जब देश की राजनीति में पूर्ण रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वर्चस्व हुआ करता था, वैसे समय में जनता दल ने केंद्र में सरकार बनाई थी। वीपी सिंह देश के 10वें प्रधानमंत्री बने थे। वो अलग बात थी कि आंतरिक कलह के कारण यह सरकार 11 महीने में ही गिर गई लेकिन उसके बाद भी यह पार्टी, कांग्रेस को टक्कर देती रही। उसी बीच भारतीय जनता पार्टी का भी उदय हो चुका था और धीरे धीरे यह पार्टी पूरे देश में अपने पांव पसारते जा रही थी। हुआ यह कि 1999 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान जनता दल के एक धड़े ने एनडीए का समर्थन कर दिया, जिसके बाद जनता दल में फूट पड़ गई और अलग अलग गुट निकलने लगे।
सबसे पहले एच डी देवेगौड़ा ने जनता दल से अपना नाता तोड़ा और जनता दल (सेक्युलर) के नाम से अपनी पार्टी बना ली। वहीं, दूसरा धड़ा शरद यादव के नेतृत्व में बाहर निकला। बाद में शरद यादव गुट, लोकशक्ति पार्टी और समता पार्टी पास आए और फिर जन्म हुआ JDU का। लेकिन समय का फेर कुछ ऐसा हुआ है कि जनता दल (सेक्युलर) और जनता दल (यूनाइटेड) की स्थिति अब एक जैसी हो गई है। जनता दल से निकली यह दोनों ही पार्टियां अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुकी हैं।
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जेडीएस और जदयू की स्थिति
मौजूदा समय में अगर जदयू का बात करें तो नीतीश कुमार के अलावा पार्टी के पास कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आता। वहीं, नीतीश कुमार ने भी बिहार विधानसभा चुनाव 2020 को अपना अंतिम चुनाव बता दिया था। मौजूदा समय में एनडीए से अलग होने के बाद आरजेडी के साथ मिलकर नीतीश कुमार सरकार चला रहे हैं लेकिन यह सत्य है कि पार्टी का बेड़ा गर्क हो चुका है। नीतीश कुमार का वोट बैंक छिटक चुका है और बिहार विधानसभा चुनाव में यह साबित भी हो गया। भाजपा राज्य में काफी तेजी से बढ़ते जा रही है, जिसका डर भी इन्हें सता रहा है। वहीं, दूसरी ओर विपक्षी एकता का ढ़ोल भी पीटा जा रहा है। कांग्रेस पार्टी इन्हें भाव दे नहीं रही है, ऐसे में अगर आने वाले समय में जदयू और आरजेडी पूर्ण रूप से एक हो जाए, तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।
ये तो रही जदयू की बात, अब आते हैं जनता दल (सेक्युलर) पर। जिसे उसी के शीर्ष नेता बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। ज्ञात हो कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में जेडीएस और कांग्रेस ने राज्य में एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी लेकिन स्थिति कुछ ऐसी बनी की इनका गठबंधन चल नहीं पाया और कई विधायकों ने पाला बदल लिया। उसके बाद राज्य में भाजपा बहुमत की स्थिति में पहुंच गई और बीएस येदियुरप्पा, जो कि लिंगायत समुदाय से आते हैं उनके नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाया था।
उसके बाद तो स्थिति ऐसी पलटी कि कुमारस्वामी सुबह, शाम, दिन, रात भाजपा को लेकर जहर उगलते रहे, अनाप-शनाप बयान देते रहे। कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके कुमारस्वामी के बयानों का स्तर इतना नीचे गिर चुका है कि अब उन्हें कोई सीरियस लेने को भी तैयार नहीं है। यानी आसान शब्दों में कहा जाए तो देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के बेटे एच डी कुमारस्वामी की स्थिति वही हो गई है, जो कांग्रेस के चश्मोचिराग राहुल गांधी की है। बाकी आप समझदार हैं।
कुमारस्वामी के विवादित बोल
अगर हम एच डी कुमारस्वामी के हालिया बयानों पर नजर डालें तो स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगी। राज्य में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन उससे पूर्व उनके बयान उनकी ही पार्टी के लिए काल बनते नजर आ रहे हैं। हाल ही में तुष्टीकरण का खेल खेलते हुए एच डी कुमार स्वामी ने कहा है कि दोबारा सत्ता में आने पर किसी मुस्लिम नेता को राज्य का सीएम बनाएगें। ध्यान देने योग्य है कि विपक्षी पार्टियां कर्नाटक के लिंगायत समुदाय को भाजपा का वोटबैंक बताती हैं और वोक्कालिगा समुदाय कांग्रेस और जेडीएस का सर्मथन करते आया है।
लेकिन पिछले कुछ समय में यह देखने को मिला है कि वोक्कालिग्गा समुदाय भाजपा की ओर सरक गया है, जिसके कारण इनकी रातों की नींद उड़ी हुई है और अब यह तुष्टीकरण का खेल खेलने पर उतर आए हैं। ऐसे में इनका कोर वोटबैंक जल्द ही इनसे पूरी तरह से दूर होने वाला है। हाल ही में कुमारस्वामी ने कहा था कि लिंगायत समुदाय के लोग भाजपा को पसंद नहीं कर रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है भाजपा ने राज्य को 2 लिंगायत मुख्यमंत्री दिए हैं और कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 भी एक लिंगायत मुख्यमंत्री (बसवराज बोम्मई) के नेतृत्व में लड़ा जाने वाला है।
कुमारस्वामी के इस दूसरे बयान पर नजर डालते हैं। दरअसल, सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें कुमारस्वामी कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार को गालियां देते हुए नजर आ रहे हैं। हालांकि, मामला सामने आने के बाद उन्होंने माफी भी मांग ली है। इससे पहले वर्ष 2021 में कुमारस्वामी ने राम मंदिर निर्माण के चंदे को लेकर भी विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा लेने वाले कार्यकर्ता उन लोगों का नाम लिख रहे हैं, जो चंदा नहीं दे रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर इसके लिए आरोप तक लगा दिए थे। इतना ही नहीं कुमारस्वामी ने आरएसएस की तुलना जर्मनी के नाजियों से भी की थी।
वहीं, वर्ष 2019 में कुमारस्वामी ने पीएम मोदी को लेकर भी विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि इसरो मुख्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी ‘अशुभ’ साबित हुई होगी जिसके कारण ‘चंद्रयान-2’ मिशन के लैंडर विक्रम की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ असफल हो गई। उन्होंने मैसूर में कहा था कि मैं नहीं जानता लेकिन संभवत: वहां उनके कदम रखने का समय इसरो वैज्ञानिकों के लिए अपशगुन लेकर आया। हालांकि, इनके विवादित बयानों की सूची बहुत लंबी है लेकिन उपर्युक्त बयानों में इनके द्वारा चयन किए गए शब्द इनके स्तर को प्रदर्शित करते हैं।
अगले चुनाव में खत्म हो जाएगी जेडीएस
ओवरऑल स्थिति यही है कि जनता दल से निकली जदयू अपने पतन की ओर तीव्र गति से बढ़ते जा रही है और कुमारस्वामी अपने बयानों से बची खुची जेडीएस का बेड़ा गर्क करते जा रहे हैं। कभी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी रहने वाली जेडीएस भी अब अपना अस्तित्व बचाने में जुटी हुई है। कर्नाटक में अगले वर्ष चुनाव होने वाले हैं और इनका हश्र भी काफी बुरा होने वाला है। क्योंकि कर्नाटक में हिंदुओं की आबादी 83 फीसदी के करीब है, जो लिंगायत और वोक्कालिग्गा में बँटे हुए हैं। आगामी चुनाव में लिंगायत समुदाय का वोट भाजपा के हिस्से में आने वाला है तो वहीं वोक्कालिग्गा, जो कभी पूर्ण रूप से जेडीएस के सपोर्टर थे, उनका वोट कांग्रेस, जेडीएस, भाजपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों में बंट जाएगा क्योंकि कुमारस्वामी कर्नाटक की 11 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम समुदाय के किसी नेता को सीएम बनाने की बात कर रहे हैं। यानी यह स्पष्ट है कि अगला चुनाव जेडीएस के लिए ‘काल’ साबित होने वाला है।
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