New Prime Minister of Nepal: अंतत: नेपाल को अपना प्रधानमंत्री मिल ही गया। पुष्प कमल दहल प्रचंड ने अब नेपाल की सत्ता संभाली है। ऐसे में भारतीयों के मस्तिष्क में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या प्रचंड चीन की गोद में बैठेंगे, संतुलन बनाकर काम करेंगे या फिर भारत के हिमायती होंगे? तो चलिए हम नेपाल में जो सरकार बनी है उसकी कुंडली निकालकर आपको बताते हैं कि आने वाले वक्त में नेपाल किस दिशा में जा सकता है…
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केपी शर्मा ओली और प्रचंड में समझौता
नाटकीय घटनाक्रम के पश्चात नेपाल में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर सीपीएन-माओवादी सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड विराजमान हो गए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और ‘प्रचंड’ में पीएम पद को लेकर सहमति नहीं बन पाने के बाद प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाने के लिए के.पी. शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनाइटेड मार्क्सवादी-लेनिनवाद) और दूसरी छोटी-छोटी पार्टियों समेत निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दिया है। पुष्प कमल दहल ”प्रचंड” तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री (New Prime Minister of Nepal) बने हैं। इससे पहले वे 2008-2009 और 2016-17 दो बार नेपाल के प्रधानमंत्री पद पर रह चुके हैं।
यहां यह भी जान लेना आवश्यक है कि प्रचंड की पार्टी 32 सीटों के साथ नेपाल की प्रतिनिधिसभा अर्थात संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है जबकि इन्हें समर्थन देने वाले के.पी. शर्मा ओली की पार्टी के पास 78 सीटें हैं। इसलिए प्रधानमंत्री (New Prime Minister of Nepal) पद को लेकर ओली और प्रचंड के बीच एक समझौता हुआ है, जिसके तहत प्रचंड केवल ढाई वर्ष के लिए ही प्रधानमंत्री पद की कमान संभालेंगे। 2025 में प्रचंड पीएम पद से इस्तीफा देंगे और उसके बाद के.पी. शर्मा ओली पीएम (New Prime Minister of Nepal) पदभार संभालेंगे। इस समझौते को अगर देखा जाए तो यह एक प्रकार से सत्ता में बने रहने के लिए राजनीतिक पैंतरा है और उससे अधिक कुछ नहीं।
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ओली ने बढ़ाई चीन के साथ नजदीकियां
जब के.पी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री पद पर थे तब हम सबने देखा था किस प्रकार से उन्होंने चीन के साथ अपनी नजदीकियों को बढ़ाया था। इसी के साथ नेपाल में जब 2012 में के.पी. शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनाइटेड मार्क्सवादी-लेनिनवाद) की सरकार थी और बाबूराम भट्टाराई पीएम पद संभाल रहे थे तो उस समय नेपाल एयरलाइंस ने छह विमानों के उत्पादन के लिए चीनी सरकार के एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन ऑफ चाइना (AVIC) के साथ एक वाणिज्यिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। तब चीन ने नेपाल को करीब 6.67 अरब रुपये का कर्ज दिया था। चीन की इस रणनीति से हर कोई वाकिफ है कि वो अपनी कुटिल चालों के तहत छोटे देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाता है और फिर उनकी जमीन पर अपना कब्जा जमा लेता है।
वहीं, के.पी. शर्मा ओली जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भारत के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ दिया था। अपने विवादित बयानों के लिए कुख्यात केपी शर्मा ओली ने भारत को लेकर कई बार भड़काऊ बयान दिए। इन्हीं केपी शर्मा ओली ने लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख जैसे क्षेत्रों को नेपाल के नक्शे में दर्शाकर दोनों देशों के लोगों के बीच में खटास पैदा करने का प्रयास किया। तो कभी उन्होंने भगवान राम को लेकर विवादित टिप्पणी की। कुछ इस तरह के.पी. शर्मा ओली अपने कार्यकाल के दौरान भारत से पंगा लेते रहे और चीन के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाते रहे। इसी का परिणाम कि चीन, नेपाल की जमीन पर कब्जा जमा रहा है। कुछ समय पूर्व आई खबरों के अनुसार नेपाल की उत्तरी सीमा पर चीन ने 10 स्थानों पर 36 हेक्टयर भूमि पर कब्जा जमा लिया है।
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13 साल तक रहे अंडरग्राउंड
पुष्प कमल दहल ”प्रचंड” माओवादी विचारधारा से प्रभावित नेता हैं। राजनीति में आने से पहले प्रचंड नेपाल में एक सशस्त्र माओवादी विद्रोह का हिस्सा रहे हैं। पुष्प कमल दहल 13 सालों तक अंडरग्रॉउंड रहे हैं। प्रचंड ने 1996 से 2006 तक एक दशक लंबे सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया। प्रचंड के व्यक्तित्व को देखने के बाद स्पष्ट हो जाता है कि चीन की ओर उनका झुकाव होने का कारण उनकी माओवादी विचारधारा है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि आने वाले वक्त में नेपाल की यह गठबंधन वाली सरकार, चीन की गोद में बैठती दिखे तो चौंकिए मत- क्योंकि इन पार्टियों और नेताओं का अतीत तो यही कहता है।
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