नेटफ्लिक्स पर हाल ही में एक फिल्म आई है कला। अन्विता दत्त निर्देशित फिल्म में क्या है, फिल्म कैसी है वो हम आपको नहीं बताएंगे लेकिन इतना अवश्य बताएंगे इसका संगीत जादुई है। इसके गीतों में सुकुन है, रुककर बार-बार सुनने को दिल करता है। उम्मीद करता हूं आपने यह गीत सुने होंगे यदि नहीं तो यह वीडियो पूरा देखने के बाद अवश्य सुनिए। इन गीतों के संगीत का जो ठहराव हमें रोकता है, वो अमित त्रिवेदी का है। अमित त्रिवेदी, जो इस दौर के महान संगीतज्ञ है और हम यह बात ताल ठोककर कहते हैं। हो सकता है कुछ लोगों को बुरा लगे लेकिन विश्वास कीजिए हम ए आर रहमान को अमित त्रिवेदी से बहुत पीछे रखते हैं।
ए आर रहमान को एक बार अपने संगीत के लिए ऑस्कर मिल गया, ठीक है, मिल गया तो लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वो इस दौर के सबसे अच्छे संगीतज्ञ बन गए। अमित त्रिवेदी का नाम आपने अवश्य सुना होगा।आज उन्हीं अमित त्रिवेदी के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।
गुजराती परिवेश में पले-बढ़े अमित त्रिवेदी सभी प्रकार के सुर निकालने में पारंगत हैं। अमित्र त्रिवेदी के संगीत में आत्मा तो होती ही है साथ ही साथ उनके संगीत की विशेषता यह है कि वो उसमें फिल्म की पृष्ठभूमि के अनुसार स्थानीयता का फ्लेवर रखते हैं। यह फ्लेवर उनके गीतों को उच्च कोटि का बना देता है। यही फ्लेवर लोगों को उनके संगीत से जोड़ देता है। उदाहरण के लिए यदि पंजाब का दिल्ली का परिवेश फिल्म में है तो लंदन ठुमकदा जैसे गीत देते हैं। यदि मराठी परिवेश है तो वही अमित त्रिवेदी नवराई माझी जैसे गीत देते हैं। उड़ान और अंधाधुन में भी इनका दिया संगीत अद्भुत है।
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‘देव डी’ से प्रसिद्धि मिली
अमित त्रिवेदी ने अपने करियर की शुरूआत में कुछ संगीत एलबम में संगीत दिए। इसके बाद उन्हें राज कुमार गुप्ता की फिल्म आमिर से फिल्म उद्योग में अवसर मिला। पहली फिल्म से ही लोगों ने अमित त्रिवेदी को नोटिस करना शुरू कर दिया। इसके अगले ही वर्ष उन्होंने अनुराग कश्यप की फिल्म देव डी में संगीत दिया। अनुराग कश्यप की इस फिल्म में अमित त्रिवेदी ने अपने बेहतरीन संगीत से चार चांद लगा दिए। इस फिल्म का ही गीत ‘इमोसनल अत्याचार’ खूब लोकप्रिय हुआ। अमित त्रिवेदी के संगीत से सुशोभित इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ संगीत का राष्ट्रीय पुरस्कार और फिल्मफेयर अवॉर्ड में नवोदित संगीतज्ञ के लिए आरडी बर्मन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
यहां से फिर अमित त्रिवेदी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ‘उड़ान’, ‘इशकजादे’, ‘चिल्लर पार्टी’, ‘इंग्लिश विंगलिश’, ‘काय पो छे’, ‘क्वीन’, ‘उड़ता पंजाब’, ‘डियर ज़िंदगी’, ‘पैडमैन’, ‘रेड’, ‘अंधाधुन’, ‘केदारनाथ’, ‘चुप’, ‘ऊंचाई’, अमित त्रिवेदी के हाथों से संगीत का ऐसा सागर निकला कि आप जितना भी सुनें, कम ही लगेगा। अकेले अमित त्रिवेदी ही ऐसा कर सकते हैं कि एक तरफ तो ‘नवराई माझी’, ‘इमोसनल अत्याचार’, ‘ लंदन ठुमकदा’ जैसा संगीत दें और दूसरी तरफ गैंग्स ऑफ वासेपुर और RRR में अपने स्वर से रिझा भी लें।
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एक से बढ़कर एक रचनाएं
इसके इतर नमो-नमो जी शंकरा और जयकाल महाकाल जैसे भजन उन्हें संगीत सम्राट के पद पर बिठा देते हैं। नमो-नमो जी शंकरा, आह! जितनी बार सुनो- उतनी ही बार और सुनने का मन करे। एक तो बाबा का गीत और ऊपर से अमित का स्वर और संगीत, मन को मोहित कर लेते हैं।
वर्तमान में जिस उद्योग में प्रीतमम, विशाल-शेखर, ए आर रहमान, शहर-एहसान लॉय जैसे संगीतज्ञों ने अपना गढ़ स्थापित कर लिया हो- वहां अपने लिए जगह बनाना और सफल होना कठिन है लेकिन अमित ने अपनी प्रतिभा की ताकत पर, अपने संगीत की ताकत पर इन तथाकथित मठाधीशों के दुर्गों को ना सिर्फ ढहाया बल्कि अपने मौलिक संगीत से देश के लोगों के दिलों में भी स्थान बनाया है।
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