? इस लेख में हम बात करेंगे स्टैंड अप कॉमेडी के नये चरण की जो लोगों की आस्थाओं के मजाक उड़ाने से लेकर देश को बदनाम करने और अब माता-पिता को घटिया बोलने तक पर आ गया है।
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कॉमेडी के नाम पर माता-पिता का अपमान
दरअसल, इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी तेज़ी से वायरल हो रहा है, जहां एक स्टैंड-अप कॉमेडियन अपने ही माता-पिता के लिए घटिया और गंदगी जैसे शब्दों का प्रयोग करती नजर आती हैं। वीडियो में वह कहती हैं– “मैं अपनी मम्मी की मर्ज़ी से शादी कभी नहीं करूंगी। क्योंकि मैं अपने पापा को रोज़ देखती हूं। क्या घटिया च्वाइस है मेरी मम्मी की, बहुत वाहियाद। उनके कानों पर बाल-वाल ओहो, बहुत ज्यादा गंदगी…।”
Disparaging parents in the name of comedy who gave their time, life savings and effort to raise you up
— Rishi Bagree (@rishibagree) November 17, 2022
यूं सार्वजनिक मंचों पर अपने माता पिता को अपमानित करना, उनका मजाक उड़ाना भला कौन-सी कॉमेडी है? यह हमारी संस्कृति का हिस्सा तो कतई नहीं है। क्योंकि हमारे यहां माता-पिता को भगवान का दर्जा दिया जाता है लेकिन इन कल के आये स्टैंड-अप कॉमेडियंस ने माता पिता को मजाक का जरिया बनाकर रख दिया है।
इन कल के आये स्टैंड-अप कॉमेडियंस के द्वारा एक सार्वजनिक मंच पर अपने माता-पिता के लिए इस तरह के निम्न कोटी शब्दों का प्रयोग करना सही है? जरा सोचिए जो माता-पिता हमें पाल-पोस कर इतना बड़ा करते हैं। हमारे अच्छे भविष्य के लिए वह अनगिनत त्याग और प्रयास करते हैं और वहीं बच्चे अपनी कॉमेडी के लिए उनका यूं सार्वजनिक मंच पर अनादर करने लगते हैं। बड़ी बात तो यह भी है कि यहां उनके इस घटिया जोक पर लोग जोर-जोर से तालियां बजाकर हंस भी रहे थे।
स्टैंड अप कॉमेडी का गिरता स्तर
वैसे तो हास्य बोध हमेशा से ही हमारे देश का एक हिस्सा रहा है, लेकिन आज अगर देखें तो हमारे देश के कुछ हास्य कलाकार विदेशी हास्य की नकल करने और कभी अपनी ही संस्कृति का अपमान करने, कभी देश के सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करने को ही स्टैंडअप कॉमेडी समझ रहे हैं। लेकिन अब तो हद ही हो रही है क्योंकि अब ये स्टैंडअप कॉमेडियन, कॉमेडी के नाम अपने ही माता-पिता का अपमान करने में भी हिचकिचाहट महसूस नहीं कर रहे। ऐसा प्रतीत होता है कि स्टैंडअप कोमेडी का यह कोई नया चरण है। परंतु यहां गलती केवल कॉमेडियन्स की नहीं है। ये गलती कुछ हद तक इसे देखने और इस फूहड़ता पर ठहाके लगाने वाले दर्शकों की भी हैं।
यदि आप अधिकतर इन तथाकथित स्टैंड अप कॉमेडियन के शो को करीब से देखेंगे तो इनमें कॉमेडी और अच्छे जोक्स कम और अश्लील बातें और गालियां अधिक पायेंगे। अब इसी में परविर्तित हो चुकी है आजकल की कॉमेडी। एक समय ऐसा था जब वास्तव में कई कॉमेडियन हमें बिना गालियों और बिना अश्लील बातों के हंसाया करते थे। परंतु आज कॉमेडी के नाम पर ऐसे चुटकुले सुनाये जाएंगे, जिनका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं होता और यह एजेंडे से भी भरे होते हैं।
यह लोग कॉमेडी की आड़ में किसी की धर्म-आस्था को ठेंस पहुंचाने से लेकर दूसरे देशों के सामने अपने देश की छवि खराब करने तक से पीछे नहीं हटते। इसके कई-कई उदाहरण आपको देखने को मिलते रहते होंगे। आपको शायद स्टैंडअप कॉमेडियन वीर दास की “टू इंडियाज” नाम की एक कविता याद होगी, जो उन्होंने अमेरिका में एक कार्यक्रम में सुनाई थी। वीर दास की कविता कुछ प्रकार थी- “मैं एक ऐसे भारत से आता हूं, जहां हम दिन में महिलाओं की पूजा करते हैं और रात में उनका सामूहिक बलात्कार करते हैं।” उनकी इस कविता पर काफी विवाद भी हुआ था और उन पर आरोप लगे कि वीर दास ने अपनी कविता के जरिए भारत की छवि धूमिल करने के प्रयास किए। अब यह सुनने वाला व्यक्ति यही मानने लगेगा कि भारत में बलात्कार रोजमर्रा की घटना है। आखिर वह इस पर विश्वास क्यों न करें, इसे कहने वाला खुद एक भारतीय ही है।
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कॉमेडी कम, अश्लीलता और फूहड़ता ज्यादा
देखा जाए तो आजकल के स्टैंड अप कॉमेडियंस ने कॉमेडी में अश्लीलता-फूहड़ता को ठूंस-ठूंसकर भर दिया है। मूवर्स एंड शेकर्स से शुरू हुई यह कॉमेडी आज निचले स्तर की ओर जा रही है, क्योंकि अब बस यह सामाजिक मुद्दे , लैंगिक भेदभाव, माता-पिता आदि पर व्यंग करने तक ही सीमित रह गई है। इसमें से हास्य तो न जाने कहां ही गुम हो गया। अगर सही मायनों में देखा जाए तो हम उस भारत से हैं, जहां राजू श्रीवास्तव जैसे स्टैंड अप कॉमेडियन का जन्म हुआ। दुर्भाग्य की बात यह है आज वो हमारे बीच नहीं हैं। राजू श्रीवास्तव की उस विरासत को आगे बढ़ाने और सहेजने की हमें बहुत आवश्यकता है, जहां उन्हें लोगों को हंसाने वाले कंटेंट के लिए न ही राजनीति के बैसाखी की आवश्यकता पड़ती थी न ही अश्लीलता-फूहड़ता की और न ही किसी के अपमान की।
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