आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि ‘जो दिखेगा वही बिकेगा’ और दिखने के लिए प्रचार करना बहुत ज्यादा जरूरी है। यह कहावत हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर सटीक बैठती है। अब आप सोचेंगे कि ऐसा भला क्यों है? दरअसल, मनोहर लाल खट्टर पिछले 8 साल से हरियाणा के मुख्यमंत्री पद पर हैं, इस पद पर रहते हुए उन्होंने जनता के हित में अनेक काम भी किए हैं लेकिन जैसा कि हमने इस आर्टिकल की शुरुआत में ही कहा था कि अगर आप अपने किए कार्यों का प्रचार जनता तक नहीं कर पाते हैं तो जनता भी आपकी क्षमताओं और कार्यों को जान नहीं पाएगी और ऐसा ही इस समय सीएम खट्टर के साथ हो रहा है।
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हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें
सीएम खट्टर की ऐसी चिंताजनक स्थिति ही है कि आज के समय में हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें तेज़ होती जा रही है। साल 2024 में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं और उसके लगभग 6 महीने बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव होंगे। इन सब के बीच आरएसएस के पूर्व प्रचारक और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को अपनी कुर्सी जाने का डर सता रहा है। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात हुई थी और इस दौरान पीएम मोदी ने उनसे उत्सुकता से पूछा लिया था कि- क्या वह खुश हैं? जिसके बाद इस तरह के प्रश्न उठ रहे हैं कि सीएम खट्टर का राजनीतिक करियर कहीं समाप्ति की ओर तो अग्रसर नहीं हैं।
साल 2014 में भाजपा ने विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद कई नये मुख्यमंत्रियों पर अपना भरोसा जताया था। कई राज्यों में भाजपा का ये दांव सफल भी हुआ, परंतु झारखंड से लेकर हरियाणा, उत्तराखंड के सीएम इतने लोकप्रिय नेता नहीं बन सके और झारखंड में हारने के बाद से भाजपा लगातार मुख्यमंत्रियों को बदलते हुए दिखी। भाजपा की एक खास बात ये है कि इसके जितने भी मुख्यमंत्री हैं वो जनता के बीच काफी ज्यादा लोकप्रिय हैं, चाहे वो उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ हो या फिर असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा हों। ये सभी भाजपा नेता की लोकप्रियता के कारण पार्टी में एक सकारात्मक छवि बना चुके हैं।
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अलोकप्रियता के कारण नुकसान
इसके विपरीत भाजपा में अलोकप्रियता के कारण पहला नुकसान झारखंड में उठाना पड़ा था जब मुख्यमंत्री रहते हुए रघुबर दास के द्वारा सकारात्मक और पार्टी के कोर एजेंडों पर कार्रवाई किए जाने के बाद भी पार्टी ने मीडिया से दूरी बनाई थी जिससे उनकी लोकप्रियता गिरती गई। उनकी इसी अलोकप्रियता के कारण भाजपा को विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। रघुबर दास की हार से सबक लेने के बाद से ही भाजपा ने मुख्यमंत्रियों के चुनाव में सतर्कता बरतनी शुरू की।
उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी उनकी अलोकप्रियता के कारण उन्हें हटाया गया, कुछ इसी तरह जब तीरथ सिंह रावत को लेकर भी पार्टी में बगावत की स्थिति आई तो पार्टी ने उन्हें हटाकर पुष्कर सिंह धामी को सीएम बना दिया। रघुबर दास की हार से सबक लेते हुए ही भाजपा ने मुख्यमंत्रियों को बदलने का सिलसिला शुरू किया था। इसको मद्देनजर रखते हुए ऐसा लगता है कि मनोहर लाल खट्टर भी रघुबर दास सिंड्रोम से ग्रसित है क्योंकि इनकी छवि पार्टी के लिए खतरा बन सकती है।
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अनिल विज के साथ छतीस का आंकड़ा
वैसे अगर देखा जाए तो मनोहर लाल खट्टर का हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज के साथ छतीस का आंकड़ा है और वहीं अनिल विज बीजेपी के बड़े चेहरे और जमीनी नेता के रूप में जाने जाते हैं। अपने कार्यों के कारण ये खबरों में बने रहते हैं। अब बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ इस तरह की अनबन का मतलब है कि खुद के ही पैरों पर कुल्हाड़ी मरना।
ऐसे में स्पष्ट दिखता है कि अब शायद मनोहर लाल खट्टर अपनी राजनीति की गाड़ी को ठीक तरह से नहीं चला पा रहे हैं। वहीं बीजेपी में हमेशा ही ऐसा देखने को मिला है कि जब भी किसी राज्य में चुनाव होने वाला होता है और वहां का सीएम बेहतर तरीके से जनता पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाता या बेहतर कार्य नहीं कर रहा होता है तो उसे पद से हटा कर किसी और को सीएम बना दिया जाता है और यही यदि आज के समय में हरियाणा में हो जाए तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
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