शाहरुख खान की पॉपुलर फिल्म स्वदेश की कहानी तो आप सब जानते ही होंगे औऱ अगर नहीं जानते हैं तो हम आपको संक्षिप्त में बता दें कि इस फिल्म का नायक अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा में एक वैज्ञानिक होता है और एक दिन उसका देशप्रेम जाग उठता है, जिसके बाद वह अपनी नौकरी छोड़ भारत में अपने गांव वापस आ जाता है। खैर ये तो हुई फिल्म की कहानी की बात परन्तु आज हम एक ऐसे भारतीय की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने असल में अमेरिका से वापस भारत आकर एक गांव में न केवल अपनी कंपनी (Zoho) का हेड ऑफिस बनाया बल्कि आज इस कंपनी का रेवेन्यू 1 बिलियन डॉलर पार कर चुका है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे जोहो के फाउंडर श्रीधर वेंबू (Sridhar Vembu) इंटरप्रेनरशिप के लिए एक अध्याय हैं और उभरते स्टार्टअप्स को इनसे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
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Zoho की सफलता की कहानी
लेकिन जोहो ने यह उपलब्धि यूं ही हासिल नहीं की है। दरअसल, Zoho कॉरपोरेशन के फाउंडर श्रीधर वेंबू ने अमेरिका की Qualcomm कंपनी में अपनी अच्छी खासी नौकरी को छोड़ कर AdventNet नाम की एक छोटी सी कंपनी की शुरूआत की जोकि आज Zoho कॉरपोरेशन के नाम से जानी जाती है। इस कंपनी का हेड क्वाटर किसी बड़े टावर या धाकड़ से दिखने वाले शहर की बिल्डिंग में नहीं बल्कि तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में है लेकिन इस कंपनी की रेवेन्यू अब 1 बिलियन डॉलर पार कर चुकी है।
ज्ञात हो कि Zoho कॉरपोरेशन के फाउंडर श्रीधर वेंबू तमिलनाडु के तंजावुर जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं। आईआईटी मद्रास से बीटेक की डिग्री प्राप्त करने के बाद ये उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका चले गए थे। जहां उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद Qualcomm कंपनी में बतौर वायरलैस सिस्टम इंजीनियर अपनी यात्रा की शुरुआत की। नौकरी के दो वर्ष बाद ही वर्ष 1996 में श्रीधर ने अपने भाईयों और तीन दोस्तों के साथ मिलकर AdventNet के नाम से एक कंपनी की शुरूआत की थी। इसके बाद वर्ष 2009 में AdventNet का नाम बदलकर Zoho कॉरपोरेशन कर दिया गया। श्रीधर वेंबू की ये कंपनी ऑनलाइन एप्लीकेशन मुहैया कराती है, जिसके आज करोड़ों की संख्या में यूजर्स हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऑफिसियल काम के लिए TFI में भी हमलोग जोहो का ही प्रयोग करते हैं।
कैसे काम करता है Zoho
Zoho कॉरपोरेशन के अन्य एप्लीकेशन भी हैं, लेकिन Zoho Cliq को किसी भी कंपनी के अंदर आपस में संपर्क साधने के लिए बनाया गया है। ये बाकी किसी भी मेल या ऐप से चलाने में कहीं ज्यादा आसान और बेहतर है। इसके अलावा अगर एक बार जोहो आईडी क्रिएट हो जाती है तो आप जोहो से जुड़े किसी भी एप्लीकेशन में लॉगिन कर सकते हैं। यह ठीक गूगल अकाउंट की भांति है। जैसे एक ई-मेल आईडी बनने के बाद हम गूगल से जुड़े सारे एप्लीकेशन में उसका उपयोग करते हैं, ठीक वैसे ही जोहो में भी किया जाता है। जोहो मेल अपने आप में बेहतरीन है। वहीं, जोहो क्लिक में केवल चैट की सुविधा ही नहीं बल्कि बेहतर क्वालिटी में ऑडियो क़ॉल, वीडियो कॉल की सुविधा भी मौजूद है। कॉस्ट के हिसाब से देखा जाए तो छोटी कंपनियों के लिए जोहो का नेटवर्क काफी बेहतरीन है। इसमें डेटा लीक की भी कोई चिंता नहीं है क्योंकि इसमें हर एक चीज को ट्रैक किया जा सकता है।
श्रीधर वेंबू (Sridhar Vembu) ने छोटी कंपनियों को ध्यान में रखकर ही इसकी शुरुआत की थी और कम पैसे में इतना बेहतरीन फंक्शन दिया कि आज इसके सितारे बुलंदी पर हैं। ज्ञात हो कि भारत के कई स्टार्टअप्स पिछले कुछ समय में धड़ाम हो गए हैं, जिनमें पेटीएम, जोमैटो, ग्रोफर्स (ब्लिंकिट) आदि शामिल हैं। इन स्टार्टअप्स को जोहो से काफी कुछ सीखने की आवश्यकता है। कैसे ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करें, उनका विश्वास जीते, उन्हें वैसी सुविधा मुहैया कराए कि वे विकल्प की तलाश में ही न जुटे, सिक्योरिटी फीचर्स ऐसा प्रदान करें कि किसी को कोई चिंता ही न हो, जोहो में ये सारी क्वालिटी है और अगर भारतीय स्टार्टअप्स भी इससे सीख लेते हुए आगे बढ़ते हैं, तो पेटीएम, जोमैटो जैसी स्थिति तो किसी की नहीं होगी।
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