देश के पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव निकट आ गये है। हिमाचल चुनावों का बिगूल बज चुका है, तरीखों की घोषणा हो गयी है और इसी के साथ तमाम राजनीतिक दल भी चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं। हालांकि 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश की सियासत जितनी सरल दिखती है, उतनी है नहीं। राज्य के हर पांच वर्षों में सरकार बदलने की परंपरा चली आ रही है। खैर, इस बार चुनावी मुद्दों की बात करें तो हिमाचल के कई मुद्दे हैं जिनकों लेकर सियासी खेल जारी है। जिनमें से महत्वपूर्ण मुद्दे नशाखोरी और भांग की खेती का हैं।
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नशे का बढ़ता कारोबार
वैसे तो देश की कई जगहों पर नशे की लत चिंता का विषय बनी हुई है। पहले पंजाब के विधानसभा चुनावों के दौरान नशाखोरी के मुद्दे ने खूब तूल पकड़ा था। हिमाचल प्रदेश के युवाओं को नशा खोखला कर रहा हैं। हालांकि पुलिस इससे सख्ती से निपटने और नशा तस्करों के विरुद्ध कार्रवाई कर रही है। परंतु हिमाचल में नशे का कारोबार फैल रहा है। यदि कुछ आंकड़ों पर नजर डालें तो मालूम चलता है कि किस तरह से राज्य का का ग्राफ हर साल बढ़ रहा है। आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में NDPC एक्ट के तहत वर्ष 2014 में 644 मामले सामने आए थे। अगले वर्ष यानी साल 2015 में इनमें थोड़ी कमी अवश्य आयी और उस साल 622 मामले आये। परंतु इसके बाद से इनमें लगातार उछाल देखने को मिल रहा है। वर्ष 2016 में 929 मामले, 2017 में 1010, 2018 में 1342 मामलों, 2019 में 1400 से अधिक मामले दर्ज किये गये। इसके बाद वर्ष 2020 में यह मामले 1377 थे और फिर 2021 में बढ़कर 1392 पहुंच गये।
चुनावों में भांग की खेती बना प्रमुख मुद्दा
एक तरफ हिमाचल में नशाखोरी चिंता का विषय बना हुआ है। तो दूसरी ओर हिमाचल का एक प्रमुख मुद्दा भांग की खेती का भी है। हिमाचल में भांग की खेती को वैध करने की मांग उठती रहती है। इस बार भी राज्य के चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा बनकर उभर रहा है। दरअसल, हिमाचल के लोगों के लिए भांग बेहद उपयोगी है। कुल्लू और मंडी में पारंपरिक रूप से फुटवियर, रस्सी, चटाई और खाद्य पदार्थों आदी में भांग या इसके पौधे का उपयोग किया जाता है। वैश्विक स्तर पर कैनाबिस उत्पादों का उपयोग स्वास्थ्य और औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। लेकिन जिस भांग का पेड़ का उपयोग हिमाचली लोग औषधि के लिए करते थे, देखते ही देखते वो राज्य के लिए समस्या बन गया।
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वहीं वर्ष 1985 में भारत सरकार ने भांग की खेती को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। भारत ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPC) अधिनियम के तहत भांग के पौधों की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 2018 में उत्तराखंड देश का पहला राज्य बना जहां भांग की खेती वैध हो गयी थीं। राज्य सरकार ने भांग की खेती करने की अनुमति प्रदान कर दी थी। तब से यहां पर नियंत्रित और विनियमित तरीके से भांग की खेती की जाती है। इस बीच हिमाचल प्रदेश में भी भांग की खेती को लीगल करने की मांग उठती रहती है।
क्यों भांग की खेती को वैध करने की उठती है मांग?
देखा जाये तो इसके पीछे के कई कारण हैं, जिनमें से पहली वजह है सेब की खेती। दरअसल, पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश अकेले ही पूरे भारत का एक तिहाई सेब का उत्पादन करता है। इस क्षेत्र की समृद्धि वास्तव में सेब से हुई है और अनुमान है कि सेब उद्योग लगभग 5000 करोड़ रुपये का हैं। लेकिन मौसम की अनिश्चितता के कारण सेब से होने वाली आय में समय के साथ गिरावट आयी है और पहाड़ी राज्य के किसान वैकल्पिक लाभकारी फसलों की तलाश कर रहे हैं। किसानों का मानना है कि चुनिंदा अफीम और भांग की खेती से राज्य में समृद्धि बढ़ सकती है। इसलिए राज्य के किसान भांग खेती को कानूनी दर्जा देने की मांग करते रहे हैं।
आपको बता दें कि हिमाचल में उत्पादित 60 प्रतिशत से अधिक अफीम और भांग अवैध रूप से यूरोपीय देशों में तस्करी कर लाया जाता है। जिसके चलते स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर भांग की खेती को कानूनी वैधता मिल जाएगी तो अवैध रूप से जो खेती राज्य में की जा रही है उस पर अंकुश लग जाएगा। अक्सर यह वकालत की जाती है कि भांग खेती से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी। कुल्लू, मंडी, चंबा और शिमला जिलों के किसानों का बड़ा वर्ग राजनीतिक दलों से राज्य में भांग की खेती को वैध बनाने की मांग कर रहा हैं।
हिमाचल की राजनीति में भी यह अहम मुद्दा बन चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी यह बड़े मुद्दों में से एक था। उस समय तमाम राजनीतिक दलों ने राज्य में भांग की खेती को वैध बनाने का वादा किया था। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने पिछले साल मार्च में स्वयं यह बात कही थी कि कि उनकी सरकार ने इस मुद्दे को लेकर विचार-विमर्श किया और उत्पादन को वैध बनाने के लिए एक नीति तैयार करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा था कि वह स्वयं ऐसा कानून लाने के पक्ष में हैं और उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि कैसे हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति और जलवायु इसकी खेती के लिए काफी हद तक उपयुक्त है।
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देखा जाये तो एक ओर तो भांग हिमाचल के कई परिवारों और राज्य की अर्थव्यवस्था की वित्तीय संभावनाओं को बढ़ाने में सहायता कर सकता है। तो दूसरी तरफ इसका एक पक्ष यह भी है कि यह युवाओं को नष्ट कर सकता हैं। इसकी खेती को कानूनी वैधता देने के साथ-साथ राज्य में नशाखोरी पर लगाम लगाना भी बड़ी चुनौती है। ऐसे में अब यह देखना बेहद ही रोचक होने वाला है कि तमाम राजनीति पार्टियां इस बार के हिमाचल चुनावों के लिए इस मुद्दे को किस तरह से उठाती है और जनता से क्या क्या वादे करती हैं और हिमाचल की जनता किसके पक्ष में इस बार वोट डालती हैं।
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