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अरब देशों के साथ संबंध मजबूत करने के पीछे यह है ‘ड्रैगन’ का पूरा खेल

चीन अरब देशों का सगा बनने का प्रयास कर रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन-अरब समिट के लिए सऊदी अरब आए हुए हैं। इसके पीछे ड्रैगन का उद्देश्य क्या है यहां जान लीजिए...

TFI Desk द्वारा TFI Desk
9 December 2022
in विश्व
जिनपिंग सऊदी अरब

Source- TFI

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चीन पूरी दुनिया में अपनी कुटिलता के लिए जाना जाता है। आज की स्थिति में वैश्विक स्तर पर देखें तो अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, भारत सभी बड़ी ताकतों से चीन के रिश्ते कुछ खास नहीं हैं। अमेरिका ने तो चीन की नाक में दम करके रखा है। आए दिन अमेरिका और चीन के बीच कोल्ड वॉर की खबरें सामने आती ही रहती हैं। ऐसे में अब चीन अरब देशों का सगा बनने के प्रयासों में लग गया है। आखिर ऐसा अचानक क्या हो गया है कि चीन को अरब देशों की याद आने लगी है, जो वो सिनो-अरब समिट तक आयोजित कर रहा है।

और पढ़ें: चीन का मुकाबला करने के लिए ताइवान को कुछ इस तरह तैयार कर रहा है अमेरिका

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सऊदी अरब दौरे पर शी जिनपिंग

दरअसल, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग गुरुवार को सऊदी अरब पहुंचे। खबरों की मानें तो अपनी इस तीन दिवसीय यात्रा के दौरान जिनपिंग सऊदी अरब के साथ एक बड़ी डील कर सकते हैं। वो सऊदी के लिए अपना खजाना खोलने वाले है। रिपोर्ट्स के अनुसार सऊदी अरब और चीन के बीच 29.3 अरब डॉलर की डील होगी। इसे शी जिनपिंग के अमेरिका के विरुद्ध नया दांव की तरह देखा जा रहा है क्योंकि इससे चीन के सऊदी अरब के साथ दोस्ती गहरा जाएगी। वो भी ऐसे समय में जब अमेरिका और सऊदी अरब के बीच संबंध बिगड़ते नजर आ रहे है। अब यहां आप ड्रैगन का पूरा खेल समझ रहे होंगे।

दरअसल, अमेरिका के साथ अरब देशों के सहज रिश्ते माने जाते रहे हैं। सऊदी अरब लंबे समय से खाड़ी देशों में अमेरिका का घनिष्‍ठ सहयोगी देश रहा है लेकिन फिलहाल इसमें टकराव दिख रहा है जिसके चलते चीन इसका लाभ उठाने की कोशिश में है। जानकारी के मुताबिक शी जिनपिंग सऊदी अरब की राजधानी रियाद में चीन-अरब शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे, जिसमें 14 अरब देशों के राष्ट्राध्यक्षों के शामिल होने की संभावना है।

और पढ़ें: “तुम अपना मुँह बंद रखो”, अमेरिका के साथ सैन्य अभ्यास पर आपत्ति जताने वाले चीन को भारत की दो टूक

फायदा उठाना चाहता है चीन

आपको बता दें कि अमेरिका के चीन के साथ ही सऊदी अरब से भी संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं। चीन और सऊदी अरब ने यूक्रेन युद्ध को लेकर अलग रूख अपनाया है। दोनों ने रूस पर प्रतिबंधों का समर्थन करने से परहेज किया है। सऊदी ने तो दो बार यह भी कहा है कि रूस एक प्रमुख ऊर्जा उत्पादक भागीदार है, इसलिए उससे OPEC+ देशों के तेल मूल्यों संबंधी फैसलों पर परामर्श किया जाना चाहिए।

दूसरी ओर तेल उत्पादन को लेकर भी अमेरिका और सऊदी अरब अभी भी विवाद में उलझे हुए हैं। अक्टूबर में दोनों देशों के बीच इसे लेकर कुछ बयानबाजी भी हुई थी जिससे दोनों देशों के बीच टकराव सार्वजनिक हो गया था। अमेरिका ग्रीन एनर्जी की तरफ आगे बढ़ रहा और उसने अपने तेल के संसाधनों पर निर्भर रहना शुरू कर दिया है। इसके चलते अमेरिका अब अरब देशों का साथ छोड़ रहा है।

अहम बात यह है कि सऊदी के नेतृत्व वाले तेल उत्पादक देशों के गठजोड़ OPEC+ ने तेल की कीमतों को ‘स्थिर’ करने की कोशिश करते हुए उत्पादन में 20 लाख बैरल रोजाना की कमी कर दी थी। अमेरिका की कड़ी आपत्ति के बाद भी यह फैसला लिया गया था जबकि अमेरिका चाहता था कि उत्पादन अधिक हो लेकिन ओपेक देशों ने उसकी बातों को नकार दिया था।

और पढ़ें: अमेरिका और रूस के बाद अब विश्व का ‘तीसरा ध्रुव’ बन रहा है भारत, ये रहे प्रमाण

वहीं पत्रकार खशोगी की हत्या के मुद्दे को लेकर भी अमेरिका और सऊदी के बीच विवाद हुआ था। दरअसल, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पर पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के आरोप हैं। इस पर प्रिंस के विरुद्ध ही अमेरिका में कई तरह से केस चल रहे थे। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जब सऊदी अरब की यात्रा की थी, वहां उन्होंने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ मुलाकात में भी यही मुद्दा उठाया था। यह निश्चित तौर पर क्राउन प्रिंस के लिए ही परेशानी वाली बात थी। इनसे भी सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्ते खराब हुए हैं।

अरब देश रूस के विरुद्ध कुछ भी सीधे बोलने से बचते हैं। अरब देशों के पास तेल के असीमित भंडार हैं। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी मानी जा रही है। दूसरी ओर चीन की अर्थव्यवस्था बर्बाद होती नजर आ रही है।

मौके का फायदा उठाते हुए चीन अरब देशों के साथ अपने संबंध करने में जुट गया, जो अमेरिका के लिए एक झटका साबित हो सकते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान से ही चीन और अमेरिका के बीच कोल्ड वॉर जारी था। चीन को उम्मीद थी कि जो बाइडन के आने के बाद दोनों देशों के रिश्ते सुधरेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

और पढ़ें: चीन की जनता शी जिनपिंग को घुटनों पर लाने के लिए सड़कों पर उतर आई है

भारत को काउंटर करना चाहता है

देखा जाए तो इसके पीछे का एक कारण भारत भी है। दिलचस्प यह भी है कि चीन उन देशों के साथ अपना सहयोग बढ़ा रहा है जिनके भारत के साथ अच्छे संबंध हैं।  चीन, भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है। वह भारत को वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया के लीडर के रूप में नहीं देखना चाहता है। भारत के अरब देशों के साथ संबंध काफी मजबूत हैं। भारत I2U2 नामक एक समूह का भी हिस्सा है, जिसमें इजराइल, यूएई और अमेरिका जैसे देश शामिल है। चीन इन सब पर नजर बनाए हुए है। इसके चलते अब चीन भारत को काउंटर करने के लिए और आर्थिक तौर पर मजबूती हासिल करने के लिए सऊदी अरब से सहयोग बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

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राजनीतिक इस्लाम बनाम सनातन चेतना: योगी आदित्यनाथ का वैचारिक शंखनाद और संघ का शताब्दी संकल्प
इतिहास

राजनीतिक इस्लाम बनाम सनातन चेतना: योगी आदित्यनाथ का वैचारिक शंखनाद और संघ का शताब्दी संकल्प

22 October 2025

गोरखपुर के पावन मंच से जब योगी आदित्यनाथ ने यह कहा कि राजनीतिक इस्लाम ने सनातन धर्म को सबसे बड़ा झटका दिया है, तो यह...

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