प्रेम भी बड़ा विचित्र है, कभी कभी सही और गलत में अंतर ही नहीं समझने देता। इस परीक्षा को जो पार कर ले, उसका जीवन खुशियों से भर जाता है और जो न कर पाए उनका हाल ‘मीना कुमारी’ जैसा हो जाता है, जो न घर की रहीं न घाट की। इस लेख में हम महजबीं बानो बक्श यानी मीना कुमारी की कहानी से विस्तार से अवगत होंगे और जानेंगे कि कैसे कमाल अमरोही के कारण भारतीय सिनेमा की ट्रेजेडी क्वीन को वास्तविक जीवन में भी काफी दु:ख दर्द झेलने पड़े थे। अगस्त 1933 में जन्मीं मीना कुमारी को बचपन से ही सिनेमा में झोंक दिया गया। यह करियर उन्होंने स्वेच्छा से नहीं चुना था अपितु इसके लिए उनके अभिभावकों ने बाध्य किया था। परंतु किसी को नहीं पता था कि यही क्षेत्र उन्हें शिखर और विनाश दोनों दिखाएगा।
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19 की उम्र में 34 के कमाल से शादी
दरअसल, 1945 में बतौर गायिका अपना करियर प्रारंभ करने वाली मीना कुमारी ने शनै: शनै: बॉलीवुड में अपना प्रभाव बढ़ाना प्रारंभ किया। इसी बीच 1952 में आई दो फिल्में – तमाशा और बैजू बावरा, जिसने मीना कुमारी को फिल्म उद्योग में उनकी पहचान दी और सफलता की सीढ़ी चढ़ने का एक नया मंच दिया। यहीं से उनका परिचय हुआ फिल्मकार कमाल अमरोही से, जो महल के ब्लॉकबस्टर स्टेटस के बाद हिन्दी सिनेमा में एक जाना माना नाम बन चुके थे। फिल्म तमाशा के सेट पर मीना कुमारी की मुलाकात कमाल अमरोही से हुई, जो निर्माता के तौर पर अपनी अगली फिल्म अनारकली के लिए नायिका की तलाश कर रहे थे।
अब मीना का अभिनय देखकर वो उन्हें अनारकली में मुख्य नायिका के किरदार में लेने के लिए राज़ी हो गए। परंतु दुर्भाग्यवश 21 मई 1951 को मीना कुमारी महाबलेश्वर के पास एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं, जिससे उनके बाएं हाथ की छोटी अंगुली सदा के लिए मुड़ गई। इसी बीच कमाल अमरोही उनका हालचाल लेने पहुंचे और यहीं से उनके बीच प्रेम स्थापित हुआ। अंतत: 1952 में दोनों ने निकाह किया, जिसके बाद कुछ समय के लिए मीना कुमारी के पिता अली बख्श ने उनसे नाता तोड़ लिया। उस समय वह केवल 19 वर्ष की थी और कमाल 34 के थे और पहले से दो बार ब्याह भी चुके थे।
ईर्ष्या की आग में जल रहा था कमाल अमरोही
अपनी शादी के बाद, कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को उनकी फ़िल्मी करियर को जारी रखने की अनुमति दी लेकिन इस शर्त पर कि वो अपने मेकअप रूम में उनके मेकअप आर्टिस्ट के अलावा किसी और पुरूष को नहीं बुलाएंगी और हर शाम 6:30 बजे तक केवल अपनी कार में ही घर लौटेंगी। परंतु इन नियमों को अधिकतम समय कमाल अमरोही ने तोड़ा और कई बार उनके ईर्ष्यालु व्यवहार से तंग स्वयं मीना कुमारी ने भी।
एक कारण यह भी कहा जाता है कि वह उनके और बहुचर्चित अभिनेता राजकुमार के बीच प्रगाढ़ मित्रता से ईर्ष्या भी रखते थे और दोनों के बीच उमड़ते प्रेम संबंध होने का भी संदेह उन्हें बहुत था। इसी बीच मीना का करियर भी तेजी से आगे बढ़ रहा था, जो कमाल की ईर्ष्या की आग में पेट्रोल का कार्य करता था।
कमाल अमरोही की हरकतों को देखकर एक बार को आपको जेमिनी गणेशन भी देवता प्रतीत होगा और हम मज़ाक नहीं कर रहे। उदाहरण के लिए जब बहुचर्चित फिल्म साहिब बीबी और गुलाम को 1963 में बर्लिन फिल्म समारोह में भारतीय प्रविष्टि के रूप में चुना गया और मीना कुमारी को एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया तो न कमाल अमरोही खुद गए और न ही उन्होंने मीना कुमारी को जाने दिया।
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नरगिस ने किया था खुलासा
ये तो कुछ भी नहीं है। 1972 में उनकी मृत्यु के बाद उनकी साथी अभिनेत्री सुप्रसिद्ध नरगिस ने उनके बारे में एक निबंध लिखा, जो एक उर्दू पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। नरगिस ने उल्लेख किया कि मैं चुप रहूंगी के एक आउटडोर शूट पर, जब वे दोनों बगल के कमरे साझा कर रही थीं तो उन्होंने स्वयं भी बगल के कमरे से शोर सुना। अगले दिन वो एक सूजी हुई आंखों वाली कुमारी से मिली, जो शायद पूरी रात रोई थी। कहा जाता है कि 5 मार्च 1964 को कमाल अमरोही के सहायक बाकर अली ने मीना कुमारी को थप्पड़ मार दिया, जब उन्होंने गुलज़ार को अपने मेकअप रूम में प्रवेश करने की अनुमति दी। कुमारी ने तुरंत अमरोही को फिल्म के सेट पर आने के लिए बुलाया लेकिन वह नहीं आए।
इस घटना ने न केवल मीना कुमारी को दु:ख पहुंचाया बल्कि उनके लिए स्थिति को असहनीय तक बना दिया। वह तुरंत वहां से निकल आईं और उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मीना कुमारी सीधे अपनी बहन मधु के घर गईं और वो 1964 में अमरोही से अलग हो गयीं। उनकी फ़िल्म पाक़ीज़ा को और उसमें उनके रोल को आज भी सराहा जाता है। शर्मीली मीना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वो कवियित्री भी थीं लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी कविताएं छपवाने की कोशिश नहीं की। उनकी लिखी कुछ उर्दू की कविताएं नाज़ के नाम से बाद में छपी।
लेकिन अलगाव ने एक विकराल रूप धारण कर लिया। कभी डॉक्टर के सुझाव पर ब्रैन्डी की चुस्की लेने वाली मीना कुमारी धीरे-धीरे मदिरा की आदी हो गईं और यही उनके लिए काल भी बन गया। लिवर सिरोसिस के कारण मीना कुमारी कोमा में चली गई और बॉलीवुड की ‘पाकीजा’ 1972 में 31 मार्च को सदा के लिए सो गई। बॉलीवुड में ‘ट्रैजेडी क्वीन’ बनने वाली मीना कुमारी का वास्तविक जीवन भी एक त्रासदी से कम नहीं था, जिसके दोषी केवल एक थे – कमाल अमरोही।
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