“संसार में ऐसा कोई उदाहरण नहीं, जहां पर आप जनादेश को ही ‘बेसिक स्ट्रक्चर की अवहेलना’ के नाम पर असंवैधानिक घोषित कर दें”।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के ये शब्द लोगों के लिए 440 वोल्ट के झटके समान थे। किसने सोचा था कि संसद के शीतकालीन सत्र का प्रारंभ इस प्रकार से होगा? परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि अब केंद्र सरकार ने मोर्चा संभाल लिया है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे अब यह संकेत मिलने लगे हैं कि NJAC यानि न्यायिक सुधार विधेयक शीघ्र ही वापसी करने को तैयार है।
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उपराष्ट्रपति ने NJAC का उठाया मुद्दा
राज्यसभा के प्रथम अभिभाषण में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर आक्रामक रुख अपनाते हुए कहा, ”यह चिंताजनक है कि “लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर सात साल से अधिक समय से संसद में कोई ध्यान नहीं दिया गया है… यह सदन, लोकसभा के साथ मिलकर, लोगों के अध्यादेश के संरक्षक होने के नाते, इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए बाध्य हैं और मुझे यकीन है कि यह ऐसा करेगा।”
बता दें कि एनजेएसी बिल ने सरकार को न्यायिक नियुक्तियों में एक भूमिका दी, जो दो दशकों तक कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र था। सत्ता में आने के बाद वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने NJAC अधिनियम बनाया था। यह सरकार द्वारा प्रस्तावित एक संवैधानिक संस्था थी, जिसमें छह सदस्य रखने का प्रस्ताव था। इसमें मुख्य न्यायाधीश के अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ वकील, कानून मंत्री और विभिन्न क्षेत्र से जुड़ी दो लोकप्रिय हस्तियों को सदस्य के तौर पर शामिल करने की बात थी।
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रद्द कर दिया गया था कानून
कानून को अदालत में चुनौती देते हुए यह तर्क दिया गया कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता करेगा और बिना सरकार या किसी अन्य का पक्ष सुने एक संवैधानिक पीठ ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए 1975-77 के आपातकाल की ओर इशारा करते हुए कानून को रद्द कर दिया।
परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं थी। जगदीप बाबू आगे कहे, “एक संस्थान द्वारा दूसरे के क्षेत्र में किसी भी तरह की घुसपैठ से शासन को परेशान करने की क्षमता है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि लोकतंत्र में किसी भी संवैधानिक ढांचे की बुनियाद संसद में रिफलेक्ट होने वाले जनादेश की प्रमुखता को कायम रखना है।” उन्होंने कहा कि संसद की तरफ से पारित किया गया एक कानून लोगों की इच्छा को दर्शाता है, उसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया और लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है”।
कॉलेजियम प्रणाली पर उठते सवाल
अब जगदीप धनखड़ को यह बात कहने की आवश्यकता क्यों पड़ी? देशभर की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम प्रणाली कहा जाता है, जिसे न्याय प्रणाली में एक बाधा की तरह भी देखा जाता रहा है। ऐसा माना जाता है कि कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायपालिका में भी परिवारवाद को बढ़ावा दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट में ही 38 प्रतिशत मौजूदा न्यायाधीशों का न्यायपालिका या फिर सरकार में गहरा पारिवारिक संबंध है।
अब जिस एनजेएसी बिल को न्यायपालिका ने संविधान के ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ की अवहेलना कहते हुए रद्द किया था, उसमें न्यायपालिका की शक्तियां तो कहीं से भी खत्म नहीं हुई थी। परंतु वो क्या है, जब न्यायपालिका में पारदर्शिता ही नहीं होगी, तो दिखेगा कहां से? ऐसे में यह तो स्पष्ट नहीं कि NJAC कब लागू होगा, परंतु इतना तो स्पष्ट है कि उसकी वापसी होगी, क्योंकि इस बार केंद्र सरकार झुकेगी नहीं!
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