चीनी डायरेक्टर: कहा जाता है कि दुश्मन की हर हरकत पर नजर रखना बेहद ही आवश्यक होता है क्योंकि वह किसी भी तरह और कभी भी आपको घाव पहुंचाने के प्रयास कर सकता है। वर्तमान समय में देखा जाए तो चीन भारत का बड़ा दुश्मन बनकर सामने आ रहा है। पूरी दुनिया में अपनी चालबाजी के लिए प्रसिद्ध चीन कोई न कोई हरकत कर भारत की परेशानी बढ़ाने के प्रयास करता रहता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के बीच का तनाव लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है। जहां एक तरफ भारत और चीन के बीच सीमा पर लगातार टकराव की स्थिति बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे आंकड़े सामने आए हैं जो बताते हैं कि देश की कंपनियों में चीन की दखलअंदाजी कितनी बढ़ चुकी है। भारत में कंपनियों तक में चीन अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है, जो हैरान और परेशान करने वाला है।
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अरुणाचल में भारत-चीन के बीच झड़प
दरअसल, भारत और चीन की सेनाओं के बीच एक बार फिर टकराव देखने को मिला है। चीनी सेना यानी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके में घुसपैठ की थी। उसने वहां तारबंदी और कुछ निर्माण की कोशिश की। भारतीय सेना ने चीन की इस हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया। झड़प के दौरान भारतीय सेना के कुछ जवानों को चोटों आयीं तो वहीं खबरों के अनुसार बड़ी संख्या में चीनी सैनिक घायल हो गए। इस घटना से चीन इस कदर बौखला गया है कि वो एक बार फिर पूरा दोष भारत पर मढ़ने का प्रयास कर रहा है। चीन की तरफ से यह भी कहा गया कि भारतीय सेना ने उसके इलाक़े में घुसपैठ की थी। जबकि चीन की हरकतों से पूरी दुनिया अच्छे से परिचित है कि वो सामने से तो भारत के साथ बातचीत कर पूरे मामले को सुलझाने का ढोंग रचता है और दूसरी तरफ ऐसा कुछ न कुछ कर ही देता है, जिससे तनाव बढ़ें।
इस टकराव के बाद भारत और चीन के बीच तनाव एक बार फिर अपने चरम पर पहुंचता नजर आ रहा है। इस बीच संसद में भारत सरकार के द्वारा चीनी कंपनियों से जुड़े कुछ बड़े और चौंकाने वाले खुलासे किए गए है जो यह बताते हैं कि कैसे चीन भारत के अर्थ तंत्र पर कुंडली मारकर बैठा है और यदि भारत और चीन के बीच तनाव और अधिक बढ़ता है तो इससे भारत को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
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भारतीय कंपनियों में चीन की घुसपैठ
दरअसल, संसद में कंपनी मामलों के मंत्रालय के राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने जानकारी दी है कि भारत में 3560 कंपनियां हैं, जिसके चीनी डायरेक्टर हैं। इसके अलावा बताया यह भी गया कि देश में 174 चीनी कंपनियां हैं, जो भारत में काम करने के लिहाज से मंत्रालय में विदेशी कंपनियों के रूप में रजिस्टर्ड हैं। इसके बारे में कंपनी मामलों के राज्य मंत्री इंद्रजीत सिंह ने जानकारी देते हुए बताया- “कॉर्पोरेट डाटा प्रबंधन (CDM) के आंकड़ों के अनुसार भारत में 3560 कंपनियां में चीनी डायरेक्टर हैं। 174 चीनी कंपनियां भारत में काम करने के लिहाज से मंत्रालय में विदेशी कंपनियों के रूप में रजिस्टर्ड हैं।”
अब आप इन आंकड़ों से अंदाजा लगा सकते हैं कि देश की कंपनियों में चीन की दखलअंदाजी कितनी बढ़ी है। यह भारत के लिए बिलकुल भी अच्छे संकेत नहीं देता है। क्योंकि आगे आने समय में भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति बनती भी है तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चीनी निदेशक चीन का ही समर्थन करेंगे। यदि भारत से चीन का टकराव बढ़ता है कि तो ये लोग चीन के लिए भारत में जासूसी करने का भी काम कर सकते हैं, जो पर्दे के पीछे से चीन को काफी मदद पहुंचा सकता है और यह भारत के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
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चिंताजनक विषय
इसके अलावा गौर करने वाली बात ये है कि ये वो आंकड़े हैं, जो सरकार के पास मौजूद है, जिनका लेखा-जोखा सरकार रखती है। इसके अतिरिक्त स्वयं भारत सरकार द्वारा ही यह बताया गया कि चीनी निवेशकों या शेयरधारकों वाली कंपनियों का कोई डेटा सरकार के पास उपलब्ध ही नहीं है। सरकार ने कहा है कि चीनी निवेशकों या शेयरधारकों वाली कंपनियों की संख्या बताना मुमकिन नहीं है क्योंकि ये डाटा कॉर्पोरेट मंत्रालय में अलग से नहीं रखा जाता है। यानी सरकार को यह मालूम ही नहीं है कि चीन कहां कितना पैसा भारत में लगा रहा है।
देखा जाये तो चीनी कॉर्पोरेट और चीनी डायरेक्टर एक तरह से सीसीपी का गुलाम ही होता है। तमाम चीनी कंपनियां अपना डेटा चीन के साथ साझा करती हैं और इसके लिए भारत सरकार द्वारा कई कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई तक की जा चुकी है। केवल इतना ही नहीं Vivo, Oppo जैसी कई बड़ी कंपनियां भारत में कारोबार करके चोरी से चीन को पैसा भी भेजती हैं। इन कंपनियों पर टैक्स चोरी समेत कई आरोप लग चुके हैं, जिसके कारण भारत में ये कंपनियां जांच के घेरे में बनी हुई हैं। इससे स्पष्ट होता है कि चीनी कंपनियों को कैसे पूरी तरह से ड्रैगन अपने नियंत्रण में रखता है। तो ऐसे में क्या जब भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ता है तो वो कंपनियां जो भारत में अपना कारोबार कर रही हैं या फिर जिन कंपनियों के निदेशक चीनी हैं, क्यों वो पीछे से चीन की सहायता नहीं करेंगी।
ऐसे में चीन की चालाकी को ध्यान में रखते हुए इन आंकड़ों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। यह बेहद ही जरूरी है कि भारत सरकार पहले तो जितना संभव हो सके भारतीय कंपनियों में चीन की दखलअंदाजी कम करे। दूसरा यह भी कि जो कंपनियां चीन से किसी भी तरह से संबंधित हैं उन पर अपनी पैनी नजर रखे। इसके अलावा जरूरी यह भी है कि सरकार चीनी निवेशकों या शेयरधारकों वाली कंपनियों का डेटा भी अपने पास रखे।
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