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चुनावी विश्लेषण: छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए कठिन है सत्ता की राह

भाजपा के लिए छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव काफी मुश्किल रहने वाला है क्योंकि उसका मुकाबला केंद्रीय कांग्रेस से नहीं बल्कि भूपेश बघेल की कांग्रेस से हैं, जो काफी मजबूत है और जनता के बीच अपनी विशेष पकड़ बनाए हुए है।

TFI Desk द्वारा TFI Desk
31 December 2022
in राजनीति, समीक्षा
Chhattisgarh fort is hard nut for BJP in 2023 assembly election

Source- TFI

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वर्ष 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दम पर जब भाजपा ने केंद्र में पूर्ण बहुमत हासिल की, तो तमाम राज्यों ने भी एक धारणा बना ली थीं कि मोदी के चेहरे पर कोई भी चुनाव जीता जा सकता था। कुछ राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और उसमें पहली बार तो भाजपा को अच्छी जीत मिली परंतु फिर उन्हीं राज्यों में वो अपनी सरकार बचा नहीं पाई। हिमाचल, झारखंड और छत्तीसगढ़ इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। अब छत्तीसगढ़ में एक बार फिर विधानसभा चुनाव वर्ष 2023 (Chhattisgarh Assembly Election 2023) में होंगे लेकिन यह माना जा रहा है कि भाजपा के लिए स्थितियां काफी प्रतिकूल हैं क्योंकि यहां मुकाबला कांग्रेस से नहीं बल्कि भूपेश बघेल से हैं।

और पढ़ें: चुनावी विश्लेषण: बड़ी जीत के साथ मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए तैयार है भाजपा

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15 सालों तक सत्ता में रही भाजपा

छत्तीसगढ़ के राजनीतिक समीकरण को समझने से पूर्व इसके इतिहास पर थोड़ा प्रकाश डाल लेते हैं। छत्तीसगढ़ का गठन साल 2000 में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में किया गया था। राज्य का पहला विधानसभा चुनाव साल 2003 में हुआ था और इनमें भाजपा ने शानदार जीत हासिल की। इसके बाद साल 2008 और 2013 में भी छत्तीसगढ़ के चुनावों में भी भाजपा ने आसानी से जीत दर्ज की और सत्ता में वापसी की। इस तरह 15 सालों तक लगातार भाजपा ने छत्तीसगढ़ पर राज किया। परंतु इन सबसे खास बात यह रही है कि इस दौरान 2013 के चुनाव से ही भाजपा का ग्राफ नीचे गिरता नजर आने लगा था परंतु जीत के जोश के बीच पार्टी ने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया इसका परिणाम यह हुआ कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा इतना नीचे आ गई कि सत्ता कांग्रेस के हाथ लग गई, जो कि पार्टी के लिए काफी बड़ा झटका था।

2003 में हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में राज्य की 90 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ था। इस चुनाव में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा डॉ. रमन सिंह थे। भाजपा ने इस दौरान 50 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, कांग्रेस के खाते में 37 सीटों आई थीं। इसके अतिरिक्त बसपा को दो और एनसीपी को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी। 2003 में भाजपा को 39.26 फीसदी और कांग्रेस को 36.71 फीसदी वोट मिले थे। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद परिसीमन वर्ष 2008 में हुआ था, जिसका लाभ भाजपा को मिलता दिखा। वर्ष 2008 में भाजपा ने 50 सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता में वापसी की। वहीं इस दौरान कांग्रेस ने 38 सीटों पर जीत दर्ज की थीं।

और पढ़ें: चुनावी विश्लेषण: कांग्रेस का ‘राजस्थान गढ़’ भी जाने वाला है

2018 में कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की

अब खास बात यह है कि कांग्रेस ने यहां अपना ग्राफ बढ़ाने और अपनी स्थिति मजबूत करने का काम करना शुरू कर दिया था। 2013 विधानसभा चुनावों में भाजपा के हाथ एक बार फिर से छत्तीसगढ़ की सत्ता की चाबी लगी और पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 49 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, कांग्रेस ने 38 सीटों पर जीत मिली थीं। परंतु फिर 2018 के चुनावों में पूरा खेल पलट गया। 2018 के चुनावों में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में एकतरफा जीत हासिल की और भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इस दौरान कांग्रेस 69 सीटों के साथ सत्ता में आई, तो वहीं भाजपा 14 सीटों पर ही सिमटकर रह गई।

भाजपा की हार की कुछ अपनी वजहें हैं क्योंकि भले ही डॉ रमन सिंह राज्य में 15 साल शासन करते रहे लेकिन पार्टी को साथ लेकर चलने में वे विफल रहे। पार्टी में उनके विरुद्ध काफी गुटबाजी हुई। यहां एक या दो नहीं बल्कि पार्टी कई गुटों बंटी है। इसके अलावा रमन सिंह ने जातिगत समीकरणों पर भी कभी अधिक ध्यान नहीं दिया। भाजपा के लिए संतोष की बात यह रही है कि भले ही उसे राज्य की सत्ता से जनता ने बेदखल किया हो लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वैसे ही पसंद किया जा रहा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो राज्य की 11 सीटों में से  10 पर भाजपा को जीत मिली थी। वहीं 2018 में विधानसभा चुनाव में करारी हार के बावजूद पार्टी को 2019 में 11 में से 9 सीटों पर छत्तीसगढ़ की जनता का समर्थन प्राप्त हुआ था। कांग्रेस को दो सीटें मिलीं थी।

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चाहिए सबका साथ और सबका विश्वास

अब जातिगत समीकरणों की बात करें तो कुल 90 विधानसभी सीटों में से 39 आरक्षित है। इस 39 में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए है। शेष बची 51 सीट सामान्य हैं लेकिन उसमें भी एक दर्जन से अधिक सीटों पर अनुसूचित जाति वर्ग का खासा प्रभाव है। ऐसे में ओबीसी से लेकर एससी-एसटी और आदिवासी वर्ग का राज्य की राजनीति में विशेष प्रभाव देखने को मिलता है। बता दें कि प्रदेश में करीब 47 प्रतिशत ओबीसी के लोग हैं, जिनमें 95 से अधिक जातियां हैं। इनमें सबसे अधिक साहू जाति के लोग हैं, जो कांग्रेस और भाजपा दोनों के वोटबैंक हैं। इसके अलावा 9 फीसदी यादव जाति की और 5 फीसदी कुर्मी मरार और निषादों की संख्या है।

इन सबके बीच एक खास बात यह भी है कि यदि कोई पार्टी यह सोचे कि एक या दो वर्ग को साधकर सत्ता पर कब्जा किया जा सकता है तो वो राजनीतिक दलों की सबसे बड़ी भूल होगी क्योंकि यहां सभी को साथ लेकर चलने में भी भलाई है, वरना भरोसा नहीं है कि कब कोई खेला हो जाए।

अब बात करते हैं अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों की। साल 2023 के विधानसभा चुनावों (Chhattisgarh Assembly Election 2023) को लेकर भाजपा यहां खास तैयारियां कर रही है। इसके चलते ही राज्य के प्रभारी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक बदल दिए गए हैं। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से आदेश आया है कि सांसद और विधायक अपने अपने क्षेत्रों में कमजोर बूथ की सर्वे रिपोर्ट तैयार करें जिससे चुनावों को लेकर रणनीति बनाई जा सके। इन कमजोर सीटों को लेकर यह तक पूछा गया है कि उन बूथों पर किस धर्म के कितने लोग हैं।

वहीं एक बड़ा प्रश्न इस दौरान यह भी उठता है कि आखिर भाजपा इस बार छत्तीसगढ़ का चुनाव किस चेहरे पर लड़ेगी? क्योंकि जिस प्रकार से रमन सिंह के नेतृत्व में पार्टी ने पिछले चुनावों में बड़ी हार का सामना किया। वहीं 2018 के बाद जो भी राज्य में जो उपचुनाव हुए हैं सभी में भाजपा को हार ही मिली है। पार्टी का प्रदर्शन पंचायत चुनाव में भी खराब ही रहा था। ऐसे में भाजपा के लिए रमन सिंह पर भरोसा जताना तो मुश्किल होगा, जिसके चलते पीएम मोदी के नाम पर ही भाजपा छत्तीसगढ़ के चुनावी मैदान में उतरने की संभावना है।

और पढ़ें: भाजपा में शामिल होने की संभावनाएं तलाश रहे हैं शशि थरूर?

Chhattisgarh Assembly Election 2023 भूपेश बघेल का किला

Chhattisgarh Assembly Election 2023 में भाजपा का यहां सीधा मुकाबला इस बार भी कांग्रेस से ही होगा, लेकिन खास बात यह है कि यह केंद्रीय कांग्रेस नहीं है। यहां संगठनात्मक तौर पर पार्टी काफी मजबूत है। राज्य के सीएम भूपेश बघेल भले ही कुछ राष्ट्रीय आलचोनाओं में रहे हों किन्तु विकास के नाम पर छत्तीसगढ़ में उन्होंने काफी अच्छा काम किया है। गरीबों से लेकर किसानों और आदिवासियों तक में उन्होंने अपने काम को पहुंचाने के प्रयास किए थे। बघेल सॉफ्ट हिदुंत्व पर भी खेलते हैं और गांव गोबर की बात करते हैं जोकि उनके लिए लाभ का सौदा बन जाता है।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में कलह नहीं है लेकिन स्पष्ट बात यह है कि पंजाब की तरह यहां कोई गलत फैसला नहीं लिया गया है। वैसे तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के दौरान यहां टीएस सिंह देव और भूपेश बघेल के बीच ढाई-ढाई साल तक मुख्यमंत्री बनने का निर्णय हुआ था लेकिन ऐसा कोई फैसला माना नहीं गया। खास बात यह है इसके बावजूद टीएस सिंहदेव ने छुटपुट छोड़ कोई बड़ा विरोध किया नहीं। ऐसा लगा कि उन्हें भूपेश बघेल ने उन्हें आसानी से मना लिया है।

ऐसा भी हो सकता है कि आने वाले समय में कांग्रेस के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर थोड़ी अनबन देखने को मिले। या फिर कांग्रेस चुनाव तो भले ही बघेल के चेहरे पर चुनाव लड़ें लेकिन फिर टीएस सिंह देव को मुख्यमंत्री बना दें क्योंकि उन्हें पार्टी ने काफी समय से रोके रखा है। हालांकि यह काफी मुश्किल होगा।

सटीक शब्दों में कहें तो छत्तीसगढ़ का चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है। जहां एक ओर कांग्रेस सत्ता में बने रहना चुनौती होगी, तो वहीं भाजपा भी दोबारा से सत्ता कब्जाने का प्रयास करेगी। हालांकि भाजपा के लिए साल 2023 का विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Assembly Election 2023) काफी मुश्किल रहने वाला है क्योंकि उसका मुकाबला केंद्रीय कांग्रेस से नहीं बल्कि सशक्त भूपेश बघेल की कांग्रेस से हैं, जो कि काफी मजबूत है और जनता के बीच अपनी विशेष पकड़ बनाए हुए है।

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