सत्ता बड़ी कष्टकारी है। यहां बने रहना कांटों की शैय्या पर सोने समान है और अगर आप पूर्वोत्तर के हैं तो स्थिति अधिक जटिल हो जाती है। परंतु प्रफुल्ल कुमार महंत के लिए “ना” कोई विकल्प नहीं था। उन्हें किसी भी स्थिति में असम के लिए एक बेहतर कल चाहिए था और इसी प्रयास में वो असम आंदोलन के जनक बने। परंतु ये प्रफुल्ल कुमार महंत हैं कौन? इन्होंने ऐसा क्या किया जिसके कारण असम आज पूर्वोत्तर एवं भारत के सबसे प्रभावशाली राज्यों में से एक बन चुका है? असल में प्रफुल्ल कुमार महंत ने एक सशक्त और समृद्ध असम के लिए असम आंदोलन चलाया, जिसमें उन्होंने अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के विरुद्ध आंदोलन भी किया और इसी से प्रभावित होकर उत्पन्न हुए हिमंता बिस्वा सरमा जैसे युवा नेता, जो आज असम के साथ पूर्वोत्तर के भविष्य की नींव भी रख रहे हैं।
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परंतु इस समस्या की जड़ क्या थी?
1971 के युद्ध के समय बांग्लादेशी शरणार्थियों के प्रवास की समस्या उत्पन्न हुई, जो बंगाल और पूर्वोत्तर में प्रमुख रूप से सर्वाधिक थी। परंतु ये अस्थाई समस्या 1980 के दशक में आते आते कोढ़ में खाज बनने लगी क्योंकि बांग्लादेश बनने के बाद भी कई ‘शरणार्थी’ अब जाने का नाम नहीं ले रहे थे। केंद्र सरकार ने 1983 में असम में विधानसभा चुनाव कराने का फ़ैसला किया लेकिन असम आंदोलन से जुड़े संगठनों ने इसका बहिष्कार किया। इन चुनावों में बहुत कम वोट डाले गये। जिन क्षेत्रों में असमिया भाषी लोगों का बहुमत था, वहां तीन प्रतिशत से भी कम वोट पड़े।
राज्य में आदिवासी, भाषाई और साम्प्रदायिक पहचानों के नाम पर ज़बरदस्त हिंसा हुई, जिसमें तीन हज़ार से भी ज़्यादा लोग मारे गये। चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी की सरकार ज़रूर बनी लेकिन इसे कोई लोकतांत्रिक वैधता हासिल नहीं थी। 1983 की हिंसा के बाद दोनों पक्षों में फिर से समझौता-वार्ता शुरू हुई। 15 अगस्त 1985 को केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच समझौता हुआ, जिसे असम समझौते के नाम से जाना गया। इसके तहत 1951 से 1961 के बीच आये सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार देने का फ़ैसला किया गया और यह तय किया गया कि जो लोग 1971 के बाद असम में आये थे, उन्हें वापस भेज दिया जाएगा।
केवल 32 की उम्र में सीएम बने थे प्रफुल्ल कुमार महंत
ज्ञात हो कि 1961 से 1971 के बीच आने वाले लोगों को वोट का अधिकार नहीं दिया गया लेकिन उन्हें नागरिकता के अन्य सभी अधिकार दिये गये। असम के आर्थिक विकास के लिए पैकेज की भी घोषणा की गयी और यहां ऑयल रिफाइनरी, पेपर मिल और तकनीक संस्थान स्थापित करने का फ़ैसला किया गया। केंद्र सरकार ने यह भी निर्णय किया कि वह असमिया-भाषी लोगों के सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान की सुरक्षा के लिए विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय करेगी। इसके बाद, इस समझौते के आधार पर मतदाता-सूची में संशोधन किया गया। विधानसभा को भंग करके 1985 में ही चुनाव कराए गये, जिसमें नवगठित असम गण परिषद को बहुमत मिला। पार्टी के नेता प्रफुल्ल कुमार महंत, जो कि AASU के अध्यक्ष भी थे, वो मुख्यमंत्री बने।
उस समय उनकी उम्र केवल 32 वर्ष थी और ऐसे में वो राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री भी बने। असम-समझौते से वहां लंबे समय से चल रही राजनीतिक अस्थिरता का अंत हुआ और आन्दोलन के फलस्वरूप 1983 के विवादित असम विधानसभा चुनाव से बनी हितेश्वर सैकिया की कांग्रेस की सरकार गिर गयी। असम गण परिषद ने तत्पश्चात दिसंबर 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में 126 में से 67 सीटे तथा लोकसभा की 14 में से 7 सीटें जीती। ये अपने आप में किसी करिश्मे से कम नहीं था क्योंकि कुछ ही समय पूर्व आंध्र प्रदेश में भी भूचाल के बाद सरकार गिराई गई थी।
इसी से प्रभावित होकर एक युवा छात्र राजनीति में कूद पड़ा। वह भी AASU का ही सदस्य था और उसने धीरे धीरे छात्र राजनीति, पहले राज्य और फिर राष्ट्रीय राजनीति में अपना नाम कमाना प्रारंभ किया। आज देश इन्हीं को हिमंता बिस्वा सरमा के नाम से जानता है, जिन्होंने असम को वही रूप दिया है, जिस रूप में प्रफुल्ल कुमार महंत देखना चाहते थे।
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