जगत सेठ: भारत में अंग्रजों के आने से पहले भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था, ये आपने अवश्य सुना होगा परन्तु इसे सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था ? इसके पीछे कई कारण हैं। उनमें से यह भी है कि भारत में काफी धन संपदा मौजूद थी। लेकिन वे कौन लोग थे, जिनकी अकूत संपत्ति के कारण भारत की सोने की चिड़िया वाली छवि बनी, जिसे देखकर पुर्तगालियों से लेकर अंग्रेज तक सभी इसकी ओर आकर्षित हुए। इस लेख में हम आपको एक ऐसे व्यवसायिक घराने के बारे में बताएंगे, जो कभी भारत में अंग्रेजों और राजा, महाराजाओं को पैसे उधार दिया करता था परन्तु उनकी यह गलती आगे चलकर उनके विनाश का कारण बन गई।
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माणिक चंद से शुरू हुई थी कहानी
दरअसल, हम बात कर रहे हैं “जगत सेठ” घराने की, जो कभी भारत का ही नहीं अपितु दुनिया का सबसे धनी घराना हुआ करता था और इस घराने के संस्थापक सेठ माणिक चंद को माना जाता है। माणिक चंद न सिर्फ नवाब मुर्शिद क़ुली ख़ां के ख़जांची थे बल्कि पूरे बंगाल राज्य का लगान भी वही इकट्ठा करते थे। उनका जन्म 17वीं शताब्दी में राजस्थान के नागौर जिले में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था। परन्तु माणिक चंद के पिता हीरानंद बेहतर कारोबार की खोज में राजस्थान से बिहार आकर बस गए थे। यहां पर उन्होंने साल्टपीटर का कारोबार शुरू किया, जिससे उनकी अच्छी कमाई हुई और उन्होंने ब्याज पर पैसे उधार देना शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे उन्होंने अपना विस्तार किया और राज घरानों से अपने संबंध स्थापित कर लिया। पिता के बाद जब माणिक चंद ने कमान संभाली तो उत्तर से दक्षिण तक देश के तमाम क्षेत्रों में अपने करोबार को फैलाया। इसी बीच उनकी बंगाल के दीवान मुर्शीद कुली खान के साथ दोस्ती हो गई और वो उनके खजांची बना दिए गए। यहां से इस परिवार की संपत्ति में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी हुई और इसका सीधा सा कारण था बंगाल राज्य का पूरी लगान माणिक चंद के हाथ में आ जाना।
सेठ माणिक चंद के बाद फतेह चंद ने उनका कामकाज संभाला। बताया जाता है कि माणिक चंद को ही मुहम्मद शाह ने जगत सेठ की उपाधि दी थी। उस समय तक जगत सेठ (Jagat Seth) घराने की ब्रांच ढाका, पटना, दिल्ली, बंगाल तथा उत्तर भारत के कई बड़े शहरों में खुल गई थी। यही नहीं, कई अंग्रेज लेखकों ने उनके बारे में लिखा है कि भारत में मुगल साम्राज्य के दौरान जगत सेठ घराने से धनवान कोई नहीं था। जगत सेठ घराने की तुलना बैंक ऑफ इंग्लैंड से भी की गई। उस समय उनकी संपत्ति लगभग 1,00,00,000 पाउंड की थी। कुछ ब्रिटिश दस्तावेजों के अनुसार बताया जाता है कि पूरी ब्रटिश सरकार की संपत्ति जगत सेठ घराने से कम थी। उस समय उनकी संपत्ति को लेकर एक कहावत चलती थी, जिसमें कहा जाता था कि “जगत सेठ के पास इतना पैसा है चाहें तो सोने की दीवार खड़ी कर गंगा की धार को रोक दें।”
जगत सेठ घराने का पतन
परन्तु, वो कहते हैं न कि सूरज उगता है तो ढ़लता भी है और वैसे भी गांव में लोग कहते हैं कि तीसरी पीढ़ी पर आकर बड़े से बड़े घराने का पतन जाता है। तो ऐसा ही कुछ हुआ जगत सेठ घराने के साथ। जगत सेठ घराने को एक नई ऊंचाई पर ले जाने वाले फतेह चंद अंग्रजों को कर्ज दिया करते थे परन्तु उनके समय में अंग्रेज धीरे-धीरे भारत में अपने पैर पसारते जा रहे थे और जिस राज्य बंगाल में जगत सेठ फतेह चंद का वर्चस्व था, उस राज्य पर 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और जगत सेठ घराने से लिया हुआ पैसा वापस देने से मना कर दिया।
इस परिवार को दूसरा झटका तब लगा, जब बंगाल जीतने के बाद अंग्रेजों ने मीर कासिम को गद्दी पर बिठा दिया। मीर कासिम ने 1763 में जगत सेठ घराने के मेहताब चंद और स्वरूप चंद दोनों की हत्या करवा दी और बंगाल के पूरे बैंकिंग सिस्टम पर अंग्रेजों ने कब्जा जमा लिया। उसके बाद जगत सेठ परिवार की आर्थिक हालात बुरी तरह से बर्बाद हो गई और अंत में स्थिति ऐसी हुई कि यह परिवार अंग्रेजों द्वारा दी गई पर गुजर बसर करने लगा। वर्ष 1912 में अंग्रेजों ने इनकी पेंशन भी बंद कर दी और जगत सेठ परिवार का पूर्ण रूप से पतन हो गया। यानी जिस ईस्ट इंडिया कंपनी को इन्होंने लोन दिया और भारत में उसकी पैर जमाने में मदद की, उसी ने इन्हें बुरी तरह बर्बाद कर दिया।
ऐसे में यदि जगत सेठ घराने के बारे में निष्कर्ष निकाला जाए तो सामान्य रूप एक बात सामने निकलकर आती है कि मध्यकालीन भारत में इस परिवार से अधिक धनवान कोई दूसरा परिवार नहीं था। परन्तु जब इसके पतन की बात आती है तो एक और बात होती है, जिस पर गौर करने की आवश्यकता है और वह है जगत सेठ परिवार के कुछ गलत फैसले, जिनके कारण एक धनी परिवार का अंत हो गया।
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