सच्ची रामायण-1: प्रभु श्रीराम ने धोबी के कहने पर माता सीता को राज्य से निकाल दिया था?

तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तर कांड की कथा पूर्णरूप से काल्पनिक है, जिस पर किसी को भी विश्वास नहीं करना चाहिए.

सीता परित्याग की कहानी

Source- TFI

सीता परित्याग की कहानी: सनातन संस्कृति में वैसे तो लोगों के कई आराध्य हैं परन्तु भगवान राम प्रत्येक सनातनी के मन में कुछ ऐसे बसे हुए हैं जैसे शरीर में आत्मा. यही नहीं बचपन से लेकर बुढ़ापे तक लोगों के दैनिक जीवन में राम नाम का बड़ा महत्व होता है. बचपन की बात करें तो कभी हम रामलीला में वानर बनके आनंद लेते हैं, तो कभी किसी अन्य पात्र का किरदार निभाकर संतुष्टि प्राप्त करते हैं. इसी के साथ लोग अपनी दिनचर्या में राम-राम, सीता-राम, जय श्री राम के नाम के साथ अभिवादन भी करते हैं और सबसे अंत में जब कोई भी सनातनी इस दुनिया को छोड़कर जाता है तो उसकी अर्थी के साथ में “राम नाम सत्य है” जैसे बोल भी गूंजते हैं.

तो कुछ इस प्रकार सनातन संस्कृति में राम नाम का महत्व है. परन्तु, हमारे समाज में जान बूझकर एक निश्चित उद्देश्य के तहत भगवान राम को बदनाम करने के लिए कई भ्रामक बातें प्रचारित की गई हैं जोकि तथ्यात्मक आधार पर पूर्ण रूप से गलत हैं. इसी कड़ी में आती है “सीता परित्याग की कहानी”, जिसमें कहा जाता है कि भगवान राम ने एक धोबी के कहने पर सीता माता की अग्नि परीक्षा ली और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया लेकिन यह पूर्ण रूप से असत्य है. इस लेख में हम समाज में फैली हुई भगवान राम से जुड़ी इस भ्रांति के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और आपको सत्य से अवगत काराएंगे.

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सीता परित्याग की कहानी का सत्य

जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं, भगवान राम के जीवन की कथा को रामायण या रामकथा के नाम से जाना जाता है और इसे कई अलग-अलग भाषाओं में लिखा गया है. परन्तु इसकी सबसे पुरानी और मूल कृति के रूप में वाल्मीकि रामायण को स्वीकार किया जाता है, जिसमें रामकथा को 6 कांड (चैप्टर) बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड और युद्ध कांड में विभाजित किया गया है. बाल कांड में भगवान राम के बचपन की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया है, अयोध्या कांड में विवाह से लेकर वनवास और भरत मिलाप तक की कथा को बताया गया है और अरण्य कांड में छल पूर्वक किस प्रकार रावण ने सीता माता का अपहरण किया था इसकी कथा है. वहीं, दूसरी ओर किष्किंधा कांड, सुंदर कांड और युद्ध कांड में बाली वध, अशोक वाटिका में सीता माता से महाबली हनुमान की भेंट और रावण से भगवान राम के युद्ध होने की कथा बताई गई है लेकिन पेंच यहीं पर आकर फंस जाता है.

दरअसल, वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड पर आकर समाप्त हो जाती है जबकि उसके बाद में लिखी गई तुलसीदास कृत रामचरितमानस में एक और अतिरिक्त कांड है, जिसे उत्तर कांड के नाम से जाना जाता है. बस यहीं से प्रारंभ होती है भ्रांतियों की कथा “सीता परित्याग की कहानी.” इस कांड में कहा गया है कि लंका से वापस आने के बाद अयोध्या में भगवान राम का राज्याभिषेक होता है और सभी लोग प्रसन्नता पूर्वक रहने लगते हैं. लेकिन एक दिन एक धोबी अपनी पत्नी को बिन बताए बाहर चले जाने पर पीटता है और कहता है कि “मैं राम थोड़े ही हूं जो तू कहेगी उसे माने लूंगा और ऐसे ही स्वीकार कर लूंगा.” रामचरितमानस के उत्तर कांड के अनुसार, इसके बाद यह बात अयोध्या के राजा और भगवान राम के पास पहुंचती है और उनके मस्तिष्क में सीता को लेकर शंका होने लगती है और अंत में आकर वो लंका के बाद पुन: एक बार माता सीता की अग्नि परीक्षा करवाते हैं, जिसके बाद सीता अपमान के कारण राम को छोड़कर चली जाती हैं और वाल्मीकि की कुटिया में रहने लगती हैं और वही पर उन्हें दोनों पुत्र लव और कुश की प्राप्ति होती है.

काल्पनिक है उत्तर कांड

ज्ञात हो कि उत्तर कांड पूर्ण रूप से काल्पनिक है और उपर्युक्त बातें उत्तर कांड में ही बताई गई है. उत्तर कांड के भ्रामक होने के पीछे का सबसे पहला कारण माता सीता की दूसरी बार अग्नि परीक्षा का होना है. वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में बताया गया है कि सीता की अग्नि परीक्षा तो हुई थी लेकिन वह अयोध्या में नहीं बल्कि लंका में हुई थी और उसके बाद भगवान राम के मन में किसी भी प्रकार की कोई शंका नहीं थी. लेकिन उत्तर कांड में तुलसीदास लिखते हैं कि सीता की अग्नि परीक्षा अयोध्या में हुई थी और उसके बाद वो घर छोड़कर चली गई थीं. इसके अलावा उत्तर कांड के भ्रामक होने का दूसरा सबसे गलत तथ्य है तर्क क्षमता यानी कि जिन भगवान राम ने अपनी माता के वचन और पिता के आदेश का पालन करने के लिए अयोध्या को त्याग दिया और सीता तथा लक्ष्मण के साथ वन में चले गए, वो किसी धोबी की बात पर सीता का परित्याग कैसे कर सकते हैं ये सोचने वाली बात है. निष्कर्ष के रूप में आपको बता दें कि भगवान राम भारतीय संस्कृति का एक अटूट हिस्सा हैं और समाज में लोगों के मन में इनके प्रति अपार श्रद्धा है. इसीलिए भगवान राम की मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को धूमिल करने के लिए कई तथ्य गलत तरीके से प्रचारित किए गए हैं परन्तु सत्य वही है जो वाल्मीकि रामायण में वर्णित है, उसके अलावा जो भी बातें बताई गई हैं वह (सीता परित्याग की कहानी) पूर्णत: असत्य हैं.

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