Rani Karnavati story in Hindi: भारतीय इतिहास अदम्य साहस की गाथाओं से भरा हुआ है। परंतु इनमें से कुछ कहानियां के बारे में तो हम जानते हैं, जबकि कई कहानियां ऐसी भी रही जो यूं ही इतिहास के पन्नों में दबी रह गयी। खासकर महिलाओं की वीरता की बात आती है, तो हमें रानी लक्ष्मी बाई, अहिल्या बाई जैसे कुछ गिने-चुने नाम ही याद आते हैं। यदि हम इतिहास के पन्ने पलटकर देखेंगे तो कई ऐसी बहादुर महिलाएं की कहानी पाएंगे, जिन्होंने न केवल वीरता के साथ अपनी लड़ाई लड़ी बल्कि कुछ अद्भुत कारनामे भी कर दिखाये। इन्हीं में से एक बहादुर वीरंगना थीं, गढ़वाल राज्य की रानी कर्णावती (Rani Karnavati of Garhwal)। असल में इन्हें मुगलों की नाक काटने के लिए जाना जाता है। आइए रानी कर्णावती की वीरता से भरी इस कहानी (Rani Karnavati story in Hindi) के बारे में विस्तार से जानते हैं…
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राजा ने आमंत्रण अस्वीकार कर दिया
Rani Karnavati story in Hindi: यह भारत का वो दुर्भाग्यपूर्ण समय था जब देश पर मुगलों का शासन हुआ करता था और संपूर्ण राष्ट्र में मुगल अपने अत्याचार से लोगों को परेशान कर रहे थे। परंतु गढ़वाल के राजा महीपति शाह जैसे कुछ लोग भी थे जिन्होंने मुगलों की आंखों में आंख डालकर कहा था कि हम आपके शासन को स्वीकार नहीं करते।
असल में इस कहानी की शुरुआत होती है शाहजहां के 1628 ई. में मुगल वंश की गद्दी पर बैठने से। शाहजहां ने राजतिलक के समारोह में उस समय के सभी राज्यों के राजाओं को बुलाया था और इसी दौरान गढ़वाल के तत्कालीन राजा महीपति शाह (King Mahipati Shah) को भी आमंत्रण भेजा गया। परंतु उन्हें शाहजहां (Shah Jahan) का यह बुलावा पसंद नहीं आया क्योंकि यह एक तरह से मुगल वंश के आधिपत्य को स्वीकारना था, इसलिए उन्होंने दूत से कहा- जाओ शाहजहां से कह देना हम आपके निमंत्रण को स्वीकार नहीं करते हैं। जब दूत शाहजहां को राजा की इस बात के बारे में बताता है तो उसके अंदर एक आग जल उठती है और उसके बाद से ही शाहजहां गढ़वाल पर आक्रमण करने पर विचार करने लगता है।
गढ़वाल रियासत के बारे में बात की जाए तो इसकी स्थापना 823 ईस्वी में पंवार वंश के पूर्वज कनक पाल द्वारा की गयी थी । 1358 ई. में राजा अजयपाल ने इसका विस्तार किया गया। शुरुआती दिनों में गढ़वाल की राजधानी देवलगढ़ हुआ करती थी, परंतु बाद में इसे बदलकर श्रीनगर कर दिया गया। बता दें कि यह कश्मीर वाला श्रीनगर नहीं है, यह गढ़वाल वाला श्रीनगर है और यह ऋषिकेश के 100 किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित था। फ्रेंच यात्री विलियम फिंच ने इस साम्राज्य के बारे में लिखा है कि यह अपनी सोने, तांबे और लेड की खदानों के लिए जाना जाता था। इसके अलावा उसने राजाओं के सोने की थालियों में खाना खाने की बात भी कही है।
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राजा महीपति की हो गयी मृत्यु
महीपति शाह एक योद्धा थे और वह अपने राज्य का विस्तार करने के लिए हमेशा यु्द्ध लड़ते रहते थे। परंतु 1631 ई. में पड़ोसी राज्य कुमाऊं से एक यु्द्ध में लड़ाई के दौरान महीपति शाह की मृत्यु हो जाती है और गद्दी पर उनके 7 वर्ष के बेटे को बैठा दिया जाता है। राज्य की बागडोर को पूर्ण रूप से रानी कर्णावती अपने हाथ में ले लेती हैं। रानी के इस प्रकार शासन करना पड़ोसी राज्यों को पसंद नहीं आता और वे यह भी सोचते हैं कि एक महिला शासन कर रही हैं, इसलिए इन्हें तो हराना बड़ा ही आसान होगा। परंतु उन्हें कहां मालूम था रानी युद्ध में न केवल उन्हें हराने बल्कि नाक-कान काटने का भी साहस रखती हैं।
दरअसल, राजा महीपति शाह की मृत्यु के बाद रानी के हाथ में शासन आ चुका था और इसे देख पड़ोसी राज्य के कुमांऊनी राजा बाजबहादुर चांद आक्रमण करना चाहते था। परंतु अकेले नहीं, किसी को साथ लेकर। इसलिए उसने कांगड़ा में नियुक्त मुगल अधिकारी नजाबत खान से कहा कि गढ़वाल पर आक्रमण करने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता, क्योंकि इस समय वहां पर रानी का शासन है। बाजबहादुर ने वादा किया कि वे और सिरमौर के राजा उस आक्रमण में मुगलों का साथ देंगे।
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मुगलों ने कैसे किया आक्रमण?
बाजबहादुर चांद की यह बात नजाबत खान को सही लगी। उसने मुगल बादशाह शाहजहां को आक्रमण के लिए तैयार कर लिया। 1635 में 30 हज़ार सैनिकों को लेकर नजाबत खान ने गंगा नदी पार की और देहरादून के समीप रायवाला नामक जगह पर अपने खेमे गाड़ दिए। इसके बाद रानी कर्णावती तक मुगल बादशाह का संदेश भेजा गया और कहा गया कि या तो वो 10 लाख रुपए दे दें या फिर एक बड़े आक्रमण के लिए तैयार रहें। रानी ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
इससे क्रोधित होकर मुगल सेनापति नजाबत खान ने फ़ौज को लेकर श्रीनगर की तरफ बढ़ना शुरू किया। मुग़ल सेना गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर की तरफ बढ़ने लगी, परंतु जैसे-जैसे शिवालिक की तलहटी से ऊपर पहाड़ों की तरफ चढ़ना शुरू किया, उसका सामना छापामार गुरिल्ला पद्धति से लड़ने वाली रानी की सेना से हुआ। इस आक्रमण ने मुग़ल सेना की नाक में दम कर दिया। अंत में जब पहाड़ियों के बीच अच्छी तरह से मुगल सेना घिर गई, तो रानी कर्णावती ने रास्ते को दोनों तरफ से बंद करने के आदेश दे दिए। मुगल सेना ऐसी स्थिति आ गयी कि उनके सैनिक यहां से न तो ऊपर जा सकते थे और न ही नीचे।
रानी ने मुगलों की नाक क्यों काटी?
रानी ने मुगलों की सेना को दोनों तरफ से बुरी तरह घेर लिया था और इसके बाद नजाबत खान के पास आत्मसमर्पण के अलावा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा था। अंत में अपनी हार स्वीकार कर नजाबत खान ने रानी के पास शांति संदेश भेज आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव रखा। रानी ने इस प्रस्ताव को तो स्वीकार कर लिया परंतु एक शर्त भी रखी, जो शायद आज तक के इतिहास में किसी योद्धा ने नहीं रखी होगी। ये शर्त थी मुगल सैनिकों को अपनी जान बचाने के बदले नाक काटनी होगी, उसी के बाद सबको छोड़ दिया जाएगा। नजाबत खान ने इस शर्त को बड़ी शर्मिंदगी के साथ स्वीकार किया। रानी इस प्रकार की शर्त से मुगलों को एक संदेश देना चाहती थीं कि आज के बाद गढ़वाल की ओर देखना भी मत।
इस यु्द्ध के प्रसंग के बारे में 17वीं शताब्दी में इटली से भारत आये निकोलाओ मानूची नाम के एक यात्री ने विस्तार से वर्णन किया है। इसके अलावा तंत्र-मंत्र से संबंधित गढ़वाल की एक अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक ‘सांवरी ग्रंथ’ में उन्हें माता कर्णावती भी कहा गया हैं। मुगल दरबारों के वृत्तांतों को दर्ज करने वाली पुस्तक ‘मआसिर-उल-उमरा’ और यूरोपीय इतिहासकार टेवर्नियर के खातों में कर्णावती द्वारा मुग़लों की हेकड़ी निकाल देने के इस कहानी (Rani Karnavati story in Hindi) को लिखा गया है।
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