भारत एक ऐसा देश है जहां सांस्कृतिक विविधताएं कदम-कदम पर दिख जाती हैं। इस देश में जिस तरह से हर एक कोस पर पानी बदलता है और हर चार कोस के बाद भाषा बदल जाती है वैसे ही यहां के हर क्षेत्र के व्यंजन भी भिन्न-भिन्न प्रकार के पाए जाते हैं। अलग-अलग तरह के व्यंजनों का आनंद लेना किसके लिए रुचिकर नहीं होगा भला और जब बात आती है भारत की तब तो समझ लीजिए कि बात एक अलग ही स्तर की है। विशेषकर स्वादिष्ट मिठाईयों की बात हो तो लाल-नारंगी सुनहरे रंग की कुण्डलाकार चाशनी में डूबी गर्मागर्म जलेबी और रस में सराबोर गुलाब जामुन मिठाई।
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जलेबी और गुलाब जामुन
जलेबी और गुलाब जामुन इन दोनों ही मिठाइयों को भारत के लगभग हर कोने में बड़े चाव से खाया जाता है लेकिन क्या आप इन दोनों मिठाइयों के इतिहास से परिचित हैं? क्या आप जानते हैं कि इन दोनों मिठाइयों की उत्पत्ति कहां से हुई है? इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर हैं- भारत। वो बात और है कि कुछ उच्च कोटी के मूर्ख इन दोनों मिठाइयों को फारसियों की देन बताकर अपने अद्भुत ज्ञान का परिचय देते हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों का कहना है कि इन दोनों मिठाइयों का जन्म फारसी से हुआ है जो कि बिलकुल गलत है।
कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि जलेबी मूल रूप से एक अरबी शब्द है और इस मिठाई का असली नाम जलेबी नहीं बल्कि जलाबिया। हौब्सन-जौब्सन की माने तो जलेबी शब्द अरेबिक -शब्द ‘ जलाबिया’ या फारसी शब्द ‘जलिबिया’ से आया है। वहीं मध्यकालीन पुस्तक ‘किताब-अल-तबीक़’ में ‘जलाबिया’ नाम की मिठाई का भी उल्लेख मिलता है कुछ का ऐसा भी कहना है कि 10वीं शताब्दी की अरेबिक पाक कला पुस्तक में ‘जुलुबिया’ बनाने की कई विधियां मिलती हैं।
If we go by the oldest reference of 'Jalebi', it was mentioned in the 13th century by a noted writer of the time, where he featured all the dishes of the time in a cookbook titled, 'Kitab al-Tabeekh' & jalebi was first mentioned as ‘Zalabiya’ with its origin in West Asia. #jalebi pic.twitter.com/3MuY8Sy1CB
— Saurabh A Nage 🇮🇳 (@saurabhnage05) May 2, 2021
ऐसे लोगों से मेरा एक प्रश्न है कि क्या इस दसवीं शताब्दी वाले जलेबी के इतिहास को ही सबसे विश्वसनीय माना जाएगा? इस बात का क्या प्रमाण है कि इससे पहले जलेबी का कहीं और वर्णन नहीं किया गया है? यदि इन प्रश्नों का उत्तर आपके पास नहीं है तो कृपया जलेबी को फारसी कहना बंद करिए।
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जलेबी के बारे में लिखा है इतिहास
संस्कृत पुस्तक ‘गुण्यगुणबोधिनी’ में जलेबी के बारे में लिखा हुआ है। इतना ही नहीं इसके विषय में अंगुत्तरनिकाय (बौद्ध ग्रन्थ) में भी बात की गयी है और ये ग्रथ लगभग पहली शताब्दी के आस-पास का है जो कि मुसलमानों की उत्पत्ति के हजारों साल पहले ही आ गयी थी। आप अब स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि जलेबी का अस्तित्व कब और कहां से है।
Jalebi is a pure indigenous Indian dessert. can be seen in अंगुत्तरनिकाय even thousands of years before the origin of Muslims.@sharo_hit @RajSharma1857 @MumukshuSavitri @HinduTemples7 @bhAratenduH @BharadwajSpeaks @Aabhas24 pic.twitter.com/S0TM3psG0x
— Chronicle watch (@chronicle_watch) February 7, 2021
शरदचंद्र पेंढारकर (बनजारे बहुरूपिये शब्द) में जलेबी का प्राचीन भारतीय नाम कुंडलिका बताया गया है। इसमें रघुनाथकृत ‘भोज कुतूहल’ नामक ग्रंथ का संदर्भ दिया गया है जिसमें इस व्यंजन के बनाने की विधि का उल्लेख भी किया गया है। भारतीय मूल पर जोर देने वाले इसे ‘जल-वल्लिका’ के नाम से पुकारते हैं, रस से भरी होने कारण इसे यह नाम दिया गया बाद में इसका नाम जलेबी हो गया।
There was a debate, sometime ago, on the place of origin of #Jalebi . If Jalebi was really a popular and common food item in India during the Mahabharat era, should we conclude that Jalebi originated in India?@PushpeshPant @virsanghvi https://t.co/rD7jeWo49T
— Hpraz Prriya Raj (@PrriyaRaj) February 3, 2022
अब गुलाब जामुन की बात कर लेते हैं जिसे फारसी स्वीट डिश ‘लुक्मत-अल-कादी’ से प्रेरित बताया जाता है। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि ईरान में 13वीं सदी के करीब मैदे से बनी गोलियों को घी में डिप फ्राय करके इन्हें शहद या फिर शक्कर की चाशनी में डुबोकर इनका सेवन किया जाता था। उस समय वहां उसे ‘लुक्मत अल-क़ादी’ कहा जाता था। लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि 13वीं सदी से पहले 12वीं शताब्दी के भारतीय, संस्कृत भाषा के पाठ में भी इसका वर्णन है।
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गुलाब जामुन की उत्पत्ति के बारे में
इस प्रसिद्ध भारतीय मिठाई यानी गुलाब जामुन की उत्पत्ति के बारे में बात करें तो कुछ खाद्य लोककथाओं में ऐसा कहा गया है कि गुलाब जामुन गलती से शाहजहां के शाही रसोइए के द्वारा बनाये गए थे, जिन्होंने फारसी/तुर्की परंपराओं से प्रेरणा लेकर बनाया था। लेकिन ध्यान देने वाली बात तो यह है कि फारसी बामीह और तुर्की तुलुम्बा दोनों ही गुलाब जामुन के जैसी ही होती हैं। वे दोनों भी अख़मीरी आटे की भुरभुरी गांठें होती हैं जिन्हें तलकर चीनी की चाशनी में भिगोकर बनाया जाता है। इतना ही नहीं गुलाब जामुन के विपरीत, इसे ठंडा करके परोसा जाता है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि मुगल रसोइयों को इससे प्रेरणा मिली हो लेकिन गुलाब जामुन भारत की ही देंन है।
पुस्तक द डोनट: हिस्ट्री, रेसिपीज एंड लोर फ्रॉम बोस्टन टू बर्लिन में, पाक के इतिहासकार माइकल क्रोंडल ने लिखा हैं कि फारसी आक्रमणकारी अपने साथ एक “गोल फ्रिटर” लेकर आए थे, जिसने अंततः गुलाब जामुन का रूप ले लिया। आगे ये भी कहा है कि “(भारतीय) नुस्खा मध्य पूर्व की तुलना में ज्यादा कठिन है, जिसके लिए सूखे और ताजे दूध के आटे के मिश्रण की जरूरत होती है। लेकिन वहीं ईरान में इस मिश्रण को तलकर बनाया जाता है और गुलाब जल की चाशनी में भिगोकर बनाया जाता है।
https://twitter.com/Arthistorian18/status/1259521043414147072
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तो इन्हीं सब कारणों से ये बात सत्य साबित हो जाती है कि जलेबी और गुलाब जामुन को बनाने के लिए फारसियों और मुगलों से प्रेरणा ली गयी हो. लेकिन ये दोनों ही स्वादिष्ट मिठाईयां भारतीयों की दी हुई सौगात है।
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