देश में एक बार फिर से चुनावी मौसम का आगाज हो चुका है। जैसे कि हमारे देश में हर थोड़े समय में कही न कही चुनाव होते ही रहते हैं, इस बार बारी गुजरात और हिमाचल प्रदेश की हैं। हिमाचल में चुनावी बिगुल बज चुका है और सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से चुनाव प्रचार और जनता को लुभाने की तैयारियों में जुट गये हैं। इस दौरान एक ही सवाल चारों ओर सुनने को मिल रहा है कि हिमाचल में इस बार किसकी सरकार? वैसे तो हिमाचल में हर पांच वर्षों में सरकार बदलने की परंपरा चली आ रही है, परंतु उत्तराखंड के बाद अब इस बार यहां भी यह परंपरा टूटती हुई दिख रही है। इस लेख में जानेंगे कि कैसे जयराम ठाकुर के ‘ठंडे नेतृत्व’ के बावजूद हिमाचल प्रदेश में दोबारा भाजपा सत्ता में वापसी करने जा रही है।
अपर-लोअर में बंटा है हिमाचल
हिमाचल प्रदेश में इस बार सत्ता का ऊंट किस ओर करवट लेगा, यह जानने के लिए राज्य के भूगोल को समझना बेहद जरूरी है, क्योंकि किसी भी राज्य की राजनीति को बिना भूगोल के नहीं समझा जा सकता है। हिमाचल प्रदेश दो भांगो में बंटा हुआ है, अपर और लोअर हिमाचल जिसमें कुल 12 जिले हैं। पहाड़ी क्षेत्रों को अपर हिमाचल और पंजाब से लगे तराई के क्षेत्रों को लोअर हिमाचल के रूप में जाना जाता है। अपर हिमाचल में कांग्रेस और लोअर हिमाचल में भाजपा की मजबूत पकड़ मानी जाती है। परंतु 2017 में सत्ता में आने के बाद भाजपा इस विभाजन को खत्म करने में काफी हद तक सफल हुई है। हिमाचल में दोबारा सरकार बनाने में भाजपा के लिए यह फैक्टर काफी हद तक सहायता कर सकता है।
राजपूतों का दबदबा
भूगोल को समझने के बाद सीटों के बंटवारे और जातीय समीकरण की बात करें तो हिमाचल की राजनीति पर राजपूतों का सबसे अधिक दबदबा देखेंगे। राज्य में सीटों के विभाजन को देखा जाए तो कुल 68 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें से 48 विधानसभा सीटें सामान्य वर्ग की है, जबकि 17 सीटें अनुसूचित जाति, 3 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। हिमाचल के जातीय समीकरण की बात की जाए तो 50.72 प्रतिशत आबादी सवर्णों की है, जिनमें से 32.72 प्रतिशत राजपूत और 18 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। वहीं दलित समुदाय 26.6 फीसदी हैं।
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इतनी राजनीतिक विविधता होने के बाद भी हिमाचल प्रदेश में सत्ता की कमान ज्यादातर राजपूतों के हाथों में ही रही। यहां अभी तक छह मुख्यमंत्रियों बने हैं, परंतु उनमें से पांच राजपूत समुदाय से आते हैं, जबकि एक ब्राह्मण समुदाय से शांता कुमार के रूप में चुने गए। यदि हम पिछले विधानसभा चुनावों पर ही गौर करें तो 2017 के चुनाव में 48 सामान्य सीटों में से 33 विधायक राजपूत जीतकर आये थे। यह बताने के लिए काफी है कि राजपूतों ने किस तरह हिमाचल प्रदेश की राजनीति में राजपूतों ने अपनी पकड़ बनायी हुई है।
भाजपा के बड़े चेहरे
जयराम ठाकुर का नेतृत्व भले ही ठंडा रहे हो और वे अपने पांच सालों के कार्यकाल के दौरान कुछ खास कमाल करने में कामयाब न हो पाये हो, परंतु हिमाचल में भाजपा के पास ऐसे कई बड़े चेहरे है जो राज्य से लेकर केंद्र की सत्ता तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए आप जेपी नड्डा को ले लीजिए, जो भाजपा के अध्यक्ष पद की कमान संभाले हुए है, या फिर अनुराग ठुकार जो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसके अलावा पार्टी के पास प्रेम कुमार धूमल, शांता कुमार जैसे बड़े नेता हैं जो कि जमीनी स्तर पर बहुत लंबे समय से काम कर रहे हैं और यह ही भाजपा के कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो हिमाचल में भाजपा सरकार बनाने में मदद कर सकते हैं।
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यह फैक्टर भी भाजपा के लिए करेंगे काम
इसके अलावा बात आम आदमी पार्टी की हिमाचल चुनाव में उतरने की करें तो इससे भी फायदा भाजपा को ही मिलने वाला है। हिमाचल चुनाव में घुसकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में लगी है। परंतु उसके आने से चुनावों पर कुछ खास असर तो पड़ता नहीं दिखने वाला, बस होगा यह कि आम आम आदमी कांग्रेस के वोटों में अवश्य सेंध लगा सकती है, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा।
हिमाचल की तरह उत्तराखंड में भी हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा चली आ रही थी। परंतु इस बार इसमें बदलाव होता हुआ देखने को मिला। उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार सत्ता में आयी। ठीक उसी तरह हिमाचल में जो मौजूदा समीकरण बन रहे हैं उसको देखते हुए तो ऐसा ही लग रहा है कि उत्तराखंड के बाद भी अब हिमाचल में भी यह प्रथा टूटेगी और जयराम ठाकुर के सुस्त नेतृत्व के बावजूद सत्ता में एक बार फिर भाजपा की ही वापसी होगी।
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