भगवान दत्तात्रेय: ब्रह्मा, विष्णु और महेश की एक दिव्य परिणति

इस लेख में जानिए भगवान दत्तात्रेय से जुड़ी जन्म की कथा के बारे में, साथ ही जानिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को विस्तार से।

Dattatreya: The Divine culmination of brahma, Vishnu and Mahesh

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Bhagwan Dattatreya story in Hindi: सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की एक व्यवस्था है और इस व्यवस्था का आधार हैं त्रिदेव अर्थात भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव। इन तीनों भगवान के निमित्त अपने-अपने कार्य हैं जैसे कि भगवान ब्रह्मा सृष्टि के रचनाकार, भगवान विष्णु पालनहार और भगवान शिव संहारकर्ता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसे भगवान भी हैं जो त्रिदेवों के अवतार हैं अर्थात भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव के सम्मलित अवतार जिन्हें हम भगवान दत्तात्रेय (Bhagwan Dattatreya) के नाम से जानते हैं।

आज के इस लेख में हम भगवान दत्तात्रेय से जुड़ी जन्म की कथा (Bhagwan Dattatreya story in Hindi)के बारे में जानेंगे जो बड़ी ही अद्भुत और रोचक है। साथ ही हम जानेंगे भगवान दत्तात्रेय के जीवन और उनके द्वारा किए गए कार्यों के बारे में विस्तार से।

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भगवान दत्तात्रेय की जन्म कथा

माता अनुसूया और ऋषि अत्रि के पुत्र भगवान दत्तात्रेय (Bhagwan Dattatreya) का जन्म ब्रह्मा, विष्णु और महेश  के आशीर्वाद से हुआ था परन्तु इनके जन्म की कथा बड़ी ही अद्भुत और रोचक है। एक बार तीनों देवियों लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती के बीच कौन अधिक पतिव्रता है इसे लेकर प्रतिस्पर्धा हुई। तीनों एक दूसरे से तुलना करने लगीं कि पतिव्रत धर्म को निभाने में सबसे अच्छा कौन है। तभी देवर्षि नारद कहते हैं कि इस पूरे ब्रह्माण्ड में माता अनुसूया से बड़ी पतिव्रत धर्म निभाने वाली स्त्री नहीं है। देवर्षि नारद की ये बात सुनकर तीनों देवियां माता अनुसूया की परीक्षा लेने की योजना बनाती हैं और तीनों अपने-अपने पति ब्रह्मा,विष्णु और महेश से कहती हैं कि इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड में आप तीनों से अधिक सुंदर कोई पुरुष नहीं है इसलिए आपको भेष बदलकर माता अनुसूया की परीक्षा लेनी होगी। प्रारंभ में तीनों देव ऐसा कुछ भी करने से मना कर देते हैं परन्तु कुछ समय पश्चात् मान जाते हैं।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश आकर्षित पुरुषों का भेष धरकर एक साथ पृथ्वी लोक पर माता अनुसूया की परिक्षा लेने पहुंचते हैं। अत्रि ऋषि व माता अनुसूया की कुटिया पर पहुचंकर तीनों ही माता अनुसूया को आकर्षित करने का प्रयास करने लगे। परन्तु माता अनुसूया को कौन आकर्षित कर सकता है भला, वो तो पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली स्त्री थीं। तीनों भगवान माता अनुसूया को आकर्षित तो न कर सके परन्तु स्वयं 6 माह के बालक बन गए और माता अनुसूया के सामने बच्चों के रूप में खेलने लगे।

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माता अनुसूया को मिला आशीर्वाद

जब बहुत समय तक तीनों भगवान अपने यथा स्थान पर नहीं पहुंचे तब तीनों देवियां चिंतित हो गयीं। तीनों देवियां माता अनुसूया के यहां पहुंची तो तो देखा कि तीनों भगवान बालक रूप में माता की गोद में खेल रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम को देखकर तीनों देवियां आश्चर्य से भर गयीं और माता अनुसूया से कहने लगीं कि ये क्या, ये तीनों तो आपकी परीक्षा लेने के लिए आए थे और स्वयं ही परीक्षा देने लगे। तीनों देवियां भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश को लौट चलने के लिए भी कहती हैं परन्तु वे तीनों तो बालक रूप में माता अनुसूया की गोद में खेल रहे थे और उन्हें आनंद की अनुभूति हो रही थी। जब तीनों देवियां थक गईं तो कुछ समय के बाद माता अनुसूया ने तीनों भगवान को उनके वास्तविक रूप में परिवर्तित कर दिया।

इस पूरे प्रकरण के बाद तीनों भगवान ने माता अनुसूया को आशीर्वाद दिया कि हम तीनों आपके गर्भ से एक बालक के रूप में जन्म लेंगे। इस प्रकार माता अनुसूया के गर्भ से जब दत्तात्रेय का जन्म होता है तो उनमें भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का अंश होता है जिनके पिता अत्रि ऋषि थे। दत्तात्रेय (Bhagwan Dattatreya) के नाम के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो दत्त अर्थात दिया हुआ और त्रेय अर्थात त्रिदेवों का, पूरा अर्थ हुआ त्रिदेवों के आशीर्वाद से जन्मा हुआ बालक।

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तपस्वी भगवान दत्तात्रेय

दत्तात्रेय (Bhagwan Dattatreya) एक उच्च कोटि के तपस्वी थे। वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे और बाल्यकाल से ही वन में तपस्या करने के लिए चले गए थे। इन्होंने घूम-घूमकर लोगों को सनातन धर्म के उपदेश दिए। नाथ संप्रदाय के लोग दत्तात्रेय को भगवान शंकर का अवतार मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। दत्तात्रेय की पूजा अर्चना करने वाले अधिकतर लोग वैरागी ही होते हैं, एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि दत्तात्रेय तपस्वियों के ईष्ट हैं। भगवान दत्तात्रेय (Bhagwan Dattatreya) ने एक अवधूत नाम की गीता की रचना भी की थी जिसमें जीवन से जुड़े दर्शन के बारे में बताया गया है। बताया जाता है कि दत्तात्रेय के दो शिष्यों ने अवधूत गीता को एक किताब का रूप दिया था।

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वर्तमान समय में दत्तात्रेय का महत्व

वर्तमान समय में हम लोग एक ऐसी स्थिति में जी रह हैं जहां किसी भी व्यक्ति के पास एक दूसरे से बात करने तक का समय नहीं है। ऐसे में भगवान दत्तात्रेय (Bhagwan Dattatreya) का जीवन और उनके द्वारा दिया गया दर्शन हमारे लिए बहुत लाभदायक हो सकता है। यही नहीं महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटका और आंध्रप्रदेश जैसे क्षेत्रों में दत्तात्रेय के बड़े-बड़े मंदिर भी बने हुए हैं। जिनमें उन्हें अलग-अलग मुद्राओं में दर्शाया गया है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की छवि को दर्शाया गया है। दत्तात्रेय को शैव संप्रदाय वाले शिव का अवतार मानते हैं और वैष्णव संप्रदाय वाले विष्णु का। परन्तु इन सब में यब विशेष है कि इनके दर्शन में सभी विश्वास करते हैं।

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